(कोरबा) कोल फील्ड का काला सच, एलाऊ से स्टीम तक वसूली का खेल, कई स्तर पर है नजराना, शुकराना और हर्जाना का चलन

  • 17-Apr-25 06:43 AM


कोरबा, 17 अप्रैल (आरएनएस)। केंद्रीय कोयला मंत्री जी. किशन रेड्डी के कोरबा प्रवास के बाद कोरबा कोल फील्ड पर चढ़ा आवरण परत -दर- परत उतरने लगा है। पर्दे के पीछे चल रहे खेल से रूबरू होकर कोई भी हतप्रभ रह जाएगा। कोरबा की कोयला खदानों में कदम - कदम पर रिश्वतखोरी और अवैध वसूली का खेल चल रहा है। छत्तीसगढ़ के पूर्व गृहमंत्री ननकी राम कंवर ने इस खेल की विस्तृत जानकारी केंद्रीय कोयला मंत्री को दी है।


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साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड बिलासपुर की कोयला खदानों से दो तरह से कोयला का वितरण किया जाता है। पहला कुछ उद्योगों को लिंकेज आक्शन ( एफ एस ए ) में कोयला दिया जाता है। दूसरा स्पॉट आक्शन के जरिए कोयले का विक्रय किया जाता है। लिंकेज आक्शन में केवल उद्योग को कोयला दिया जाता है जबकि स्पॉट आक्शन में कोई भी व्यक्ति कोयला क्रय कर सकता है। आक्शन के बाद दोनों वर्ग के कोयला क्रेताओं को कंपनी हेडक्वार्टर से डिलेवरी आर्डर (डी ओ) दिया जाता है, जिसे निर्दिष्ट कोयला खदान में प्रस्तुत करने पर क्रेता को कोयला प्रदान किया जाता है। रिश्वतखोरी और अवैध वसूली का खेल यहीं से शुरू हो जाता है। कोल फील्ड के जानकारों के हवाले से बताया गया है कि कोयला खरीददार जब डी ओ लेकर खदान में पहुंचता है तो सबसे पहले उसे एलाऊ फीस देना पड़ता है। यह फीस 10 रुपए प्रति टन है। आपने एडवांस पेमेंट देकर कोयला खरीदा है, मगर कोयला आपको एलाऊ फीस भरने के बाद ही मिलेगा। वरना आप चक्कर काटते रह जाएंगे और कोयला उठाने की समय सीमा समाप्त हो जाएगी। यानी आपका कोयला लेफ्स हो जाएगा। इसके बाद क्रेता को कोयला प्रदान किया जाता है। क्रेता को आर ओ एम (रनिंग ऑफ माइंस) यानी खदान से जैसा कोयला फेस में पहुंचा है, वैसा ही दिए जाने का नियम है। लेकिन कोयला खरीददार यहां पर अच्छा कोयला उठाने की सुविधा चाहता है। वह आर ओ एम की जगह स्टीम लेना चाहता है। पहले स्टीम उठाने के लिए कोयला खदान के फेस में सैकड़ों मजदूर इक_ा होते थे और हाथों से स्टीम चुन चुन कर ट्रकों में लोड करते थे। लेकिन अब लोडर  से स्टीम उठाकर वाहनों में लोड किया जाता है। इस सुविधा के लिए कोयला खरीददार को अधिक नहीं, केवल 50 से 60 रुपए प्रति टन सेवा शुल्क का भुगतान करना पड़ता है, जो क्रेता खुशी खुशी के देता है। इसके बाद वह चुनकर स्टीम कोयला उठा लेता है। फेस में रह जाता है स्लैक कोयला का चुरा, जिसमें खदान से कोयला के साथ निकला मिट्टी, पत्थर आदि शामिल होते हैं ऐसे स्लैक को सेवा शुल्क नहीं देने वालों के मत्थे मढ़ दिया जाता है।
जानकार सूत्र इस बात की तस्दीक करते हैं कि खुले बाजार में कोयला बेचने वाले पेशेवर स्टीम उठाते हैं। फिर यह स्टीम कोयला कटनी, सतना और वाराणसी कोयला मंडी ले जाया जाता है, जहां यह ऊंची कीमत पर बिकता है। लेकिन मंडी पहुंचने से पहले इस पर कुछ और व्यय करना पड़ता है। सूत्र बताते हैं कि कोयला खदानों के फेस में राज्य सरकार की एक एजेंसी का नुमाइंदा अवैध रूप से पूरे समय विचरण करता रहता है। वह ऐसे सभी ट्रकों की सूची बनाता है, जो स्टीम सुविधा का लाभ लेते हैं। ऐसे ट्रक खदान से बाहर आते हैं तो उनसे एक सौ (100) रुपए प्रति टन का नजराना लिया जाता है। कोरबा जिले में यह राशि प्रति वर्ष करोड़ों में होती है। बावजूद इसके नजराना, शुकराना, हर्जाना पर थीं विराम नहीं लग जाता। फिर रास्ते में सड़क शुल्क भी जगह जगह देना होता है, तब जाकर स्टीम अपनी मंजिल अर्थात कोयला मंडी तक पहुंच पाता है। स्टीम के इस खेल में सबसे अधिक प्रभावित होते हैं उद्योग। क्योंकि उन्हें बड़ी मात्रा में कोयले की आवश्यकता होती है और समय सीमा के भीतर पूरी मात्रा का परिवहन करना होता है। अन्यथा उनका कोयला लेफ्स हो जाने पर प्लांट का संचालन प्रभावित हो सकता है। लिहाजा जो है, जैसा है, मिट्टी, पत्थर, स्लैक सब कुछ उठाकर ले जाना उनकी मजबूरी हो जाती है। इसके अलाव भी कोरबा जिले की कोयला खदानों में कई काले कारनामों को अंजाम दिया जा रहा है।
बंछोर
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