(झाबुआ)प्रदेश के विश्वद्यालयों में छात्रों के अभिलेख में उनके जन्म तिथि भारतीय पंचांग के अनुसार भी अंकित किए जाए - ओम प्रकाश शर्मा

  • 04-Nov-23 12:00 AM

आत्मनिर्भर भारत के राष्ट्रीय संयोजक शर्मा ने महामहिम राज्यपाल को पत्र लिख कर मांग की ।झाबुआ,04 नवंबर (आरएनएस)। आत्म निर्भर भारत के राष्ट्रीय संयोजक ओम शर्मा ने मध्य प्रदेश के राज्यपाल महामहिम मंगू भाई से अनुरोध किया है की मध्यप्रदेश के विश्वद्यालयों में छात्रों के अभिलेख में उनके जन्म दिनांक भारतीय पंचांग के अनुसार भी अंकित किए जाए।इस संबंध में जानकारी देते हुए एक भेंट वार्ता में उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरा के समावेश किए जाने पर विशेष जोर दिया गया है साथ ही देश को विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनता के लिए जो पंच प्रण प्रतिपादित किए है ,उसमे भी गुलामी के प्रतिको से मुक्ति हेतु विशेष आव्हान किया है। भारतीय पंचांग भी पूर्णत: वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित होकर बीते हुए अनंत काल से लेकर आने वाले अनंत वर्षो तक प्रत्येक पल की सटीक गणना उपलब्ध कराता है। हम अपने सारे तीज त्यौहार भारतीय पंचाग के आधार पर ही मनाते है।यहां तक की पूर्वजों के श्राद्ध भी तिथि अनुसार ही करते है लेकिन हम अपना जन्मदिन अंग्रेतारीख के अनुसार मनाते है।उन्होने बताया कि इसी परिप्रेक्ष्य में महामहिम राज्यपाल मंगुभाई से अनुरोध किया है की मध्यप्रदेश के विश्वविद्यालयों में छात्रों के अभिलेख में उनके जन्मदिवस भारतीय पंचांग अनुसार भी अंकित किए जाने से इस वैज्ञानिक काल गणना को जन मान्यता मिलेगी। इसी संबंध में आपने बताया की शारदा समूह झाबुआ की शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थी एवं शिक्षक अपने जन्मदिवस भारतीय पंचांग के अनुसार ही मनाते है और अंकसूची में भी अंकित किया जाता है ।शर्मा ने कहा कि हम सभी तीज त्यौहार पंचाग की तिथि के अनुसार मनाते है तो फिर जन्म दिन अंग्रेतारीख के अनुसार क्यो मनायें ? राम नवमी, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, नवरात्रि आदि त्यौहार भी भारतीय परंपरानुसार तिथियों को ही मनाये जाते है। भारतीय वैदिक पंचाग की काल गणना पूरी तरह वैज्ञानिक और प्राचीन है ।ओम शर्मा का कहना है कि तारीख या डेट तिथि का बिगडा हुआ रूप है । उदाहरण के रूप में यदि आपका जन्म दिन मार्च माह की किसी भी तारीख को हुआ हो और उसी तारीख के दिन आप अपना जन्म दिन मनाते है तो यह सनातनी पंरम्परानुसार गलत है। जिस दिन आपका जन्म हुआ उस समय को सही तौर पर सिर्फ तिथि से ही जाना जा सकता है। यदि जन्मदिन चतुर्थी को हुआ है तो यही जन्म की सही तारीख होना चाहिये ।उन्होने बताया कि आम तौर पर अग्रेतारीखे 24 घटे मे बदलती है जबकि हिन्दु पंचाग के अनुसार एक तिथि उन्नीस घंटे से लेकर चैबीस घंटें तक की होती है। इसका मतलब यह है कि कोई तिथि 19 घंटे की होगी तो कोई तिथि 24 घंटे की भी हो सकती है । अब यदि 19 घंटे की होगी तो इसका मतलब है कि मध्यान्तर में ही या मध्यरात्रि में ही तिथि बदल जायेगी । अक्सर दिन में भी चांद नजर आता है । दर असल यही तिथि ग्रह,नक्षत्र,सूर्य,चंद्र आदि को ध्यान में रख कर निर्मित की गई है ।