
(जगदलपुर)= कांटों के झूले में झूलती माई ने दी पर्व की स्वीकृति =
- 22-Sep-25 12:45 PM
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जगदलपुर। , 22 सितबंर (आरएनएस )। विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व का एक महत्वपूर्ण काछनगादी पूजा विधान रविवार को संपन्न हुआ। इस विधान में मिरगान समाज की कुंवारी कन्या काछनदेवी कांटे की झूले पर सवार होकर बस्तर दशहरा पर्व निर्विघ्न संपन्न होने के साथ अपनी अनुमति प्रदान करती हैं। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व का प्रमुख विधान काछनगादी रस्म में काछनदेवी ने मिरगान समाज की एक कुंआरी कन्या पर सवार होकर और बेल के कांटों से बने झूले में झूलकर दशहरे के निर्विघ्न आयोजन की अनुमति और आशीर्वाद प्रदान किया। काछनदेवी से बस्तर के माटी पुजारी कमलचंद भंजदेव ने बस्तर दशहरा के निर्विघ्न आयोजन की अनुमति मांगी। इस अवसर पर वन मंत्री केदार कश्यप, सांसद एवं अध्यक्ष बस्तर दशहरा समिति के अध्यक्ष महेश कश्यप, जगदलपुर विधायक किरण देव, महापौर शसंजय पांडे, अन्य जनप्रतिनिधियों सहित बस्तर दशहरा पर्व के परंपरागत सदस्य मांझी, चालकी, नाइक, पाइक, मेंबर, मेंबरिन, पुजारी, गायता, बस्तर कमिश्नर डोमन सिंह, आईजी सुंदरराज पी, कलेक्टर हरिस एस, पुलिस अधीक्षक शलभ सिन्हा, अपर कलेक्टर सीपी बघेल और बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।बॉक्स?काछनगादी रस्म का महत्व?बस्तर दशहरे में काछनगादी रस्म अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके बिना बस्तर दशहरे की शुरुआत नहीं होती। मान्यता है कि रण की देवी काछनदेवी, आश्विन अमावस्या के दिन पनका जाति की एक कुंआरी कन्या के शरीर में प्रवेश करती हैं। यह कन्या, जिसे देवी का स्वरूप माना जाता है, भंगाराम चौक स्थित काछनगुड़ी में बेल के कांटों से बने एक विशेष झूले पर लेटकर दशहरे के सफल आयोजन की अनुमति देती है। इस वर्ष भी 10 साल की बच्ची पीहू दास पर सवार देवी ने यह आशीर्वाद दिया। ज्ञात हो कि बस्तर दशहरा पर्व यहां पर सामाजिक समरसता का एक अनुपम
दाहरण है और बस्तर के स्थानीय विभिन्न समाजों के लिए बस्तर दशहरा पर्व में पृथक-पृथक दायित्व बंटे हुए हैं जिसे सभी समाजों के सदस्यों द्वारा पूरी तरह से सहकार की भावना के साथ निर्वहन कियाजाता है।बॉक्सपरंपराओं का पालनकाछनगादी पूजा विधाकाछन देवी ने दी अनुमति, ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व हुआ शुरू= कांटों के झूले में झूलती माई ने दी पर्व की स्वीकृति =जगदलपुर। विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व का एक महत्वपूर्ण काछनगादी पूजा विधान रविवार को संपन्न हुआ। इस विधान में मिरगान समाज की कुंवारी कन्या काछनदेवी कांटे की झूले पर सवार होकर बस्तर दशहरा पर्व निर्विघ्न संपन्न होने के साथ अपनी अनुमति प्रदान करती हैं। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व का प्रमुख विधान काछनगादी रस्म में काछनदेवी ने मिरगान समाज की एक कुंआरी कन्या पर सवार होकर और बेल के कांटों से बने झूले में झूलकर दशहरे के निर्विघ्न आयोजन की अनुमति और आशीर्वाद प्रदान किया। काछनदेवी से बस्तर के माटी पुजारी कमलचंद भंजदेव ने बस्तर दशहरा के निर्विघ्न आयोजन की अनुमति मांगी। इस अवसर पर वन मंत्री केदार कश्यप, सांसद एवं अध्यक्ष बस्तर दशहरा समिति के अध्यक्ष महेश कश्यप, जगदलपुर विधायक किरण देव, महापौर शसंजय पांडे, अन्य जनप्रतिनिधियों सहित बस्तर दशहरा पर्व के परंपरागत सदस्य मांझी, चालकी, नाइक, पाइक, मेंबर, मेंबरिन, पुजारी, गायता, बस्तर कमिश्नर डोमन सिंह, आईजी सुंदरराज पी, कलेक्टर हरिस एस, पुलिस अधीक्षक शलभ सिन्हा, अपर कलेक्टर सीपी बघेल और बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।
