(दतिया) दतिया में नरोत्तम और भारती में कांटे की टक्कर, मार्जिन बढ़ाने और पार्टी के निर्णय को सही ठहराने की लड़ाई

  • 29-Oct-23 12:00 AM

दतिया,29 अक्टूबर (आरएनएस)। लगातार तीन बार से दतिया से विधायक और प्रदेश सरकार में बड़े कद के मंत्री नरोत्तम मिश्रा फिर से मैदान में हैं। उनके सामने कांग्रेस के राजेंद्र भारती भी तीसरी बार उनका मुकाबला करने के लिए तैयार हैं। 2018 के चुनाव में भारती ने मिश्रा को कड़ी टक्कर देते हुए उनकी जीत का मार्जिन बहुत कम करके 2656 वोटों पर पहुंचा दिया था। इसीलिए इस बार गृहमंत्री मिश्रा के सामने कांटे की टक्कर से आगे जाकर सीट बचाने और अपना मार्जिन बढ़ाने की चुनौती है। वहीं भारती को यह साबित करना है कि जिस अवधेश नायक का टिकट काटकर उन्हें दिया है, वो निर्णय पार्टी का ठीक था। पीतांबरा पीठ की नगरी दतिया में चुनावी सरगर्मी जरूर है, लेकिन यहां पर वोटर बिल्कुल शांत है। बात करो तो कुछ भी स्पष्ट जवाब नहीं देता। यहां से तीन बार के विधायक और कद्दावर मंत्री नरोत्तम मिश्रा चुनाव के मैदान में हैं। पहले वे डबरा विधानसभा से चुनाव लड़ते थे, लेकिन वह क्षेत्र आरक्षित हो गया तो उन्होंने दतिया को अपना घर बना लिया। 2018 तक यही समझा जाता था कि नरोत्तम मिश्रा के लिए चुनाव केवल औपचारिकता है और जनता उनके साथ है, लेकिन 2018 में उनकी जीत का मार्जिन घटकर केवल 2656 वोट पर रह गया तो राजनीतिक पंडित आश्चर्य में पड़ गए। इसके साथ विपक्षी दल भी समझ गए कि दतिया अभेद दुर्ग नहीं रहा और यदि थोड़ी मेहनत की जाए तो बाजी पलट सकती है और खासतौर से कांग्रेस ने उन्हें घेरने के लिए रणनीति भी बनानी शुरु कर दी। भाजपा के नेता अवेधश नायक को कांग्रेस में शामिल करा दिया और उन्हें दतिया से टिकट भी दे दिया, लेकिन कई बार चुनाव लड़ चुके और 2018 में नरोत्तम मिश्रा को कड़ी टक्कर देने वलो राजेंद्र भारती, नायक की उम्मीदवारी निरस्त करवाकर फिर से अपने क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतर गए। राजेन्द्र भारती दतिया से कभी सपा से तो कभी एनसीपी से लगातार चुनाव लड़ते आ रहे हैं। 2008 में भारती बसपा से चुनाव लड़कर दूसरे स्थान पर रहे थे, जिसके कारण कांग्रेस प्रत्याशी घनश्याम सिंह को तीसरे स्थान पर जाना पड़ा था। अवधेश नायक भाजपा व संघ के साथ संगठन से जुड़े पुराने नेता हैं और यदि डबरा आरक्षित सीट नहीं होती तो वे ही यहां का प्रतिनिधित्व करते। जब उमा भारती ने भारतीय जनशक्ति पार्टी बनाई तो नायक उनके साथ चले गए और 2008 में चुनाव भी लड़े। उन्हें उस समय 13 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। इससे यह तो साफ है कि नायक का अपना एक प्रभाव दतिया में है और इस बार कांग्रेस में जाने से पार्टी को फायदा होता, लेकिन नाटकीय ढंग से उनका टिकट कट गया और वे खाली हाथ रह गए। फिलहाल राजेन्द्र भारती, गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के सामने मैदान में हैं। वहीं अवधेश नायक का टिकट काट देने से उनके मन में फांस तो आ गई है। उनके टिकट कटने को लोग गलत तो बता रहे हैं, लेकिन स्पष्ट तौर पर ज्यादा कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं। हालांकि नायक ने भारती से गले मिलकर दतिया में संदेश देने की कोशिश की है कि वे एक ही हैं। अब यह संदेश वोटर कितना समझ पाएगा, इसका पता तो मतगणना वाले दिन ही लगेगा। इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है। वैसे भी परंपरागत रूप से कांग्रेस और भाजपा ही दतिया में चुनाव लड़ते हैं। वहीं गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के सामने अब कांटे की टक्कर से आगे निकलकर अपना मार्जिन बढ़ाने की चुनौती है। भाजपा के साथ एंटी इनकंबेंसी भी है। अनिल पुरोहित




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