भारतीय पंचाग के अनुसार सूर्योदय से दिन बदलते है । जिन्हे सावन दिन कहते है, मतलब सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक । जहां तक तिथि का प्रश्न है तो वह सूर्य और चंद्रमा के अंतर से तय की जाती है, लेकिन उसकी गणना भी सूर्योदय से ही की जाती हे । उसी तिथि को मुख्य माना जाता है जो उदयकाल में हो । प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष 15 तिथि होती है, लेकिन क्योकि सौर दिन से चंद्र दिन छोटा होता है इसलिये कई बार एक दिन में दो या तीन तिथियां भी पड सकती है। इसमें तिथियों की तीन स्थितियां बनती है । जिस तिथि में केवल एक बार सूर्योदय होता है उसे सुधि तिथि कहते है, जिसमें सूर्योदय होता ही नही यानी वह सूर्योदय के बाद शुरू होकर अगले सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो जाती है उसे क्षय तिथि कहते है, इसमें एक दिन में तीन तिथियां हो जाती है और तीसरी स्थिति वो जिसमें दो सूर्योदय हो जाये उसे तिथि वृद्धि कहते है ।हिन्दू पंचाग के महीने नियमित होते है और चंद्रमा की गति अनुसार 29.5 दिन का एक चन्द्रमास होता हे । हिन्दू सौर-चन्द्र नक्षत्र पंचाग के अनुसार माह के 30 दिन को चन्द्रकला के आधारपर 15-15 दिन के 2 पक्षों में बांटा गया है । शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष । शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहते है और कृष्णपक्ष की अन्तिम तिथि अमावस्या होती है । पंचाग के अनुसार पूर्णिमा माह की 15 वी और शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि है और जिस दिन चन्द्रमा आाकाश में पूर्ण रूप से दिखाई देता है । पंचाग के अनुसार अमावस्या माह की 30 वीं और कृष्णपक्ष की अन्तिम तिथि हैं जिस दिन चन्द्रमा आकाश में दिखाई नही देता है ।ओम प्रकाश शर्मा के अनुसार समाज में अधिकतर परिवार किसी न किसी सदस्य का जन्मदिन अवश्य मनाते है परन्तु उसे मनाने की पद्धति का स्वरुप पाश्चात्य होने के कारण हमें आध्यात्मिक दृष्टि से कोई फायदा तो नहीं होता, लेकिन उसका नुकसान हमें अवश्य होता है।हिंदू धर्म में प्रत्येक कृति आनंद प्राप्ति के लिए की जाती है। प्रत्येक कृति करते समय उसे ईश्वर के साथ कैसे जोड़ा जा सकता है, यह हमारे ऋषि मुनियों की अद्वितीय देन है। हिंदू धर्म धार्मिक कृतियों के साथ साथ सामाजिक कृतियों के माध्यम से भी ईश्वर से अनुसन्धान रखना सिखाता है। यही हिंदू धर्म की विशेषता है। समाज में अधिकतर परिवार किसी न किसी सदस्य का जन्मदिन अवश्य मनाते है परन्तु उसे मनाने की पद्धति का स्वरुप पाश्चात्य होने के कारण हमें आध्यात्मिक दृष्टि से कोई फायदा तो नहीं होता, लेकिन उसका नुकसान हमें अवश्य होता है। भारतीय संस्कृति के अनुसार जन्मदिन क्यों मनाया जाना चाहिए इस विषय पर भी मनन करना जरूरी है ।शर्मा का कहना है कि हम सभी सनातनियों को भारतीय संस्कृति अनुसार जन्मदिन मनाना चाहिये । आजकल हिंदू, पश्चिमी संस्कृति के समक्ष घुटने टेक रहे हैं। परिणाम स्वरूप हमारी धार्मिक कृतियों पर पश्चिमी संस्कृति का अत्यधिक प्रभाव पडा है। ऐसी कृतियों से ईश्वरीय चैतन्य तो प्राप्त नहीं होता, साथ ही ये कृतियां आध्यात्मिक दृष्टि से हानिकारक होती हैं।