(जगदलपुर) दंतेवाड़ा से शुरू हुई माई दंतेश्वरी की रथयात्रा अब बस्तर दशहरा के स्वरूप में

  • 27-Sep-25 01:27 AM

0-1490 ईस्वी में शुरू हुई थी मां दंतेश्वरी की आराधना की यह अनूठी परंपरा
0 राजा पुरुषोत्तम देव ने पहली बार निकली थी दंतेवाड़ा में रथयात्रा =
= अर्जुन झा =
जगदलपुर, 27 सितबंर (आरएनए)। बस्तर की आराध्य देवी माई दंतेश्वरी की छत्र रथयात्रा समय के साथ साथ आज बस्तर दशहरा का स्वरूप ले चुकी है। वस्तुत: बस्तर दशहरा देवी दंतेश्वरी माई की रथयात्रा का महापर्व है।पहली बार 1490 ईस्वी में राजा पुरुषोत्तम देव ने अपनी राजधानी दंतेवाड़ा में देवी दंतेश्वरी माई की रथयात्रा प्रारंभ करवाई थी। राजा पुरुषोत्तम देव देवी दंतेश्वरी माई के छत्र को लेकर रानी सहित रथ पर आरूढ़ हुए थे।



दंतेवाड़ा के बाद राजधानी बस्तर गांव में स्थापित हुई। बस्तर में दंतेश्वरी माई की रथयात्रा अनवरत चलती रही। बस्तर गांव से राजधानी 1680 ईस्वी में राजधानी बस्तर गांव से स्थानांतरित होकर राजपुर में स्थापित हुई। राजपुर में राजा वीरसिंह देव ने देवी दंतेश्वरी माई की रथयात्रा पर्व को सुचारु रूप संचालित किया। इसके बाद 1720 ईस्वी में राजनगर राजधानी बनी। यहां राजा राजपाल देव ने देवी दंतेश्वरी माई की रथयात्रा पर्व को जारी रखा। इसके बाद 1770 ईस्वी में राजा दलपत देव की देखरेख और मार्गदर्शन में राजधानी जगदलपुर में देवी दंतेश्वरी माई की रथयात्रा पर्व विधिवत आयोजित होती रही। दलपत देव के बाद दरियाव देव ने राजधानी कुछ समय तक केशलूर को बनाया। वहां पर भी रथयात्रा का पर्व रस्मों के साथ आयोजित होता रहा। इसके बाद पुन: राजधानी जगदलपुर में स्थापित हुई। तब से आजतक जगदलपुर में देवी दंतेश्वरी माई की रथयात्रा पर्व मनाया जा रहा है। राजा पुरुषोत्तम देव से लेकर महारानी प्रफुल्ल कुमारी और उसके बाद महाराज प्रवीरचंद्र भंजदेव तक रानी सहित कुल 20 राजा देवी दंतेश्वरी माई के छत्र लेकर रथ पर आरूढ़ हुए हैं। चूंकि देवी दंतेश्वरी माई की रथयात्रा नवरात्रि और दशहरा पर्व के आसपास आयोजित की जाती है, इसलिए इसे आजकल बस्तर दशहरा के नाम से जाना जाता है।
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चौथी सदी की है माई दंतेश्वरी प्रतिमा
देवी दंतेश्वरी माई की प्रतिमा दंतेवाड़ा में चौथी पांचवी सदी से स्थापित है। ग्यारहवीं सदी में वर्तमान दंतेश्वरी मंदिर का निर्माण स्थानीय नागकुल के राजा जगदेक भूषण प्रथम (1023- 1063 ईस्वी) ने कराया था।
वारंगल से आए राजा अन्नमदेव ने बस्तर की अधिष्ठात्री देवी दंतेश्वरी माई को अपनी कुल देवी के रूप में स्वीकार कर पूर्ववती स्थानीय नागवंशी राजाओं की तरह देवी दंतेश्वरी माई की आज्ञा अनुरूप राजकाज चलाया।
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राजाओं का बड़ा योगदान
देवी दंतेश्वरी माई की रथयात्रा पर्व को राजाओं ने सुचारू रूप से जारी रखा। पुरुषोत्तम देव से लेकर 20 पीढ़ी तक बस्तर राजपरिवार ने मूल परम्परा को जारी रखा। यह परम्परा अनवरत चलती रहनी चाहिए। राजा, पुजारी, मांझी मुखिया पटेल गायता सिरहा ही बस्तर की संस्कृति के ध्वज वाहक हैं। देवी दंतेश्वरी माई की रथयात्रा का पर्व बस्तर दशहरा बस्तर की जनसमुदाय का उनके प्रति भक्ति का पर्व है।
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