(कौशांबी)सेलरहा गांव में मसूरिया माता के स्थान पर राहगीर झुकाते हैं शीश

  • 08-Oct-24 12:00 AM

सिराथू, कौशाम्बी। जिला मुख्यालय मंझनपुर से सिराथू मार्ग पर सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित सेलरहा पश्चिम गांव के समीप सड़क किनारे स्थित मसूरिया माता के मंदिर तक रात दिन छोटे बडे वाहन आते जाते हैं। ऐसे में श्रद्धालु बड़े आसानी से मंदिर तक पहुंचते है। सड़क किनारे मंदिर स्थापित होने के चलते हर राहगीर माता रानी के सामने नतमस्तक होकर आगे बढ़ते है।पौराणिक मान्यता के अनुसार सेलरहा पश्चिम गांव में मसूरिया माता का स्थान प्रचीन है। ग्रामीणों का कहना है कई पीढियो से धार्मिक स्थल के बारे में सुनते आ रहे हैं। पुराने पीपल के वृक्ष के नीचे स्थित माता रानी के मंदिर में पूजा अर्चना के लिए काफी दूर से भक्त आते हैं और माता रानी की आराधना कर अपने मनोरथ सिद्ध होने का वरदान पाते हैं। मनोकामना पूरी होने पर प्रसाद व भंडारे का आयोजन भक्त करते हैं। नवरात्र में नव दिन विशेष पूजा का महत्व रहता है ऐसे में आसपास के गांव सहित दूसरे जनपद से भी लोग माता जी की आराधना के लिए पहुंचते हैं। मंदिर के सामने सड़क के पार भगवान शिव व बजरंगबली का बड़ा मंदिर बना हुआ है । मसूरिया माता की पूजा करने के बाद श्रद्धालु शिव परिवार और हनुमान जी की पूजा करते है।रामदास पुजारी ने बताया कि मसूरिया माता के मंदिर का इतिहास पुराना है। गांव के लोगों ने बताया कि पहले से पीपल का विशाल वृक्ष है।उसी के नीचे मां दुर्गा की एक छोटी सी मूर्ति थी। कडा धाम से गंगा स्नान लौटने वाले श्रद्धालु इस स्थान पर पूजा पाठ करने के बाद विश्राम करते थे ।पश्चिम शरीरा के स्वर्णकार रघुवीर प्रसाद गंगा स्नान करके लौटे थे और यहां रुक कर पूजा अर्चना की और पुत्र प्राप्ती की कामना की जिसके बाद उन्हें तीन संताने हुई साठ के दशक में उन्होंने इस स्थान पर मसूरिया माता के मंदिर का निर्माण कराया था। चौत्र नवरात्र की रामनवमी व दशमी को दो दिवसीय मेले का आयोजन होता है। मसूरिया माता के स्थान पर मार्ग से निकलने वाले राहगीर शीश झुकाकर आगे बढ़ते हैं। सोमवार और शुक्रवार को पूजा पाठ करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ होती है । चौत्र व अश्विन नवरात्र में नौ दिन तक सुबह से लेकर शाम तक पूजा पाठ भजन कीर्तन व भंडारे का आयोजन होता है। धार्मिक स्थल पर पूजा पाठ के लिए आसपास गांव के अलावा दूसरे जनपद से सैकडों भक्त आते है। मंदिर की व्यवस्था दान पात्र में मिली रकम से होती है इसके अलावा भंडारे के लिए गांव सहित आसपास के लोगों से सहयोग लिया जाता है चौत्र नवरात्र के रामनवमी व दशमी को मेले का आयोजन होता है जिसमें काफी दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। रामचरितमानस पाठ का आयोजन किया जाता है और उसके बाद विशाल भंडारा होता है।




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