(जगदलपुर) ख से खरगोश नहीं, खतरा ही खतरा; शिक्षा के लिए जान जोखिम में डालने मजबूर हैं बच्चे

  • 09-Oct-25 01:19 AM

0 गांव में नहीं है स्कूल, रोज बाढग़्रस्त नदी पार कर दूसरे गांव में पढऩे जाते हैं बच्चे
= अर्जुन झा =
जगदलपुर, 09 अक्टूबर (आरएनएस)। नियद नेल्ला नार हो या पीएम जन मन योजना या फिर आदिवासियों के उत्थान के लिए बनाई गई कोई भी योजना, बस्तर संभाग में अपनी सार्थकता सिद्ध नहीं कर पा रही हैं। जनजातीय बच्चों को गांव में शिक्षा ग्रहण की सुविधा नहीं मिल पा रही है। आलम यह है कि गांवों के नौनिहाल बाढग़्रस्त नदी को अपनी जान जोखिम डाल कर पार करते हैं, तब कहीं जाकर वे अपने भविष्य के ताने बाने बुन पाते हैं। इन बच्चों की इस पीड़ा से न जो जनप्रतिनिधियों को कोई वास्ता और न ही जिला प्रशासन को।
ये तस्वीर देखकर आपकी रूह कांप जाएगी। ये बच्चे कोई शौकिया तौर पर तेज और उग्र धारा वाली नदी को पार नहीं करते, इस तरह रोज दो बार खतरों से खेलना उनकी नियति बन चुकी है। दिल दहलाने वाली ये तस्वीरें सामने आईं हैं बस्तर संभाग के अति नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले से। बीजापुर जिले के सुदूर गांवों में आज भी शिक्षा व्यवस्था का बड़ा बुरा हाल है। युक्तियुक्तकरण और अन्य वजहों से कई गांवों के स्कूल बंद कर दिए गए हैं। इसका खामियाजा वहां के नौनिहालों को भुगतना पड़ रहा है। शिक्षा विभाग बच्चों को सुरक्षित माहौल में पढ़ाई की सुविधा देने में नाकाम साबित हुआ है। गांवों के दर्जनों निरीह बच्चे अपनी जान हथेली पर रखकर उफनती नदी को पार करते हैं तब कहीं जाकर उन्हें क से कलम, ख से खरगोश की तालीम मिल पाती है। शिक्षा इन बच्चों के लिए ख से खरगोश नहीं बल्कि ख से खतरों वाली साबित हो रही है। बीजापुर जिले के गंगालूर क्षेत्र के कमकानार व पेद्दाजोजेर के बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए दिन में दो बार अपनी जान दांव पर लगानी पड़ती है। एकबार स्कूल जाते समय और दूसरी दफे स्कूल से घर लौटते समय। इन दोनों गांवों के बच्चों की शिक्षा की राह में बेरूदी नदी बड़ी बाधा बन गई है। दोनों गांवों में प्राथमिक शाला तक नहीं है। इसलिए मजबूरन इन बच्चों को नदी उस पार स्थित गांव के स्कूल में जाना पड़ता है। कुछ ग्रामीण अपने बच्चों को पीठ या कंधे पर लाद कर नदी पार कराते हैं, तो कई बच्चे खुद ही उफनती नदी को पार करते हैं। इन बच्चों के मन में शिक्षा के प्रति ललक ?सी कि उन्हें अपनी जान की भी परवाह नहीं रहती, मगर जिन्हें परवाह होनी चाहिए, वे बेखबर बने बैठे हैं। इन बच्चों पर न तो बीजापुर जिला प्रशासन को तरस आ रही है और न ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों को। कमकानार और पेद्दाजोजेर में स्कूल खोलकर इन मासूमों को बड़ी राहत पहुंचाई जा सकती है। मगर सवाल यह है कि जब सिस्टम ही सो रहा हो तो इस ओर ध्यान कौन देगा? वैसे बीजापुर जिले के इकलौते विधायक विक्रम शाह मंडावी ऐसे मामलों में हमेशा संवेदनशील रहते हैं। कमकानार और पेद्दाजोजेर के ग्रामीणों को अब बस अपने विधायक मंडावी से ही उम्मीद है। बरसात के मौसम में जब बेरूदी नदी पूरे शबाब पर रहती है तब पूरे चार माह तक कमकानार और पेद्दाजोजेर समेत आधा दर्जन गांव टापू बन जाते हैं।इन गांवों का संपर्क शेष दुनिया से पूरी तरह टूटा रहता है। ऐसे में प्रसव वेदना झेल रही महिलाओं और गंभीर बीमारों तथा उनके परिजनों को जो तकलीफ होती है उसे शब्दों में बयां करना मुमकिन नहीं है।
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