(बोकारो)आत्मदृष्टि के विकास के लिए जीवन में त्याग करना जरूरी : समणी डॉ. निर्वाण
- 11-Oct-23 12:00 AM
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बोकारो 11 अक्टूबर (आरएनएस)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सम्प्रदाय के 11वें धर्मगुरु आचार्य श्री महाश्रमणजी की शिष्या डॉ निर्वाण प्रज्ञाजी एवं समणी मध्यस्त प्रज्ञाजी मंगलवार को चास पधारीं। यहां बिनोद चोपड़ा निवास में आयोजित प्रवचन सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने जीवन में त्याग और तत्वज्ञान का मर्म समझाया। डॉ. निर्वाण ने कहा कि ब्रह्म, आत्मा और सृष्टि आदि के संबंध का यथार्थ ज्ञान ही तत्व ज्ञान कहलाता है। तत्वज्ञान का भाव अपने जीवन में उत्पन्न करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। जीने को तो सभी जीते हैं और मूर्ख लोग तो अज्ञान के राज्य में रह कर प्राय: चैन का जीवन भी व्यतीत कर लेते हैं, पर संसार को भली-भांति समझ-बूझकर उसके प्रभाव से मुक्त रहना तत्वज्ञानियों का ही काम है।मनुष्य जीवन में त्याग की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि त्याग शब्द का अर्थ है देना या छोडऩा। त्याग के बिना हमारा जीवन अधूरा है। त्याग एक ओर जहां हमें परिग्रह से मुक्ति दिलाता है तो दूसरी ओर हमें शांति और सुकून का एहसास भी कराता है। समणी जी ने कहा कि त्याग के पालन से आत्मदृष्टि का विकास होता है। त्याग में प्रत्यक्ष रूप से दूसरों को देने की भावना निहित है। त्याग से करुणा का विस्तार होता है। त्याग के पालन से व्यक्ति के जीवन में संतोष एवं शांति का पोषण होता है। दया एवं सेवा की भावना का विकास होता है। त्याग का अहंकार नहीं करें, बल्कि अहंकार का त्याग करें। इस अवसर पर बड़ी संख्या में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ समाज के महिला-पुरुष उपस्थित थे।
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