(प्रतापगढ़)कुण्डा के तत्कालीन सीओ हत्याकांड में राजा भइया को सीबीआई अदालत ने दी क्लीनचिट, सियासी दिग्गज का बढ़ा कद
- 08-Oct-24 12:00 AM
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दूसरी एफआईआर में पूर्व मंत्री की नामजदगी में झूठ हुआ बेनकाब, समर्थक हुए गदगदज्ञानप्रकाश शुक्लाप्रतापगढ़ 8 अक्टूबर (आरएनएस )। जिले की कुण्डा सर्किल में तैनात रहे तत्कालीन सीओ जियाउल हक की हत्या में जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं कुण्डा के विधायक राजा भइया को सीबीआई द्वारा क्लीनचिट मिलने से प्रतापगढ़ का सियासी नजारा सरगर्म हो उठा है। सीबीआई द्वारा सियासत के दिग्गज रघुराज प्रताप सिंह राजा भइया को क्लीनचिट देने से उनके समर्थक इसे सत्य की जीत बताते हुए खुशी से इतराते देखे जा रहे है। वही राजनीति के जानकार तथा आमआवाम में भी राजा भइया के निर्दोष होने की चर्चा बेल्हा की हर नगर डगर और गली में इधर छायी हुई है। बीते वर्ष 2013 में दो मार्च को कुण्डा के तत्कालीन सीओ जियाउल हक की एक गांव में हत्या हो गयी थी। इसे लेकर पुलिस में एक एफआईआर दर्ज हुई थी। पुलिस जांच कर ही रही थी कि मृतक सीओ की पत्नी परवीन ने एक दूसरी एफआईआर दर्ज करायी। इस एफआईआर में प्रदेश के तत्कालीन कैबिनेट मंत्री राजा भइया को मुख्य आरोपी बनाया गया था। घटना को लेकर दूर दूर तक अपने सम्बन्ध न होने के आत्मविश्वास से भरे राजा भइया ने विधानसभा में तत्कालीन सरकार से स्वयं सीओ हत्याकांड की सीबीआई जांच की मांग उठायी थी। राजा भइया के द्वारा स्वयं के अनुरोध को देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार की ओर से इस घटना की सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी। सीबीआई ने घटना की तह को खंगाला और लम्बी विवेचना के बाद सीओ हत्याकाण्ड को लेकर कुण्डा विधायक राजा भइया को क्लीनचिट दे दी। मुकदमें में सीबीआई की अदालत ने लम्बा ट्रायल हुआ। इसके बाद सीबीआई के विशेष न्यायाधीश ने राजा भइया को अपने फैसले में निर्दोष करार दिया। सीबीआई जांच के दौरान ही अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक कई बार मुकदमेंबाजी हुई। ग्यारह वर्षो बाद सीबीआई का फैसला आया तो राजा भइया को लेकर मिली क्लीनचिट से उनके समर्थक गदगद हो उठे। राजा भइया के खांटी समर्थक व विधान परिषद सदस्य अक्षय प्रताप सिंह गोपाल के मीडिया प्रभारी मुक्कू ओझा ने सीबीआई अदालत के फैसले को लेकर प्रतिक्रिया में कहा है कि यह सत्य की जीत है। उन्होनें कहा कि इस फैसले में राजा भइया का निर्दोष साबित होना यह चरितार्थ कर गया है कि सत्य परेशान किया जा सकता है परास्त नहीं। उन्होने कहा कि इस पूरे घटनाक्रम में परोक्ष रूप से सरकारी पद पर लाभान्वित हुई केस दर्ज कराने वाली सीओ की पत्नी का झूठ बेनकाब हुआ है। उन्होनें यह भी कहा कि इस फैसले से यह भी उभर कर आया है कि सीओ हत्याकांड को लेकर मुकदमें की वादिनी ने वास्तविक अभियुक्तों को बचाने के लिए मात्र राजा भइया के विरूद्ध दूसरी एफआईआर दर्ज करायी गयी थी। इस फैसले के बाद बेल्हा में चर्चा है कि क्या सीओ की पत्नी ने याचिका के जरिए मुकदमें के वास्तविक अभियुक्तों को लेकर हुए फैसले को स्थगित कराने की स्वयं पहल क्यों की। मुकदमें में दस अभियुक्त दोषी पाए गए तो अब यह सवाल उठने लगा है कि राजनीतिक सुर्खियों को तैयार करने के लिए राजा भइया को झूठे आरोपों में घेरे जाने का षडयन्त्र कहां से रचा गया था। राजा भइया के समर्थक तो यह भी सवाल उठा रहे है कि मृतक सीओ जियाउल को लेकर अनुकंपा के आधार पर यूपी पुलिस ने सेवायोजित हुई जियाउल हक की पत्नी को पुलिस सेवा की योग्यता को लेकर अब सरकार का मापदण्ड क्या होना चाहिए। मीडिया प्रभारी मुक्कू ओझा ने यह मांग उठाई है कि सरकार राजा भइया के खिलाफ झूठे एफआईआर दर्ज कराने और वास्तविक अभियुक्तों की जगह निर्दोष को फंसाने आपराधिक षडयन्त्र के लिए सरकार अब मृतक सीओ की पत्नी के खिलाफ केस दर्ज करें और पुलिस सेवा से उन्हें बर्खास्त किया जाना चाहिए। प्रतापगढ़ के पुलिस अधिकारी के चर्चित हत्याकांड में सीबीआई अदालत द्वारा राजा भइया को निर्दोष साबित किया जाना चर्चा में और इससे जिले की सियासत और आम आवाम एक बार फिर दिग्गज राजा भइया को सियासी कद आईने की तरह साफ आंका जा रहा है।
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