(बुरहानपुर) पाँचवीं पास आदिवासी महिला ने तोड़ी कुरीति की जंजीर

  • 21-Oct-23 12:00 AM

बुरहानपुर,21 अक्टूबर (आरएनएस)। मन में समाज के लिए कुछ बेहतर करने का संकल्प हो और उसे पूरा करने की दृढ़ इच्छाशक्ति ही तो व्यक्त बड़ी से बड़ी मुश्किल को पार कर सफलता हासिल कर सकता है। समाज की बेटियों के जीवन में उजियारा फैलाने की चाह रखने वाली बुरहानपुर जिले के झंझार गांव की बहू कमला राजू चारण के संघर्ष की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। चारण समाज में बेटियों की शिक्षा को लेकर फैली कुरीति उन्हें बचपन से ही विचलित करती रही है। इसी कुरीति के चलते कमला महज पाँचवीं तक ही पढ़ाई कर पाई थीं। विवाहित होकर जब वे पति के घर पहुंची तो वहां भी इस कुरीति से ही सामना हुआ। इससे व्यथित होकर उन्होंने संकल्प लिया कि वे समाज की इस कुरीति का समूल नाश कर गांव की बेटियों को उच्च शिक्षित बनाने का बीड़ा उठाएंगी। समाज के बुजुर्गों और बेटियों के माता-पिता को समझाने का कोई लाभ नहीं हुआ तो उन्होंने खुद की दो बेटियों को पढ़ाई के लिएशहर भेजा। लोगों के सामने खुद की बेटियों का उदाहरण प्रस्तुत किया तो समाज के लोग जागे और बेटियों को उच्च शिक्षा के लिए शहर भेजना शुरु किया। परिणाम यह हुआ कि वर्तमान में गांव की सौ से ज्यादा बेटियां शहर के विभिन्न स्कूलों और कालेजों में शिक्षा ग्रहण कररही हैं। ज्ञात हो कि नवरात्र के छठे दिन हम मां कात्यायानी के स्वरूप की पूजा करते हैं। उनका गण शोधकार्य है और उनकी आराधना से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। कमला झांझर गांव की बेटियों के लिए मां कात्यायानी का स्वरूप है। कमला बताती हैं कि चारण समाज के लोगों में हमेशा से एक डर था, कि शहर जाकर बेटियां आधुनिकता में शामिल होकर गलत कदम उठा सकती है। इसलिए गांव के स्कूल में पांचवीं तक शिक्षा ग्रहण करने के बाद वे बेटियों को घरेलू कामकाज में लगा देते थे। लोगों के मन से उन्होंने इस डर को निकाला और बताया कि शिक्षा का प्रकाश उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर पहुंच सकता है। इससे उनका मान ही बढ़ेगा। लोगों को यह बात समझाने में कमला को पाँच साल से ज्यादा का समय लगा।




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