(धार) एक वोट की कीमत क्या होती है यह अच्छे से जानते हैं धार के मतदाता और उम्मीदवार
- 06-Nov-23 12:00 AM
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धार,06 नवम्बर (आरएनएस)। यहां का मतदाता और उम्मीदवार एक वोट की कीमत को बहुत अच्छे से पहचानता है। इस बार के घमासान के कारण तो हर एक वोट को लेकर फिक्र और ज्यादा बड़ी हो गई है। तेजतर्रार विक्रम वर्मा के लिए यह चुनाव साख और अपनी लम्बी धारदार राजनीति की बड़ी परीक्षा साबित हो रहा है। उन्हेंयहां पहले भी अपनों का विरोध का सामना करना पड़ा मगर लपटें पहली दफा इतनी ऊंची उठी हैं कि दिल्ली से फायर ब्रिगेड भी उस पर काबू नहीं कर पाए। इस आग से अब उन्हें ही पार पाने की जुगत लगानी है। अमित शाह की समझाइश के बावजूद राजू यादव बगावत का झंडा उठाकर मैदान में घूम रहे हैं। जिलाध्यक्ष के पद से हटाने से पहले से ही तेजतर्रार बुजुर्ग और नए जोश वाले युवा नेता का तालमेल गड़बड़ा गया था। पद से हटने के बाद बात और बिगड़ती चली गई। विक्रम वर्मा को लेकर राजू यादव ने मुखर होकर मोर्चा खोल दिया। कहते हैं मंजे हुए राजनेता ऐसे मामलों में कम बोलते हैं, जो करन होता है चुपचाप कर जाते हैं और फिर विक्रम वर्मा तो इसमें माहिर हैं। तमाम विरोध और बगावती माहौल के बाद भी नीना वर्मा के टिकट पर आंच नहीं आई, यह वर्मा की रणनीति का ही परिणाम है। हालांकि इस विरोध से नुकसान न होगा, कहना बेमानी है। नुकसान से इनकार बिल्कुल नहीं किया जा सकता और इसे विक्रम वर्मा से ज्यादा बेहतर और कौन जान-समझ सकता है। साल 1998 के चुनाव में पार्टी के केंद्र में थे। वे नेता प्रतिपक्ष थे। पार्टी सत्ता मतें आती तो उनका सीएम बनना लगभग तय सा था। अच्छे-भले माहौल के बीच वे खुद 147 वोटों से चुनाव हारे, पार्टी भी सरकार नहीं बना पाई थी। आज तो बगावती खुली नजर आ रही है। इससे निपटना ही सबसे बड़ी चुनौती है। भाजपा प्रत्याशी नीना विक्रम वर्मा का मुख्य मुकाबला कांग्रेस की प्रभासिंह से ही है लेकिन उन्हें पार्टी के बागी राजू यादव से भी सीधे चुनौती मिल रही है। यह भी सही है कि करीब 80 बरस के विक्रम वर्मा इस बार अपनी सारी शक्ति बंटोरकर मैदान में डंटे हैं। कांग्रेस की प्रभासिंह का नीना विक्रम वर्मा से यह दूसरा मुकाबला है। वे भी अपनी पार्टी की बागी से परेशान हैं। राजू यादव की बगावत से उन्हें राहत मिल सकती है। लेकिन कुलदीप बुंदेला की बगावत ने चिंता में डाल रखा है।
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