(जगदलपुर) शिरोमणि माथुर की कविता में छलका बस्तर का दर्द

  • 13-Oct-25 02:03 AM

० नक्सलवाद और पिछड़ेपन का दंश झेल रहे बस्तर की वेदना है कविता में
जगदलपुर, 13 अक्टूबर (आरएनएस)। बस्तर संभाग नक्सलवाद से बुरी तरह ग्रस्त है। अब तक लाखों निरीह लोग इसके कारण अपनी जान गंवा चुके हैं। यहां नक्सलवाद से लड़ते हुए पुलिस और सुरक्षा बलों के हजारों जवान और अधिकारी अपने प्राणों का बलिदान दे चुके हैं। इस व्यथा और वेदना पर दल्ली राजहरा की वरिष्ठ कवियित्री एवं समाजसेविका  शिरोमणि माथुर ने एक ?सी कविता रची है, जो खूब सुर्खियां बटोर रही है।        बस्तर की त्रासदी को लेकर बस्तर की आवाज शीर्षक वाली कविता में अपने दिल की वेदना व्यक्त डॉ. शिरोमणि माथुर ने व्यक्त की है। बस्तर में पनपते माओवाद और बस्तर के सामाजिक जीवन पर उसके दुष्प्रभाव को करीब 50 वर्ष से देखती, सुनती और पढ़ती आईं डॉ. शिरोमणि माथुर ने इस पर अपनी वेदना कविता के रूप में प्रस्तुत की है। बस्तर की आवाज शीर्षक उमकी कविता की पहली पंक्ति- "बहुत तड़पते बस्तरवासी, सुनिए अब उनकी आवाज" से  ही जाहिर हो जाता है कि बस्तर के बाशिंदों को इन वर्षों के दौरान कितनी मुसीबतें झेलनी पडऩी हैं और ऐसे हालातों को देखकर डॉ. शिरोमणि माथुर का मन किस कदर व्यथित हो उठा है। उनकी कविता कुछ इस तरह है -
बस्तर की आवाज
बहुत तड़पते बस्तरवासी, सुनिए अब उनकी आवाज
न्याय मांगते बस्तर वासी, उनको भी करिए आजाद
अपनी ही मस्ती में नाचें लोकनृत्य से करते प्यार
सुविधाओं से वंचित रहते
भरें शासन का भंडार
कोई आकर बचाए, कहते रहते हैं हम बारंबार
नक्सलवादी हमें सताते
बना रहे हैं हमें औजार
कीट पतंगे हमें न समझो
हम भी हैं इंसान की औलाद
तड़प तड़प कर हम मरते
अभी हटाओ नक्सलवाद
जीवन भय में बीत रहा है, मौत कभी भी आ जाती है
रक्त फैलता है धरती पर
लाशें बिछती जाती हैं
भीख में हमको जीवन दे दो
करिए अब सार्थक संवाद
जंजीरों में जकड़े हम हैं
करिए अब हमको आजाद
जरा देखिए मेरी पीड़ा
नहीं दबाओ अब आवाज
खून की होली बंद करिए
होने बस्तर को आबाद
कितने घाव सहे हैं हमने
कितनी लाशें गईं बिछाई
गिनती करना मुश्किल है
अंतहीन सी हो गाई लड़ाई
मानवता का पाठ पढ़ाते मानववादी कहां गए हैं?
नक्सलवाद बंद करो अब
बस्तरवासी बहुत ठगे गए हैं
बहुत तड़पते बस्तरवासी, सुनिए अब उनकी आवाज
न्याय मांगते बस्तरवासी, उनको भी करिए आजाद।
डॉ. शिरोमणि माथुर की यह रचना निसंदेह हर बस्तरवासी की पीड़ा को महसूस कराती है। यह कृति अब बस्तर में लोकप्रिय होती जा रही है और जन जन की आवाज भी बनती जा रही है।


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