(चित्रकूट)भागवताचार्य ने श्रीकृष्ण-रुकमणि विवाह का सुनाया प्रसंग

  • 23-Oct-24 12:00 AM

-कहा कि विवाह योग है इसे भोग न बनाएंचित्रकूट 23 अक्टूबर (आरएनएस)। श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन कथा व्यास आचार्य नवलेश दीक्षित रुकमणी विवाह की कथा सुनाते हुए कहा कि व्यक्ति को समय से गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करना चाहिए। विवाह धार्मिक संस्कार है जो एक योग है, लेकिन आज उसे भोग तक सीमित कर रखा है। भटके हुए मन को एक खूंटे में बांध देने का नाम ही विवाह है।राष्ट्रीय रामायण मेला प्रेक्षागृह में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में भागवतरत्न आचार्य नवलेश दीक्षित ने कहा कि संसार में सब मन का खेल है। मन चलायमान है। सुखी, दुखी, पापी, पुण्शत्मा केवल मन ही सोचता है। जो सब कुछ मान ले उसी का मन है। बाल लीलाओ के साथ रास पंचाध्यायी की महिमा का उल्लेख करते हुए बताया कि यह रास जीवात्मा और परमात्मा के मिलन का परम संयोग है। गोपिया हर एक इन्द्रियो से कब्ज रस का पान करती है। रास पंचाध्यायी श्रवण मात्र से जीव का हृदय अंत:करण पवित्र हो जाता है। रुकमणी विवाह के बारे में कथा व्यास ने विस्तार से श्रोताओं को समझाया। बताया कि भगवान श्रीकृष्ण की हर एक कथा मानव को आध्यात्मिक चेतना प्रदान करती है। इसलिए कथा को सावधानी के साथ सुनना चाहिए। अर्थ का अनर्थ नहीं लगाना चाहिए। कार्तिक मास के पावन अवसर पर कथा का पुण्य फल मिलता है। इस मौके पर संतोषी अखाड़ा के महंत मौजूद रहे। आरती के पश्चात प्रसाद वितरण किया गया। इस दौरान बड़ी तादाद में श्रोतागण मौजूद रहे।




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