(बैतूल)30 वर्षों से नहीं जीता बैतूल से कुंबी उम्मीदवार
- 08-Oct-23 12:00 AM
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बैतूल 8 अक्टूबर (आरएनएस)। राजनीति में जातिवाद और जातिवाद की राजनीति को लेकर सांध्य दैनिक खबर वाणी ने गत दिवस जिले के बहुसंख्यक कुनबी समाज की चुनावी राजनीति के संबंध में विस्तृत व्याख्या की थी और यह बताया था कि 70 साल की चुनावी राजनीति में कुंबी समाज के 36 प्रत्याशी विभिन्न विधानसभा सीटों से एवं विभिन्न पार्टियों से चुनाव मैदान में उतरे थे इनमें 24 पराजित रहे और मात्र 12 को ही सफलता मिली।इस संबंध में आज हम बैतूल विधानसभा सीट की बात करेंगे जिसमें कांग्रेस के कुनबी समाज के सफल उम्मीदवारों में 1972 में डॉक्टर मारुति राव पांसे और 1985 तथा 1993 में डॉ. अशोक साबले चुनाव जीते थे।30 वर्षों में नहीं जीता कोई उम्मीदवारबैतूल विधानसभा सीट से कुनबी समाज से किसी भी उम्मीदवार को जीते पूरे 30 वर्ष हो गए हैं अंतिम बार 1993 में डॉक्टर अशोक साबले ने कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लडकऱ भाजपा के भगवत पटेल को हराया था। लेकिन इसके बाद किसी और उम्मीदवार को बैतूल सीट से जीतने का अवसर नहीं मिला।अन्य समाज के सामने भी मिली लंबी हार यह माना जाता है कि बैतूल विधानसभा सीट लंबे समय से कुंबी बाहुल्य सीट है। इसके बावजूद कई बार इस सीट पर ऐसा हुआ है कि प्रमुख राजनीतिक दल के टिकट पर लड़े कुनबी समाज के बड़े प्रत्याशियों को गैर कुनबी प्रत्याशी से पराजय मिली।1972 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते डॉक्टर मारुति राव पांसे को 1977 में पुन: कांग्रेस ने बैतूल विधानसभा सीट से मैदान में उतारा लेकिन वे निर्दलीय प्रत्याशी माधव गोपाल नासेरी से चुनाव हार गए जिनकी जाति के वोट बैतूल विधानसभा में उंगलियों पर गिनने लायक थे।। 1980 में तीसरी बार कांग्रेस की टिकट पर बैतूल विधानसभा से चुनाव लड़े डॉक्टर पांसे को फिर दूसरी बार माधव गोपाल नासेरी ने भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ते हुए हरा दिया।इस विधानसभा सीट से कुंबी समाज के प्रतिष्ठित परिवार के डॉक्टर अशोक सबले को भी दो बार विधानसभा एवं एक बार लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। 1990 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के भगवत पटेल ने कांग्रेस टिकिट पर लड़े डॉक्टर अशोक साबले को पराजित किया। इसी तरह से 2003 समाजवादी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़े डॉक्टर अशोक साबले की चुनाव में करारी हार हुई और उन्हें फिर एक बार गैर कुंबी उम्मीदवार शिवप्रसाद राठौर ने भाजपा प्रत्याशी के रूप में पराजित किया। 1998 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस की टिकट पर बैतूल- हरदा- हरसूद संसदीय क्षेत्र से लड़े डॉक्टर अशोक साबले को इस चुनाव में फिर एक बार गैर कुंबी उम्मीदवार विजय कुमार खण्डेलवाल ने चुनाव हरा दिया।1985 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़े पंजाब राव मस्की वकील को भी हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में भी डॉ. अशोक साबले ही थे। अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ रहे डॉ. साबले ने विजय हासिल की थी। यह एक मात्र ऐसा चुनाव था जिसमें दो कुंबी प्रत्याशी आमने-सामने थे।हेमंत वागद्रे को भी करना पड़ा हार का सामना2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उम्मीदवार बदलते हुए युवा उम्मीदवार के रूप में एनएसयूआई के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं वर्तमान में जिला कांग्रेस अध्यक्ष ग्रामीण हेमंत वागद्रे को चुनाव मैदान में उतारा लेकिन वे भाजपा के पूर्व सांसद हेमंत खंडेलवाल से लगभग 24000 वोटो के बड़े अंतर से चुनाव हार गए थे।इस तथाकथित कुनबी बाहुल्य विधानसभा से महदगांव के श्याम राव बारस्कर भी एनसीपी पार्टी के टिकट पर 2003 में बैतूल सीट से चुनाव लड़े और हार गए। वहीं 2008 में बहुजन समाज पार्टी से चुनाव लडऩे वाले तिलक पटेल भी पराजित हुए थे। इसके अलावा भाजपा की टिकट पर जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित हुई महिला नेत्री लता मस्की भी भाजपा की टिकट न मिलने पर 2018 के विधानसभा चुनाव में बैतूल विधानसभा सीट से सपाक्स से चुनाव लड़ी थी लेकिन उन्हें भी बड़ी पराजय का मुंह देखना पड़ा था।
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