(प्रयागराज)जयशंकर प्रसाद का बोध विश्वबोध है- प्रो सत्यकाम

  • 21-Oct-24 12:00 AM

हिन्दुस्तानी एकेडेमी में राष्ट्रीय संगोष्ठी में जयशंकर प्रसाद के साहित्य पर चर्चाप्रयागराज 21 अक्टूबर (आरएनएस)। जयशंकर प्रसाद का साहित्य बोध, विश्वबोध है। प्रसाद मानता की बात करते है। आजादी के बाद और उसके पहले सबसे बड़ा प्रश्न यहीं था कि स्वामी विवेकानंद और स्वामी परमहंस जैसे लोगों ने इसको खोजने का प्रयास किया। यह बातें राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि राजर्षि टंडन मुक्त विश्विवद्यालय के कुलपति प्रो. सत्यकाम ने अपने विचार रखते हुए कही। जयशंकर प्रसाद की रचनाशीलता पर उन्होंने कहा कि गीता के अध्ययन की बात करने के साथ ही कहा कि हमे भारत ढूढऩे के प्रयास में इनका भी अध्ययन अवश्य करन चाहिए। प्रसाद के भारतबोध को समझने के लिए पहले भारत को समझना जरुरी है। यही वैश्विक बोध भारतबोध से निकला हैं, यह बोध भारत से ही विश्व में फैला। भारतीय ज्ञान परम्परा एवं उनका चिंतन आध्यात्मिक हैं। प्रसाद ठेठ आधुनिक बोध के कवि हैं, और उनकी रचानाएं पराधीनता से मुक्ति की आकांक्षा रखती है।हिन्दुस्तानी एकेडेमी में जयशंकर प्रसाद पर केन्द्रित दो दिवसीय जयशंकर प्रसाद के साहितय में भारतबोधÓ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी की शुरूआत गाँधी सभागार में पाँच सत्रों में आयोजित की गई। कार्यक्रम का शुभारम्भ मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। प्रारम्भ में प्रयागराज के वरिष्ठ साहित्यकार रविनंदन सिंह ने आमंत्रित अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ, स्मृति चिह्न और शॉल देकर किया। अतिथियों का स्वागत करते हुए रविनंदन सिंह ने कहा कि साहित्य, संस्कृति को किसी एक सीमा में नहीं बाधा जा सकता। यह हवा और जल कि तरह है। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए भोपाल से आए प्रो. विजय बहदुर सिंह ने कहा कि वर्तमान को समझने के लिए अतीत में जाते हैं। प्रसाद का अतीत प्रेरक और ऊर्जा देने वाला अतीत हैं। महाराणा का महत्वÓ काव्य संग्रह कि प्रेरणा उन्होंने संस्कृत के इतिहास ग्रन्थ से लियाÓ। उद्घाटन सत्र का संचालन एवं अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुजीत कुमार सिंह ने किया।संगोष्ठी के प्रथम सत्र में प्रसाद के काव्य सृजन की भावभूमि: अतीत और वर्तमान का समन्वयÓ के उपविषयक सत्र का आयोजन हुआ। सत्र की अध्यक्षता काशी विद्यापीठ वाराणसी के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. सुरेन्द्र प्रताप करते हुए कहा कि जयशंकर प्रसाद हिन्दी के लोकप्रिय तथा जनप्रिय कवि हैं। उनकी रचनाओं में अतीत और वर्तमान का समन्वय है। उनके नाटकों में भारत बोध दिखाई देता है। प्रसाद जैसे वरिष्ठ कवि, नाटककार एवं कथाकार को पूनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है। संगोष्ठी के वक्ता प्रो. इंदीवर पाण्डेय ने कहा कि मनु की कथा प्रेम और मानव के उद्भव और विकास के इतिहास की कथा कही गई है। संगोष्ठी में मुम्बई से प्रो. सत्यदेव त्रिपाठी, प्रो. विद्याशंकर सिंह समेत अन्य वक्ताओं ने अपने विचार रखे। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अरुण कुमार मिश्र दिया।




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