(प्रयागराज)राजघराने की 34 वीं पीढी: आज भी बरकऱार है दशहरे पर नजराने की परंपरा

  • 27-Oct-23 12:00 AM

365 गांवों की जनता राजा के दर्शन के लिए दशहरा पर होती है इकठ्ठाआम जनता अपने राजा को पेश करती है नजरानाप्रयागराज 27 अक्टूबर (आरएनएस)। जनपद मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर शंकरगढ़ में एक ऐसा राजरानी है जिसमे 34 पीढ़ी से चली आ रही इस राजघराने में दशहरे पर नजराने एवं राजगद्दी तथा शस्त्र पूजन की परंपरा आज भी बरकरार है। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जनपद के यमुनानगर के उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित शंकरगढ़ राजघराना जो पहले कसौटा राजघराने के नाम से जानाजाता था। ये बहुत पुराना राजघराना माना जाता है। शंकरगढ़ राजघराना जो कि रीवा रियासत का एक परिवार है। ये राजघराना महाराजा व्याघ्रदेव के वंशज है। जिन्हें बघेल राजा कहा जाता है।महाराजा व्याघ्रदेव नाम से राजपूत का बघेल खानदान कहा जाता है। महाराजा व्याप्रदेव के पांच पुत्र हुए जिसमे सबसे छोटे पुत्र कैधरदेव को कसौटा का राजा बनाया गया जो अब शंकरगढ़ के नाम से जाना जाता है। इसी राजघराने के 34 वीं पीढ़ी के राजा महेंद्र प्रताप सिंह शंकरगढ़ की जनता के सह एवं प्यार को देखते हुए अपने पूर्वजों की इस परंपरा को बरकरार रखा है। आपको बता दे पूरे देश में राजतंत्र समाप्त हो गया जिसकेजमॉ साथ सभी राजाओं वाली परंपरा भी समाप्त हो गई लेकिन 34 पीढ़ी से दशहरे पर होने वाली परंपरा आज भी कायम है। परंपरा के अनुसार दशहरे के दिन सुबह राजघराने के प्रतीक चिन्ह झंडे की पूजा होती है। इसके बाद राजगद्दी एवं शस्त्र पूजन होता है। इसके उपरांत रात्रि को राजा अपने राजसी पहनावे में आकर जनता के बीच रूबरू होकर मिलते है। परंपरा के अनुसार 34 वें राजा महेंद्र प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के 385 गांव से आए हुए जनता को संबोधित करते हैं। कसौटा क्षेत्र की जनता आज भी इनको अपना राजा मानते हुए पुराने परम्परा के अनुसार नजराना पेश करती है। परम्परा के अनुसार पहले राजा के खानदानी लोग नजराना पेश करते हैं उसके बाद क्षेत्र से आए हुए आम जनता अपने राजा को नजराने के तौर पर 11 रुपए या 21 रुपए पेश करती है। नजराना ग्रहण करने के बाद राजा द्वारा अपने हाथों से एक पान का बीड़ा दिया जाता है. पान देना इस पर्व पर शुभ माना जाता है। इस मौके पर राजघराने के सभी सदस्य वा स्थानीय लोग बड़ी संख्या में मौजूद रहे।




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