
(बस्तर) *बस्तर की पारंपरिक विरासत -1तला कासरंगÓ को संजोने युवाओं ने सीखा आभूषण निर्माण, सात दिवसीय कार्यशाला सम्पन्न*
- 28-Sep-25 03:45 AM
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बस्तर, 28 सितम्बर (आरएनएस)। छत्तीसगढ़ की मुरिया जनजाति की सांस्कृतिक पहचान माने जाने वाले विशेष आभूषण 'तला कासरंगÓ को संरक्षित करने की दिशा में एक अहम पहल की गई। आधुनिकता और बदलती जीवनशैली के कारण विलुप्त हो रही इस पारंपरिक कला को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से 21 से 27 सितंबर 2025 तक केजंग गोटुल में सात दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। यह कार्यशाला *सुरुज ट्रस्ट* के तत्वावधान में संपन्न हुई, जिसमें मुरिया समाज के युवाओं को तला कासरंग की पारंपरिक निर्माण तकनीक से परिचित कराया गया। ट्रस्ट की संस्थापक *दीप्ति ओग्रे* ने बताया कि इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य जनजातीय धरोहर को नई पीढ़ी तक पहुंचाना और युवाओं में सांस्कृतिक जुड़ाव बढ़ाना है। कार्यशाला के दौरान गोटुल के वरिष्ठ सदस्यों ने '*युवा लया-लयोर*Ó नामक युवा महिला गोटुल समूह की 10 सदस्याओं को पारंपरिक आभूषण निर्माण की तकनीकी जानकारी दी। इसके साथ ही इस आभूषण के सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व पर भी संवाद हुआ। कार्यक्रम को सफल बनाने में *बस्तर ट्राइबल होमस्टे* के संस्थापक *शकील रिज़वी, **हैलो बस्तर* के संचालक *अनिल लुकंड, **हॉलिडेज़ इन रूरल इंडिया* की संस्थापक *सोफी हार्टमेन* और दिल्ली स्थित *चिन्हारी संस्थान* का विशेष सहयोग रहा। यह कार्यशाला मुरिया समाज की पारंपरिक ज्ञान प्रणाली को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक सराहनीय कदम मानी जा रही है, जो आने वाली पीढिय़ों के लिए सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने में मददगार साबित होगी।
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