
(जगदलपुर) बदली गरबा की संस्कृति, अब मां की आराधना कम दिखावा ज्यादा
- 30-Sep-25 02:18 AM
- 0
- 0
0 परंपरा और संस्कृति पर लगा आधुनिकता का ग्रहण= = भक्ति के लिए नहीं दिखावे के लिए गरबा करते हैं युवा
= अर्जुन झा =
जगदलपुर, 30 सितंबर (आरएनएस)। गरबा वस्तुत: देवी मां की स्तुति और आराधना की नृत्य कला है, मगर अब इसमें फूहड़ता, पाश्चात्य संस्कृति और अश्लील फिल्मी गानों का घालमेल हो गया है। इसमें मातारानी की आराधना की बजाय भड़कीले पोशाकों और भोंडे नृत्य का प्रदर्शन ज्यादा होने लगा है। वहीं दूसरी ओर मातारानी के दरबार में गिने चुने लोग ही पहुंचते हैं, जबकि गरबा पंडाल खचाखच भरे रहते हैं। आखिर हमारी आस्था को काठ क्यों मार गया है, नई पीढ़ी धर्म आराधना के बदले दिखावे के पीछे क्यों भाग रही है? इस पर नगर के बुद्धिजीवी वर्ग और पालकों को गहन मंथन करना होगा। हाल के वर्षों में जगदलपुर शहर में त्योहारों के परिदृश्य में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है। गरबा पंडालों की ओर जनता की भीड़ और उत्साह, पारंपरिक रूप से भारी जुटने वाले दुर्गा पंडालों के समानांतर या कभी-कभी उससे भी अधिक दिखाई दे रही है। इस वर्ष तो आलम यह है कि दुर्गा पंडालों मे गिनती के लोग ही नजऱ जा रहे हैं। पूजा पंडाल सूने सूने से रहते हैं, जबकि सांझ ढलते ही गरबा पंडालों की रौनक बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। यहां ज्यादातर युवा और तथाकथित संभ्रांत घरों की कम आयु वाली महिलाएं ज्यादा होती हैं।

स्थानीय युवाओं, बच्चों, किशोर किशोरियों और महिलाओं कहना है कि अब गरबा केवल एक पारंपरिक नृत्य नहीं रह गया है, यह सोशल मीडिया, फेस्टिवल, लाइफस्टाइल और युवा पहचान का एक बड़ा मंच बन गया है। गरबा में आने का मतलब अब सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि दोस्तों के साथ मिलने-जुलने, फोटो-शूट करने, सेल्फी लेने, रील बनाने और लाइव-विडियो और सोशल मीडिया मे अपलोड कर स्टैटस बनाना भी होता है। इसमें भड़कीले रंगीन पोशाक, रंग बिरंगी रोशनी, मधुर संगीत के साथ थीम और प्रोफेसनल लोगों द्वारा इवेंट मैनेज किया जाता है।
बॉक्स
देवी देवताओं पर अहसान?
वहीं कुछ बुजुर्ग और दुर्गा पंडाल के आयोजक इसे परंपरा से दूरी मानते हैं। वे कहते हैं- हमारी पूजा और भक्ति पहले जैसी गंभीर रहती थी, अब नहीं रह गई है। अब तो सब कुछ उत्सव और इवेंट की तरह हो गया है। इसके विपरीत दुर्गा पंडालों पर पारंपरिक भक्तों के साथ श्रद्धालु पूरे परिवार के साथ आते हैं, पर युवा उपस्थिति अपेक्षाकृत कम दिखती है जब तक कि पंडाल में संगीत-प्रोग्राम या सांस्कृतिक कार्यक्रम और भक्ति, पूजा और पारंपरिक रस्मों में युवा पहुंच भी जाते हैं, तो उनकी यह उपस्थिति सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर ज्यादा नजर है। वे पूजा पंडालों में अपनी हाजिरी का सोशल मीडिया पर इस कदर प्रचार करते हैं, मानो पूजा पंडाल में जाकर उन्होंने देवी मां पर अहसान कर दिया है।
बॉक्स
पूजा पर भी आधुनिकता हावी
दुर्गा पंडाल परंपरा, भक्ति और सांस्कृतिक कला का संगम हैं। बदलते दौर ने कुछ पंडालों को भी हल्की आधुनिकता अपनाने के लिए प्रेरित किया है। जैसे संगीत समागम, छोटे-छोटे सांस्कृतिक कार्यक्रम और बेहतर व्यवस्था ताकि युवा भी आकर्षित हों। मगर इस पहल से कुछ चुनौतियां भी सामने आ रही हैं, मसलन पूजा-रिवाजों का शोर शराबे में दब जाना, पारंपरिक मंत्र-भजन को कम स्थान मिलना, और समारोह का व्यावसायीकरण।
बॉक्स
प्रोफेशनल इवेंट बना गरबा
गरबा आज के युवाओं के लिए एक आकर्षक यंगस्टर्स प्रोफेशनल इवेंट के रूप में उभरकर अधिक भीड़ जुटाने का साधन बन गया है, जबकि यह साधना आराधना का माध्यम है। दुर्गा पंडाल अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक जड़ों के साथ बने रहने का प्रयास कर रहे हैं। बेहतर होगा यदि दोनों स्वरूप एक-दूसरे के विरोध में नहीं, बल्कि पूरक रूप में अपनी-अपनी खूबियों को प्रस्तुत करें, ताकि युवा गतिशीलता और पारंपरिक भक्ति दोनों का सुंदर संतुलन बना रहे।
0
Related Articles
Comments
- No Comments...