(कौशांबी)उठहु राम भंजहु भव चापा..मेटहु तात जनक परितापा..
- 21-Oct-24 12:00 AM
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कलाकारों ने जनक दरबार के साथ रावण-वाणासुर संवाद का किया रोमांचित मंचनकरारी, कौशाम्बी 21 अक्टूबर (आरएनएस)। नगर पंचायत करारी में चल रही रामलीला में कलाकारों ने जनक दरबार, रावण वाणासुर संवाद का रोमांचित मंचन किया। सीता स्वयंवर में सभी राजा धनुष नहीं उठा सके यहां तक कि रावण और बाणासुर जैसे योद्घा भी शिव धनुष को हिला तक नहीं सके। इस अवसर पर रावण-बाणासुर संवाद बड़े जोशीले और मर्मस्पर्शी रहे। जब सभी राजा लोग शिव धनुष के समक्ष शक्तिहीन हो गए तब महर्षि विश्वामित्र ने राम से कहा ..उठहु राम भंजहु भव चापा..मेटहु तात जनक परितापा..। इसी के साथ उस दिन की रामलीला का समापन होता है। जय श्री राम के जयघोष से रामलीला मैदान गुंजायमान रहा।मिथिला के राजा जनक के आमंत्रण पर राम- लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ राजा जनक के यहां सीता स्वयंवर में पहुंचते हैं। राम, लक्ष्मण के सौंदर्य को देख वहां सभी मोहित हो जाते हैं। इसी बीच लंकापति रावण बिना आमंत्रण सीता स्वयंवर में पहुंचता है। यह देखकर सभापति बाणासुर रावण का परिचय पूछते हैं। बाणासुर के रावण से परिचय पूछते ही वह क्रोध से तमतमा उठता है और फिर यहीं से रावण और बाणासुर का संवाद शुरू होता है। लंकापति रावण सीता स्वयंवर के लिए आमंत्रण न मिलने पर राजा जनक पर क्रोधित होता। निमंत्रण न दिए जाने का कारण पूछता है। जनक कहते हैं कि समुंदर पार लंका जाना संभव नहीं था। इसीलिए निमंत्रण नहीं भेज सके। तो रावण और क्रोधित हो जाता है और कहता है कि अगर आप ने समुद्र में एक पत्र भी डाल दिया होता तो समुंद्र में इतना साहस नहीं होता कि हम तक वह न पहुंचा देता। उसके पश्चात सीता स्वयंवर में आये रावण सहित तमाम राजाओं ने धनुष तोडऩे की पूरी कोशिश की, पर वह हिला तक ना सके। राजा जनक की चिता बढ़ जाती है। तभी व्यास जी चैपाई पढ़ते हैं उठहु राम भंजहु भव चापा..मेटहु तात जनक परितापा..। इसी साथ लीला का समापन हो जाता है। इस मौके पर रामलीला कमेटी के अध्यक्ष संजय जयसवाल ट्रस्टी रमेश चंद शर्मा, बच्चा सिंह कुशवाहा राकेश कुमार जायसवाल पंकज शर्मा प्रबंधक ज्ञानू शर्मा आदि लोग मौजूद रहे।
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