(उमरिया) मुख्यमंत्री श्री चौहान ने प्रदेशवासियों को दीं वन्य-प्राणी सप्ताह की शुभकामनाएँ

  • 01-Oct-23 12:00 AM

एक से सात अक्टूबर तक मनाया जाएगा वन्य-प्राणी सप्ताहउमरिया 1 अक्टूाबर दृ मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेशवासियों को वन्य-प्राणी सप्ताह की बधाई और शुभकामनाएँ दी हैं। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मिशन लाइफ से प्रेरणा लेकर पर्यावरण एवं वन्य प्राणियों के संरक्षण और संर्वद्धन का संकल्प लेने का आव्हान किया है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि मध्यप्रदेश जैव विविधता के लिए विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान रखता है। सम्पूर्ण संसार से पर्यटक मध्यप्रदेश के वन्य-प्राणियों को देखने के लिए आते हैं। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि प्रदेश की धरती पर बाघ, तेंदुआ, गिद्ध, घडिय़ाल, भालू आदि वन्य-प्राणी स्वछन्द विचरण करते हैं। अखिल भारतीय बाघ गणना-2022 के अनुसार मध्यप्रदेश में देश के सर्वाधिक 785 बाघ है एवं प्रदेश ने बाघ प्रदेश का प्रथम स्थान बरकरार रखा है। मध्यप्रदेश में तेंदुआ, भेडिय़ा, घडिय़ाल ओर गिद्ध की सर्वाधिक संख्या है। चीतों के रीलोकेशन का सौभाग्य भी मध्यप्रदेश को प्राप्त हुआ है और यही कारण है कि प्रदेश को चीता, तेंदुआ, भेडिय़ा, घडिय़ाल एवं गिद्ध प्रदेश भी कहा जाता है। यह प्रदेश की वन्य-प्राणी संरक्षण नीति का ही परिणाम है कि वन्यप्राणियों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। यह एक स्वस्थ इको-सिस्टम का सूचक है।मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि ये धरती जितनी मनुष्यों की है, उतनी ही पशु-पक्षियों, जीव-जन्तुओं और पेड़-पौधों की भी है। हम सभी में एक ही चेतना का वास है। भावी पीढ़ी के लिए यदि धरती को बचाना है तो यहां की जैव विविधता एवं प्राकृतिक संपदा के संरक्षण एवं संवद्र्धन के लिए हम सभी को सरकार के साथ मिलकर दिन-रात कार्य करना होगा। समाज और जनता का सक्रिय सहयोग ही इसे जन-आंदोलन का रूप दे सकता है। इसी उद्देश्य से आमजन में वन्य-प्राणियों के संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रत्येक वर्ष 1 से 7 अक्टूबर तक वन्य-प्राणी सप्ताह मनाया जाता है और हम वन एवं वन्य-प्राणियों के संरक्षण के प्रति अपनी शपथ को दोहराते हैं। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि प्रदेश भर में वन्य-प्राणी सप्ताह पर विभिन्न जन जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इस दौरान विभिन्न कार्यक्रमों से स्कूल, कॉलेज के छात्र-छात्राओं एवं जन-सामान्य को प्रकृति एवं प्राकृतिक प्रक्रियाओं को समझने का अवसर मिलेगा तथा उनकी वन्य-प्राणी संरक्षण की भावना में वृद्धि होगी।




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