(ग्वालियर) विपक्ष में रहते हुए तोमर भी बिजली के खंभों पर चढ़ते हुए खूब नजर आए
- 30-Oct-23 12:00 AM
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ग्वालियर,30 अक्टूबर (आरएनएस)। थोड़ा पीछे चलते हैं। बात तब की है जब उपनगर ग्वालियर में आधा लाख से अधिक लोगों को सीधे काम-धंधे से जोड़कर रखने वाली फैक्ट्रियां एक-एक करके धुंआ उगलना बंद कर रही थीं और इन फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोग अपने-अपने घरों में बैठने को मजबूर हो चले थे। यह वह दौर था जब उपनगर ग्वालियर के काम धंधे ठप हो गए थे। कारेाबार बैठ गया था और तब सबसे ज्यादा आंदोलन भी उपनगर ग्वालियर में होते थे। इसी दौर में आंदोलन करते-करते अपनी-अपनी पीठ पर लाठियां खा-खाकर राजनीति के अखाड़े में कूदने वाले सुनील शर्मा बहुत मजबूत हुए और फिर प्रद्मुन सिंह तोमर भी लाठियां झेल-झेलेकर आगे बढऩे लगे। दोनों की मंजिल एक ही थी। विधनसभा पहुंचना। यही वह दौर था जब इन दोनों ही नेताओं के झंडे-डंडे वाले लोग सिंधिया के स्वागत के लिए रेलवे स्टेशन को सब्जी मंडी की तरह बनाकर रख देते थे। दोनों में आगे निकलने की होड़ थी। दोनों ही कांग्रेस में थे और यही दोनों अब चुनावी मैदान में दूसरी बार आमने सामने हैं। दोनों ने राजनीतिक का ककहरा उस समय से पढऩा शुरु किया जब बड़े महाराज यानी माधवराव सिंधिया ही ग्वालियर में कांग्रेस हुआ करते थे। छात्र राजनीति से इनकी राजनीतिक क्लास शुरु हुई थी। दोनों में होड़ लगी रहती थी कि सिंधिया के स्वागत में कौन कितनी भीड़ ले जाता है। चूंकि उपनगर ग्वालियर में बेरोजगारों की फौज घर बैठी थी इसलिए वह इन दोनों नेताओं के झंडे-डंडे लेकर घुमा करती थी। समय बदला। जूनियर महाराज राजनीति में आए तो कांग्रेस के टिकट की दौड़ में पद्मुन सिंह तोमर बाजी मार ले गए। तब से दोनों में प्रतिस्पर्धा और भी कांटे की होती चली गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोडऩे पर तोमर को सिंधिया के साथ चले आए पर सुनील शर्मा कांग्रेस के दामन से ही लिपटे रहे और कमलनाथ ने इन्हें उपचुनाव में पहली बार टिकट दिया। जिसमें इन्हें करारी हाल मिली पर कांग्रेस और कमलनाथ ने एक बार फिर इन पर भरोसा किया और तोमर के सामने मैदान में उतार दिया। अनिल पुरोहित
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