बॉक्सकाछनगादी रस्म का महत्वबस्तर दशहरे में काछनगादी रस्म अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके बिना बस्तर दशहरे की शुरुआत नहीं होती। मान्यता है कि रण की देवी काछनदेवी, आश्विन अमावस्या के दिन पनका जाति की एक कुंआरी कन्या के शरीर में प्रवेश करती हैं। यह कन्या, जिसे देवी का स्वरूप माना जाता है, भंगाराम चौक स्थित काछनगुड़ी में बेल के कांटों से बने एक विशेष झूले पर लेटकर दशहरे के सफल आयोजन की अनुमति देती है। इस वर्ष भी 10 साल की बच्ची पीहू दास पर सवार देवी ने यह आशीर्वाद दिया। ज्ञात हो कि बस्तर दशहरा पर्व यहां पर सामाजिक समरसता का एक अनुपम उदाहरण है और बस्तर के स्थानीय विभिन्न समाजों के लिए बस्तर दशहरा पर्व में पृथक-पृथक दायित्व बंटे हुए हैं जिसे सभी समाजों के सदस्यों द्वारा पूरी तरह से सहकार की भावना के साथ निर्वहन किया जाता है।बॉक्सपरंपराओं का पालनकाछनगादी पूजा विधान के लिए रविवार को सभी तैयारियां पूरी कर ली गई थीं। काछनगुड़ी को फूलों और रोशनी से सजाया गया था। पुजारी और राज परिवार के सदस्य परंपरानुसार देवी से अनुमति लेने पहुंचे। जैसे ही काछनदेवी ने झूले पर लेटकर अनुमति दी, पूरा क्षेत्र बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के जयकारों और आतिशबाजी से गूंज उठा। हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस अद्भुत दृश्य के साक्षी बने।बॉक्सगोल बाजार में हुई रैलादेवी की पूजाकाछनगादी पूजा विधान के पश्चात रविवार शाम जगदलपुर के गोल बाजार में रैला देवी की पारंपरिक पूजा विधिवत संपन्न हुई। जिसमें स्थानीय जनप्रतिनिधियों सहित बस्तर दशहरा पर्व के परम्परागत सदस्य मांझी,चालकी, नाइक, पाइक, मेंबर, मेंबरिन सहित जिला प्रशासन के अधिकारी-कर्मचारी, गणमान्य नागरिक और बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। इन पूजा विधानों के संपन्न होने और बस्तर दशहरा की शुरुआत हो जाने से समूचे बस्तर संभाग में उल्लास का माहौल है। के लिए रविवार को सभी तैयारियां पूरी कर ली गई थीं। काछनगुड़ी को फूलों और रोशनी से सजाया गया था। पुजारी और राज परिवार के सदस्य परंपरानुसार देवी से अनुमति लेने पहुंचे। जैसे ही काछनदेवी ने झूले पर लेटकर अनुमति दी, पूरा क्षेत्र बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के जयकारों और आतिशबाजी से गूंज उठा। हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस अद्भुत दृश्य के साक्षी बने।बॉक्सगोल बाजार में हुई रैलादेवी की पूजा काछनगादी पूजा विधान के पश्चात रविवार शाम जगदलपुर के गोल बाजार में रैला देवी की पारंपरिक पूजा विधिवत संपन्न हुई। जिसमें स्थानीय जनप्रतिनिधियों सहित बस्तर दशहरा पर्व के परम्परागत सदस्य मांझी,चालकी, नाइक, पाइक, मेंबर, मेंबरिन सहित जिला प्रशासन के अधिकारी-कर्मचारी, गणमान्य नागरिक और बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। इन पूजा विधानों के संपन्न होने और बस्तर दशहरा की शुरुआत हो जाने से समूचे बस्तर संभाग में उल्लास का माहौल है।

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