(इंदौर) शोर नहीं, पर मुद्दों पर बात होते ही छंटने लगती है धुंध
- 25-Oct-23 12:00 AM
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इंदौर,25 अक्टूबर (आरएनएस)। गुलाबी ठंड ने दस्तक दे दी है। मौसम चुनावी है। राजनीतिक पारा चढऩे लगा है। टिकट बंटवारे में वंचितों की टीस पार्टियों में कराह पैदा कर रही है। वफादार कहे जाने वाले भी आस्तीन चढ़ाने लगे हैं। बदहाली निष्ठाएं नए-नए दृश्य दिखा रही है। यह समय नामांकन पत्र भरने का है। जो दलों से टिकट पर गए, उनका जोश देखने लायक है। जिन्हें मायूसी हाथ लगी, वह भी निर्दलीय दोव आजमाने निकल पड़े हैं। कुछ हाथी की सवारी करने लगे हैं। कुछ क्षेत्रीय दलों की तरफ कातर निगाहें लगाए हैं। बागियों के साथ भी बैंड-बाजारा बारात है। उनका उत्साह किसे धूल-धुसरित करेगा, यह देखना भी दिलचस्प होगा। दलों के दफ्तर गुलजार हैं, लेकिन प्रचार का पहले जैसा शोर कहीं नहीं दिखता। चौपालों पर हास-परिहास तो है, नेताओं को चुटकी भी ली जा रही है, चुहलबाजी भी चल रही है, लेकिन हवा का रुख भांपना आसान नहीं। अलबत्ता अगर आपने थोड़ा कुरेदा, नब्ज पर हाथ रख दिया तो खामोशी टूटने में देर नहीं लगती। बात मुद्दों की होते ही अक्स पर छाया कोहरा साफ होने लगता है, अंदाजा लगाने की गुंजाइश भी सामने आ जाती है। इंदौर केवियजनगर का यह स्कीम 78 मोहल्ला है। हम पहुंचे हैं अटल बिहारी खेल परिसर के पिछले गेट केसामने सजी चाय-नाश्ता की दुकान पर। यहांएक ठिगने कद-काठी के भिया (भैया) लंबी-लंबी फेंकरहे थे। खुद को इंदोर केएक दिग्गज कांग्रेसी नेता का रिश्तेदार बता रहे थे, लेकिन चाची की बातें के आगे रह-रहकर नाराज हो जाते थे। चाची कभी-का दुकान संभालती हैं। अखबार नियिमत पढ़ती हैं। राजनीतिक घटनाक्रमों से वाकिफ हैं। उनके पास राजनीतिक सवालों के सटीक जवाब हैं। बातचीत जातिवदी राजनीति की चलने लगी तो हव बोल पढ़ी, जाति से क्या होगा, रोजी-रोटी का इंतजाम होना चाहिए। राजनीति पर उनकी बेबाकी झिझक तोड़ी। पूछा बैठा-चाची चुनाव का क्या माहौल है, अब तो प्रत्याशी सामने आ गए। घर-परिवार व मोहल्ले में किसी चर्चा है? चाची टालने के मूड में दिखी। बोलीं, अभी कुछ स्पष्ट नहीं है। कहीं कोई चर्चा नहीं है। मुण्े लगा कि चाची के मन की थाह पाना आसान नहीं होगा, पर बात बिजली के बिल की आते ही मुखर हो उठीं। बोलीं, मनमानी चल रही है। तीन पंखे और चार बल्ब के दो हजार रुपये महीने का बिल आया है। दीपावली के समय इसी तरह बढ़ के बिल आता है। अनिल पुरोहित
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