(अयोध्या)राम सेतु प्राचीन भारतीय अभियांत्रिकी की एक अद्भुत उपलब्धि : प्रो. अनिल गुप्ता

  • 08-Oct-25 12:00 AM

-रामायण : एक वैज्ञानिक दृष्टि सेÓ विषय पर हुआ व्याख्यानअयोध्या 8 अक्टूबर (आरएनएस ) डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या के दीक्षांत सप्ताह व्याख्यान श्रृंखला के अंतर्गत आज भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.) खडग़पुर के भूविज्ञान विभाग के प्रख्यात वैज्ञानिक एवं शिक्षाविद् प्रो अनिल कुमार गुप्ता ने रामायण : एक वैज्ञानिक दृष्टि से विषय पर एक अत्यंत ज्ञानवर्धक व्याख्यान दिया। प्रो. गुप्ता ने अपने व्याख्यान में रामायण के वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और भूवैज्ञानिक आयामों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि भारतीय मानसून प्रणाली, हिमालय का उत्थान, और जलवायु परिवर्तन ने भारतीय उपमहाद्वीप की सभ्यता और संस्कृति को आकार दिया।प्रो. गुप्ता ने बताया कि रामायण मात्र एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि यह भारत की सभ्यतागत चेतना, भौगोलिक यथार्थ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का दस्तावेज़ है। उन्होंने राम वनगमन पथ का वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए बताया कि श्रीराम ने लगभग 3500 किलोमीटर (लगभग 300 योजन) का कठिन मार्ग तय किया कृ अयोध्या से तमसा नदी, श्रंगवेरपुर, प्रयागराज, चित्रकूट, दंडकारण्य, जनस्थान, नाशिक, पम्पा सरोवर, किष्किंधा, रामेश्वरम् और फिर लंका तक। उन्होंने इस पूरे मार्ग को प्राकृतिक भू-आकृतिक और जलवायु विविधता का जीवंत उदाहरण बताया। दंडकारण्य वन का उल्लेख करते हुए कहा कि यह न केवल भौगोलिक दृष्टि से विशाल क्षेत्र था, बल्कि उस समय यह मानव और राक्षस सभ्यताओं के संघर्ष का केंद्र भी था। उन्होंने बताया कि जनस्थान और दंडकारण्य के सन्दर्भ में राम का वनवास केवल सामाजिक या दैवी घटना नहीं, बल्कि पृथ्वी की शुद्धि और मानवता के पुनर्संरचना की एक प्रतीकात्मक यात्रा थी। राम सेतु पर चर्चा करते हुए प्रो. गुप्ता ने वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर बताया कि यह कोई काल्पनिक कथा नहीं, बल्कि प्राचीन भारत की अभियांत्रिकी की एक अद्भुत उपलब्धि थी। उन्होंने बताया कि राम सेतु लगभग 100 योजन लंबा और 10 योजन चौड़ा था और इसका निर्माण पांच दिनों में हुआ था। भूगर्भीय साक्ष्यों के अनुसार, इसका निर्माण 6000दृ7000 वर्ष पूर्व हुआ होगा, जब समुद्र स्तर आज से लगभग 1दृ2 मीटर नीचे था। उन्होंने स्पष्ट किया कि सेतु का निर्माण तैरते पत्थरों से नहीं, बल्कि भूवैज्ञानिक रूप से स्थायी शिलाओं, वृक्षों और बालू से बने बांध के रूप में हुआ था, जो एक प्राकृतिक जल-संयोजन तंत्र पर बनाया गया था। कैकेयी और मंथरा की भूमिका पर भी नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि अक्सर इन्हें नकारात्मक रूप में देखा जाता है, परंतु वैज्ञानिक दृष्टि से कैकेयी की भूमिका रणनीतिक और आवश्यक थी। दंडकारण्य के ऋषियों ने कैकेयी से निवेदन किया था कि राम को वहां भेजा जाए ताकि राक्षसों से मुक्ति मिल सके। अत: कैकेयी का निर्णय नकारात्मक नहीं, बल्कि दैवीय योजना का हिस्सा और श्रीराम के अवतार के उद्देश्य की पूर्ति का माध्यम था। मंथरा का संवाद भी उसी योजना का साधन बना, जिससे भगवान राम का धर्मयुद्ध आरंभ हुआ। प्रो. गुप्ता ने कहा कि रामायण में विज्ञान, धर्म, नीति, पर्यावरण और मानवीय मूल्य सबका गहन संगम है। उन्होंने बताया कि मानसून, हिमालय, नदियाँ, जल संसाधन और पर्यावरणीय चेतना का उल्लेख रामायण में वैज्ञानिक दृष्टि से किया गया है, जो आज भी प्रासंगिक है। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. हिमांशु शेखर सिंह ने की तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो. सिद्धार्थ शुक्ला द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संचालन श्री सौहार्द ओझा ने अत्यंत कुशलता और संयम से किया। कार्यक्रम में डॉ. महीमा चौरसिया, डॉ. अभिषेक सिंह, प्रो. फर्रुख जमाल, प्रो. जी. आर. मिश्रा, डॉ. रुद्र प्रताप सिंह, डॉ. संजीव श्रीवास्तव, डॉ. प्रवीण चंद्र सिंह, डॉ. नमिता गुप्ता, डॉ. शाजिया, डॉ. अरविंद कुमार, अमित कुमार, के. एल. पांडे, प्रिंस पोद्दार, मानवेन्द्र प्रताप सिंह, अखिलेश कुमार, डॉ. सी. के. कैथवास, विपिन पटेल, देवव्रत सिंह, शक्ति सिंह, बृजेश कुमार यादव, सौरभ, सूरज, निशाल, अदिति, आकांक्षा, राजकुमार, अंशिल सहित अनेक संकाय सदस्य, शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।




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