(बोकारो)साहित्यलोक की मासिक रचनागोष्ठी आयोजित
- 07-Nov-23 12:00 AM
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रचनागोष्ठी में याद किए गए साहित्यकार नागार्जुन व पं गोविंद झा- आइ जीवन के ई पुण्य दिवस यात्रीÓ गोविंदकÓ नाम!!- ना सुनी किसी ने वो बात हो गई हूँ मैं.. जाति धर्म के नाम पर नहि बांटू इंसान के.. बोकारो : मैथिली साहित्यकारों की चर्चित संस्था साहित्यलोकÓ की मासिक रचनागोष्ठी साहित्यकार सतीश चन्द्र झा के सेक्टर 5 स्थित आवास पर आयोजित हुई। सुप्रसिद्ध साहित्यकार नागार्जुन उर्फ वैद्यनाथ मिश्र यात्रीÓ की पुण्यतिथि पर आयोजित इस रचनागोष्ठी में नागार्जुन के साथ ही हाल ही में दिवंगत हुए वरिष्ठ साहित्यकार व भाषा विज्ञानी पं गोविन्द झा को श्रद्धांजलि दी गयी। साहित्यकारों ने साहित्य के संवर्धन में नागार्जुन व पं गोविन्द झा के योगदान को रेखांकित किया। साहित्यकार विजय शंकर मल्लिक ने पं गोविन्द झा के साहित्यिक अवदान की चर्चा करते हुए कहा कि उनका निधन 102 वर्ष की आयु में हुआ है। पं गोविन्द झा ने अपने जीवन के 75 वर्ष साहित्य सृजन को दिए। साहित्यलोक के संस्थापक बुद्धिनाथ झा व तुला नंद मिश्र ने भी अपने विचार रखे। कवि रणधीर चन्द्र गोस्वामी की अध्यक्षता व साहित्यलोक के संयोजक अमन कुमार झा के संचालन में आयोजित इस रचनागोष्ठी में पटना से ऑनलाइन जुड़े कवि बुद्धिनाथ झा ने अपने उद्गगार कुछ इस तरह व्यक्त किए - आइ सुदिन वेश भेल हमरहु, पटना आसन पर बैसलहुं/बैसि बैसार साहित्यलोक के, अघा अघा कÓ देखलहुं/जतेक उपस्थित कवि श्रोता छी, स्वीकारू हमर प्रणाम/आइ जीवन के ई पुण्य दिवस यात्रीÓ गोविंदकÓ नाम!!Ó इसके बाद उन्होंने भगवती आराधना गीत सुनाकर सबकी प्रशंसा पायी। कवि सतीश चंद्र झा ने साहित्य में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व भाषा की शालीनता पर विमर्श करती रचना असहज विमर्शÓ व अर्थÓ, अमन कुमार झा ने मैथिली कथा कोहबरक पानÓ व यात्रा मेंÓ परंपरा व संस्कृति का सुंदर चित्रण प्रस्तुत किया। कवयित्री रीना यादव ने गज़ल भोर हो गये हो तुम, रात हो गई हूँ मैं/ना सुनी किसी ने वो बात हो गई हूँ मैं.. , अरुण पाठक ने मैथिली में प्रकृति गीत- प्रकृति बिना नहि जीवन बचतै... व सद्भावना गीत- जाति धर्म के नाम पर नहि बांटू इंसान के.. , नीलम झा ने गीत अंतर्मनÓ व देखू कोजगरा पावनि महानÓ, कवि विजय शंकर मल्लिक सुधापति ने पं गोविन्द झा को समर्पित बाबा नहि ओ ओहू सं बड़का... व तरम-तरमÓ, कवि रणधीर चन्द्र गोस्वामी ने तनकर चलती है लड़कीÓ, चिंतित है शहरÓ व अपने जमीर से रूबरू होता आतकंवादीÓ शीर्षक कविताएं सुनाकर सबको प्रभावित किया। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में श्री गोस्वामी ने पठित रचनाओं पर समीक्षा टिप्पणी के साथ ही साहित्यलोक के 3 दशक के सफर व सक्रियता की प्रशंसा की और कहा कि बोकारो के साहित्य जगत को उर्वरा बनाने में साहित्यलोक का योगदान बहुत ही प्रशंसनीय रहा है।
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