(बोकारो)मन, शरीर व आत्मा को साधने की कला है नृत्य : कृष्णेन्दु साहा

  • 30-Oct-23 12:00 AM

राष्ट्रीय ख्याति-प्राप्त ओडिसी नर्तक ने डीपीएस बोकारो में नृत्य के जरिए समझाई डार्विन थ्योरी-सीबीएसई के निर्देशन में कलायुक्त अध्यापन के तहत विशेष कार्यशाला आयोजितबोकारो 30 अक्टूबर (आरएनएस)। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत पठन-पाठन को सुरुचिपूर्ण बनाने के उद्देश्य से कलायुक्त अध्यापन की कड़ी में सोमवार को डीपीएस बोकारो में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सीबीएसई की ओर से निर्देशित आर्ट इंटीग्रेशन सीरीज के अंतर्गत पंचतत्व संस्था के सहयोग से नृत्य कार्यक्रम हुआ। इस अवसर पर राष्ट्रीय ख्याति-प्राप्त ओडिसी नर्तक कृष्णेंदु साहा ने नृत्य के माध्यम से मनुष्य के क्रमिक विकास को भगवान विष्णु के दशावतार से जोड़कर बखूबी पेश किया। अपनी प्रस्तुति में जहां उन्होंने भारत के पौराणिक व सांस्कृतिक मूल्यों एवं शास्त्रीय नृत्य की महत्ता रेखांकित की, वहीं दूसरी तरफ बच्चों के पाठ्यक्रम में शामिल मनुष्य के क्रमिक विकास से संबंधित डार्विन के सिद्धांत को भी जीवंत रूप में प्रस्तुत किया। अपनी प्रस्तुतियों के बारे में उन्होंने बच्चों को विस्तार से व्याख्या कर समझाया भी।अपनी गुरु शर्मिला विश्वास की खास कोरियोग्राफी में तैयार अपनी इस प्रस्तुति की शुरुआत उन्होंने मंगलाचरण एवं आवाहन-नृत्य से की। इसके बाद मनुष्य के क्रमिक विकास में क्रमश: शिकार करने, समाज-निर्माण, कृषि-कार्य, बौद्धिक विकास व अन्य अवस्थाओं को भगवान के अलग-अलग अवतारों, यथा- कूर्मावतार, मत्स्यावतार, वराहावतार, नरहरि अवतार, वानमावतार, परशुरामावतार, रामावतार, बुद्धावतार आदि से जोड़कर प्रस्तुत किया। समापन कल्कि अवतार प्रस्तुति से की, जिसमें उन्होंने पंचतत्वों के माध्यम से जीव-जगत पर आनेवाली विभिन्न आपदाओं की स्थिति को वर्णित किया।श्री साहा ने अपनी प्रस्तुतियों से सबकी भरपूर सराहना पाई। दशावतार और मानवीय विकास के क्रम को प्रस्तुत करने के दौरान उन्होंने अपनी आकर्षक भाव-भंगिमाओं एवं मुद्राओं से सभी की वाहवाही लूटी। इस दौरान विद्यालय का कालीदास कला भवन तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंजता रहा। उन्होंने कहा कि नृत्य मन, शरीर और आत्मा को साधने की एक कला है। शास्त्रीय नृत्य वैज्ञानिक रूप से अपनी महत्ता रखता है। विज्ञान जिन चीजों के बारे में आज बता रहा है, वो हमारे पुराणों में आदिकाल से है।विद्यालय के प्राचार्य डॉ. ए. एस. गंगवार ने इस प्रकार की कार्यशाला को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि पढ़ाई में कला को समावेशित करना विद्यार्थियों के शैक्षणिक व बौद्धिक विकास में सहायक है।




Related Articles

Comments
  • No Comments...

Leave a Comment