(कोण्डागांव) बस्तर राइजिंग बस्तर की कला, संस्कृति और संभावनाओं की नई यात्रा

  • 11-Oct-25 11:11 AM

कोण्डागांव, 11 अक्टूबर (आरएनएस)। छत्तीसगढ़ शासन के जनसंपर्क विभाग और बस्तर संभाग के जिला प्रशासन के संयुक्त पहल से बस्तर राइजिंग की शुरुआत की गई है। यह कारवां केवल एक सांस्कृतिक यात्रा नहीं, बल्कि बस्तर की आत्मा, उसकी कला, परंपरा, संस्कृति और लोक जीवन की जीवंत गाथा को विश्व पटल पर प्रस्तुत करने का प्रयास है।


बस्तर राइजिंग का यह कारवां प्लेस ऑफ़ पॉसबिलटि के संस्थापक पृतुल जैन के नेतृत्व में बस्तर संभाग के सभी जिलों की सकारात्मक कहानियों को नए दृष्टिकोण से सामने लाने का रही है। इस यात्रा का प्रमुख उद्देश्य बस्तर की कला, शिल्प और प्रतिभा को समझना तथा उन्हें एक व्यापक मंच प्रदान करना है। कारवां के सदस्य स्थानीय कलाकारों, कारीगरों और समुदायों से जुड़कर उनके अनुभवों, संघर्षों और रचनात्मक संसार को करीब से जान रहे हैं। इस पहल का विजन है कि बस्तर की धरोहर को केवल परंपरा तक सीमित न रखकर, उसे आधुनिक समय की रचनात्मक ऊर्जा और आर्थिक अवसरों से जोड़ा जाए।
कोंडागांव प्रवास के दौरान बस्तर राइजिंग टीम ने जिले की शिल्प परंपरा को गहराई से समझा। टीम ने टेराकोटा कलाकार अशोक चक्रधारी से मुलाकात की, जो मिट्टी से जीवन का जादू रचते हैं। उन्होंने टीम को टेराकोटा शिल्प की बारीक प्रक्रिया से अवगत कराया, किस प्रकार मिट्टी को गूंथकर, आकार देकर और आग में तपाकर कला का रूप दिया जाता है। टीम ने उनके द्वारा बनाए गए मैजिक दीये को देखा और उसकी कार्यप्रणाली को विस्तार से समझा। अशोक चक्रधारी ने बताया कि इस कला में धैर्य, अनुभव और सटीकता की आवश्यकता होती है, क्योंकि एक छोटी सी त्रुटि पूरी मेहनत पर पानी फेर सकती है।
इसके बाद टीम ने तिजुराम बघेल से भेंट की, जो रॉट आयरन से अद्भुत कलाकृतियाँ बनाते हैं। उन्होंने बताया कि यह कला उनके पूर्वजों की धरोहर है। एक समय था जब उनका परिवार पत्थरों को पिघलाकर लोहा निकालता था, और उसी से औजारों से लेकर पूजा की वस्तुएँ तक तैयार करता था। आज वही परंपरा एक नए रूप में क्राफ्ट के रूप में पहचानी जा रही है।
तिजुराम बघेल ने यह भी बताया कि पहले निकाले गए लोहे का उपयोग बीज संरक्षण के लिए किया जाता था। बीजों के साथ पिघला हुआ लोहा रखने से कीड़े नहीं लगते थे। उन्होंने बस्तर के पारंपरिक त्यौहार अमुस तिहार (हरेली) का भी उल्लेख किया, जिसमें घरों के चौखटों पर लोहे की कील ठोकी जाती है ताकि नकारात्मक शक्तियाँ घर में प्रवेश न कर सकें।
टीम ने इसके बाद डा. राजा राम त्रिपाठी से मुलाकात की। इस दौरान डॉ. त्रिपाठी ने खेती के पारंपरिक और प्राकृतिक तरीकों पर विस्तार से चर्चा की और बताया कि नेचुरल फार्मिंग क्यों आवश्यक है। टीम ने उनके द्वारा तैयार किए गए विभिन्न हर्बल उत्पादों को देखा। डॉ. त्रिपाठी ने अपनी खेती की यात्रा साझा की और उन लोगों से भी मिलवाया जो आज प्राकृतिक खेती में सक्रिय योगदान दे रहे हैं।
टीम ने चिखलपुट्टी स्थित फार्म का भ्रमण किया, जहाँ उन्होंने काली मिर्च की खेती और विभिन्न जड़ी-बूटियों की किस्मों का अवलोकन किया। डॉ. त्रिपाठी ने जैविक खेती के महत्व, उसकी तकनीक और चुनौतियों पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने यह भी कहा कि क्लाइमेट चेंज अब एक वास्तविकता बन चुका है, जिसका सीधा असर खेती पर दिखाई दे रहा है।
इसके बाद टीम ने साथी संस्था के संस्थापक भूपेश तिवारी से भेंट की। उन्होंने समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के अपने अनुभव साझा किए। चर्चा के दौरान इस बात पर विशेष जोर दिया गया कि बस्तर के शिल्पकारों के जीवन को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है और पर्यटन को संस्कृति से जोड़कर विश्व पटल पर कैसे प्रस्तुत किया जा सकता है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की जनभागीदारी आधारित विकास की अवधारणा के अनुरूप यह पहल बस्तर के युवाओं, कारीगरों और कलाकारों को न केवल अपनी पहचान देने में मदद कर रही है, बल्कि उन्हें आर्थिक सशक्तिकरण से भी जोड़ रही है।
0




Related Articles

Comments
  • No Comments...

Leave a Comment