(कोरबा) दशलक्षण धर्म का चौथा धर्म- उत्तम शौच धर्म मन, वचन, काय की पवित्रता का नाम ही उत्तम शौच धर्म है

  • 01-Sep-25 11:20 AM

कोरबा, 01 सितंबर (आरएनएस)। पर्यूषण पर्व का चौथा दिन उत्तम शौच धर्म का है। जिस प्रकार क्षमा, मार्धव धर्म के समान उत्तम आर्जव भी आत्मा का स्वभाव है और पवित्रता का नाम शौच धर्म है। आर्जव स्वभावी  आत्मा के आश्रय से आत्मा में छलकपट ,मायाचार के अभाव रूप ,शांतिस्वरूप जो पर्याय प्रकट होती है ,उसे ही आर्जव धर्म कहते हैं। वहीं उनकी पवित्रता का नाम ही शौच धर्म है। शौच धर्म से तन- मन- धन एवं मन- वचन काय की पवित्रता से यदि व्यक्ति संतोषमय जीवन व्यतीत करें तो लोभ कषाय का समापन हो जाएगा और व्यक्ति सत्य मार्ग को स्वीकार कर लेगा।
उक्त विचार दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे पर्यूषण पर्व के चैथे दिन धर्म के 10 लक्षणों को परिभाषित करने हेतु संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज, आचार्य श्री 108 समय सागर महाराज एवं आर्यिका रत्न श्री 105 आदर्श मति माता जी के मंगल आशीर्वाद से आर्यिका रत्न श्री 105 अखंडमति माताजी एवं आर्यिका रत्न श्री 105 अभेद मति माताजी जो दो माह से जैन मंदिर विराजमान है उन्होंने अपने प्रवचन के दौरान हमें बताया कि आज सभी को चार कषायों क्रोध, मान ,माया ,लोभ को छोड़कर चार धर्मों का पालन क्षमा, मार्दव, आर्जवधर्म की गहराइयों को समझ कर आज लोभ कषाय के अभाव में प्रकट होने वाली जीवन की पवित्रता शुचिता की बात समझनी चाहिए। 10 लक्षण पर्व में उत्तम शौच धर्म का अर्थ मन की पवित्रता से है। धर्म मन में बसता है।
जैन मिलन समिति के पूर्व उपाध्यक्ष एवं मीडिया प्रभारी श्री दिनेश जैन ने शौच धर्म के बारे में बताया कि जहां सत्य मार्ग ,संयम की ओर इंगित करता है ।तो तप और त्याग के माध्यम से वह मोक्ष मार्ग में अपने आप को तत्पर समझने लगता है। पवित्र स्वभाव को छूकर जो पर्याय स्वयं पवित्र हो जाए उस पर्याय का नाम शौच धर्म है। आत्मस्वभाव के स्पर्श के बिना अर्थात आत्मा के अनुभव के बिना शौचधर्म का पालन नहीं होता है। शौचधर्म का ही क्या सभी धर्मो का आरंभ आत्मा अनुभूति से ही संभव है ।आत्मा नुभूति उत्तम क्षमादि सभी धर्मो की जननी है ।शौचधर्म को और अधिक परिभाषित करते हुए श्री दिनेश जैन बताया कि जिस तरह शरीर के सौंदर्य को निखारने के लिए नाक में नथुनी ,कानों में कुंडल, आंखों में काजल, गले में हार ,हाथ में ब्रेसलेट और उंगलियों में अंगूठी पहनी जाती है। उसी तरह से मन को सुंदर बनाने के लिए धर्म को धारण किया जाता है। मन की पवित्रता का नाम ही शौचधर्म है। उत्तम शौच को जीवन में शामिल कर मन को पवित्र बनाना चाहिए।
इस प्रकार से समस्त जैन धर्मावलंबियों ने उत्तम शौचधर्म को बड़े ही अच्छे ढंग से समझा। प्रात: काल में समस्त जैन समाज के लोगों ने श्री जी का अभिषेक, शांतिधारा एवं पूजन किया।रात्रि कालीन बेला में लोगों ने श्रीजी की आरती ,भजन ,प्रवचन का आनंद उठाया। तत्पश्चात् रात्रि में कौन बनेगा ज्ञानवान आदि प्रतियोगिता संपन्न हुई। जिसमें समस्त जैन समाज की महिलाएं पुरुषों एवं बच्चों ने प्रतियोगिता में भाग लिया ।उक्त आशय की संपूर्ण जानकारी जैन मिलन समिति के पूर्व उपाध्यक्ष एवं मीडिया प्रभारी दिनेश जैन ने दी।
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