(कुशीनगर) महाभारत काल से मनाया जाता है छठ पूजन का पर्व
- 23-Oct-25 12:00 AM
- 0
- 0
---- माता सीता भी सूर्यदेव को धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए रखा था छठी व्रत।----- छठ पूजा का इतिहास। कुशीनगर, 23 अक्टूबर (आरएनएस)। छठ पूजा सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि सूर्य उपासना की सबसे पुरानी और शुद्ध परंपरा मानी जाती है। इस पूजा की शुरुआत कब और कैसे हुई। इसे लेकर कई रोचक मान्यताएं प्रचलित हैं। ऐसी किवदंती है कि त्रेता युग से लेकर महाभारत काल तक, इस पर्व की जड़ें इतनी गहरी हैं कि हर कहानी में इसकी महिमा अलग ढंग से झलकती है। एक नजर उन ऐतिहासिक और धार्मिक कथाओं पर, जो छठ पूजा की नींव से जुड़ी हैं और जिन पर आज भी आस्था अटूट है। काबिलेगौर हो कि छठ पर्व मुख्य रूप से भारत के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पडोसी राष्ट्र नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़े श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है। यह महापर्व अब पूरे भारत में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। यह पर्व सूर्य देव और छठी माता की पूजा के लिए समर्पित है और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि (नहाय-खाय) से शुरू होकर चार दिन तक अनवरत चलता है। इन चार दिनों में व्रती माताएं नहाय-खाय, खरना, संध्या अघ्र्य और उदय अघ्र्य की विधि का पालन करते हुए विधिवत पूजा अर्चना करती हैं, जो उन्हें अनुशासन, संयम और भक्ति की सीख देती है यह पर्व शरीर और मन की शुद्धि तथा परिवार और समाज में प्रेम, सहयोग और विश्वास बढ़ाने का भी माध्यम है। इनसेट-- छठ पूजा का महत्व-- छठ पर्व सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। इसे करने से न केवल स्वास्थ्य, समृद्धि और लंबी उम्र मिलती है, बल्कि परिवार में खुशहाली और संतोष भी बढ़ता है। चारों दिन की विधि व्रती को अनुशासन, संयम, भक्ति और आत्मनिरीक्षण का संदेश देती है। व्रत और पूजा के दौरान शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि होती है। यह पर्व केवल व्यक्तिगत आध्यात्मिक लाभ ही नहीं देता, बल्कि समाज और परिवार में आपसी प्रेम, सहयोग, विश्वास और एकजुटता को भी मजबूत करता है। छठ पर्व भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है। इनसेट-- नहाय-खाय (पहला दिन 25 अक्टूबर)-- छठ पर्व का पहला दिन नहाय-खायÓ के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती माताएं स्नान करके शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। भोजन में आमतौर पर सादा चावल, दाल और फल शामिल होते हैं। इसका उद्देश्य शरीर और मन को शुद्ध करना और व्रत की सही शुरुआत करना है। यह दिन व्रती के लिए खुद को देख पाने और संयम सीखने का पहला कदम है। व्रती महिलाए इस दिन अपने मन और कर्मों को शुद्ध करने पर पूरा ध्यान देती हैं। नहाय-खाय से व्रती अगले दिनों के व्रत के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार होती हैं। इनसेट-- खरना (दूसरा दिन 26 अक्टूबर)-- छठ पर्व का दूसरा दिन खरनाÓ के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं,शाम को व्रती खीर, फल और मीठे प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोलते हैं, साथ ही साथ इस प्रसाद को परिवार के सदस्यों को भी दिया जाता है। इसके बाद फिर से निर्जल व्रत श्रद्धा और भक्ति के साथ जारी रहता है.इस दिन का धार्मिक महत्व व्रती में संयम, तपस्या और श्रद्धा को बढ़ाना है। व्रती अपने शरीर और मन को संयमित और शुद्ध बनाकर ईश्वर को समर्पित करते हैं। इनसेट-- संध्या अघ्र्य (तीसरा दिन 27 अक्टूबर)--तीसरे दिन सायंकाल व्रती महिलाएं नदी, तालाब या जलाशय के किनारे जाकर अघ्र्य देते हैं। यह सूर्य को दिन में दिया जाने वाला पहला अघ्र्य माना जाता है.व्रती शाम से रात तक निर्जल व्रत रखते हुए भक्ति में लीन रहती हैं। इस दौरान वह श्रद्धा, भक्ति और अनुशासन के साथ ईश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।संध्या अघ्र्य व्रती के लिए आत्मशुद्धि और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रतीक है।इनसेट-- उदय या पारण (चौथा दिन 28 अक्टूबर)--चौथे और अंतिम दिन व्रती सूर्य उदय के समय नदी या तालाब के किनारे खड़ी होती हैं। इस दिन व्रत का पारण किया जाता है और शरीर तथा मन को शुद्धि प्राप्त होती है। पारण के बाद व्रती को ऊर्जा, आशीर्वाद और आध्यात्मिक संतोष का अनुभव होता है। यह दिन व्रती के समर्पण, भक्ति और परिवार की खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। उदय अघ्र्य व्रती के लिए ईश्वर से सीधे संपर्क और आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर है। यह दिन पूरे चार दिन के व्रत और तपस्या का सार्थक और शुभ समापन होता है।इनसेट-- भगवान राम और माता सीता से जुड़ी कथा--कहते हैं कि त्रेता युग में भगवान राम और माता सीता ने छठ पूजा का व्रत रखा था। रामायण के अनुसार रावण पर विजय और 14 वर्ष के वनवास के बाद जब वह अयोध्या लौटे, तो उन्होंने सूर्यदेव को धन्यवाद देने के लिए छठ का व्रत किया था। यह परंपरा तब से लोगों के जीवन में अटूट आस्था के रूप में जुड़ी रही है। बताया जाता है कि छठ पूजा की शुरुआत को लेकर सबसे प्रसिद्ध मान्यता महाभारत काल से जुड़ी है। कहा जाता है कि सूर्यपुत्र कर्ण ने सबसे पहले सूर्यदेव की पूजा की थी। वे हर सुबह गंगा तट पर खड़े होकर सूर्यदेव को अघ्र्य देते थे। माना जाता है कि सूर्य की कृपा से ही वे महान योद्धा बने और उनके कवच-कुंडल दिव्य शक्ति से चमकते थे। यही वजह है कि छठ को सूर्य उपासना का पर्व कहा जाता है। महा भारत की एक और कथा प्रचलित है। बताया जाता है कि पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी अपने परिवार की खुशहाली और समृद्धि के लिए छठ व्रत रखा था. कहा जाता है कि उनके इस व्रत से दूत क्रीडा के बाद पांडवों के जीवन में सुख शांति समृद्धि वापस प्राप्त हुआ। धार्मिक महत्व के साथ-साथ इस पर्व का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी गहरा संबंध है। छठ पूजा के दौरान सूर्य की किरणों के संपर्क में आने से शरीर को विटामिन डी मिलता है और त्वचा पर पराबैंगनी किरणों का असर संतुलित होता है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी मददगार माना गया है. छठ पूजा सिर्फ श्रद्धा का नहीं, बल्कि प्रकृति और विज्ञान के बीच संतुलन का भी प्रतीक है।
Related Articles
Comments
- No Comments...

