(धार) 1977 के बाद : सिर्फ एक बार वर्मा परिवार चुनाव नहीं लड़े
- 06-Nov-23 12:00 AM
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धार,06 नवम्बर (आरएनएस)। वैसे धार के मतदाताओं ने कांग्रेस और भाजपा को कई बार बारी-बारी से मौका दिया है। साल 1951-52 में कांग्रेस पहली बार जीती थी। 1957 में हिंदू महासभा ने कब्जा जमा लिया। इसके बाद 62 में हुए चुनाव में फिर कांग्रेस काबिज हुई। 67 में जनसंघ ने अपना झंडा गाढ़ दिया। साल 1972 में कांग्रेस ने विधायी पुन: अपने नाम कर ली। यह ट्रैक बड़ा रोचक है। फिर आया इमरजेंसी के बाद का पहला चुनाव। यहीं से विक्रम वर्मा ने धार में कदम रखा। 1977 में धार से पहला और 1980 में दूसरा चुनाव जीता। 1985 और 1998 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। यानी दो बार जनता ने कांग्रेस को मौका देकर फिर राजनीति को बैलेंस कर दिया। 1998 में करणसिंह पवार ने वर्मा को मात्र 147 मतों से पराजित हो गए थे। इसके बाद विक्रम वर्मा राज्यसभा से सांसद और खेल युवा मामलों के मंत्री रहे। साल 2003 में जसवंतसिंह राठौर को पार्टी ने टिकट दिया। 1977 और 2023 के बीच यही साल रहा जब वर्मा या उनके परिवार के अलावा धार सीट से कोई नया व्यक्ति चुनाव लड़ा। पिछले तीन चुनाव से लगातार विक्रम वमा्र की पत्नी नीना वर्मा विजयी होती रही हैं। वर्ष 2008 में काफी कशमकश में वे एकमात्र मत से विजयी रही थीं। इस बीच नीना वर्मा का चुनाव कोर्ट द्वारा शून्य घोषित कर दिया गया था। 2013 में नीना वर्मा पुन: चुनाव मैदान में खड़ी हुई और कांग्रेस के बालमुकुंद गौतम को 11482 मतों से पराजित कर विजय प्राप्त की। 2018 में नीना वर्मा का मुकाबला प्रभा गौतम से हुआ और इसमें नीना वर्मा विजयी रही थी।
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