उनका मानना है कि जन्मदिन अर्थात जीव की आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नति। जीव की निर्मिति से ही उसकी आध्यात्मिक उन्नति आरंभ होती है। यद्यपि जीव प्रत्यक्ष साधना नहीं कर रहा हो, तब भी उस पर किए गए संस्कारों के कारण उसकी सात्त्विकता में वृद्धि होती है तथा उसकी आध्यात्मिक उन्नति आरंभ होती है।जन्मदिन तिथि के अनुसार मनाने के महत्त्व के बारे में उनका मत है कि जिस तिथि पर हमारा जन्म होता है, उस तिथि के स्पन्दन हमारे स्पन्दनों से सर्वाधिक मेल खाते हैं। इसलिए उस तिथि पर परिजनों एवं हितचिन्तकों द्वारा हमें दी गई शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद सर्वाधिक फलित होते हैं इसलिए जन्मदिन तिथिनुसार मनाना चाहिए।ओम शर्मा के अनुसार जीवन में बाधाओं के विरुद्ध संघर्ष करने की क्षमता प्राप्त होना - जन्मदिन पर (तिथि पर) ब्रह्माण्ड में कार्यरत तरंगें जीव की प्रकृति एवं प्रवृत्ति के लिए पोषक होती हैं तथा उस तिथि पर की गई सात्त्विक एवं चैतन्यात्मक कृतियां जीव के अन्तर्मन पर गहरा संस्कार अंकित करने में सहायक होती हैं। इस कारण जीव के आगामी जीवन क्रम को आध्यात्मिक बल प्राप्त होता है और जीवन में आने वाली बाधाओं के विरुद्ध संघर्ष करने की क्षमता उसे प्राप्त होती है।पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण कर अनेक लोग मोमबत्तियां जलाकर और केक काटकर जन्मदिन मनाते हैं। मोमबत्ती तमोगुणी होती है, उसे जलाने से कष्टदायक स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं। उसी प्रकार हिंदू धर्म में ज्योत बुझाने की कृति अशुभ एवं त्यागने योग्य मानी गई है। इसलिए जन्मदिन पर मोमबत्ती जलाने के उपरांत उसे जानबूझ कर न बुझाएं।इसी तरह केक काटकर भी जन्मदिन न मनाने के आरे मे विचार व्यक्त करते हुए उन्होने बताया कि केक पर छुरी चलाना अशुभ क्रिया का प्रतीक है। इसलिए जन्मदिन के शुभ अवसर पर ऐसी कृति से आगे की पीढ़ी पर कुसंस्कार आते हैं। आरती के पश्चात आकृष्ट ईश्वरीय चैतन्य को ग्रहण करते समय ऐसे विधि कर्म करना, उस चैतन्य में कष्टदायक स्पंदनों द्वारा बाधा उत्पन्न करने के समान है। किसी भी शुभ अवसर पर जानबूझ कर इस प्रकार की लयकारी विधि करना धर्म विघातक प्रवृत्ति का लक्षण है।आत्म निर्भर भारत के राष्ट्रीय संयोजक ओम शर्मा ने बताया कि उनके शैक्षणिक संस्थान में स्कूली बच्चों एव ंविद्यालयीन परिवार के गुरूजनों आदि का जन्म दिन भारतीय पंचाग की तिथि से मनाने की परम्परा प्रारंभ कर दी गई है । पूरे प्रदेश के विश्व विद्यालयों में भी यदि भारतीय पंचाग के अनुसार जन्म तिथि भी अंग्रेमाह की तारीख के साथ भी छात्र छात्राओं के अभिलेख में दर्ज की जाती है तो निश्चित ही मध्यप्रदेश देश का प्रथम राज्य बन सकेगा जिसमें भारतीय पंचागानुसार जन्म तिथियां अंकीत की जाती है। उन्होने समस्त प्रदेशवासियों एवं जिले के निवासियों से भी अनुरोध किया है कि अंग्रेतारीख की बजाय पंचागानुसार तिथि को ही जन्मदिन आदि मंगल दिवस मनाया जावे तो इसका पूरे समाज पर सकारात्म प्रभाव पडेगा ।




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