(बोकारो) 1 से 5 नवंबर तक गीता पंद्रहवां अध्याय - पुरूषोत्तम योग

  • 31-Oct-23 12:00 AM

पूज्य स्वामिनी संयुक्तानंद सरस्वती द्वारा गीता ज्ञान-यज्ञ (पन्द्रहवां अध्याय)बोकारो 31 अक्टूबर (आरएनएस)। चिन्मय मिशन बोकारो द्वारा पॉच दिवसीय गीता ज्ञान यज्ञ पन्द्रहवां अध्याय का शुभारंभ आज (1 नवंबर ) से 5 नवंबर तक गीता भवन, जग्गनाथ मंदिर में हो रही हैबोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होयÓÓ, इस मुहाबरे का मुख्य अभिप्राय है कि, जैसा कर्म वैसा फलÓ। इस संसार में हर साधारण व्यक्ति कमोबेश यह जानता है कि हमारे जीवन की नींव हमारे द्वारा किए गए कर्म ही है। इसी तरह हमारे द्वारा किए गए कर्म और उनसे प्राप्त हुए फल भोगने का सिलसिला न केवल इस जीवन में बल्कि जन्म-जन्मांतर तक चलता रहता है।हमें पता है कि सभी कर्मों के फल हमें उतना सुख नहीं दे पाते, जितना हम कर्म शुरू करने के पहले आशा करते हैं। इसके फलस्वरूप, हम दुखी होते हंै और नए सिरे से इससे भी अच्छे फलप्राप्ति के उद्देश्य से फिर कुछ काम करने का संकल्प कर लेते हैं। जिंदगी भर ऐसे ही चलता रहता है। हम इसे ही सुख और दु:ख से भरा संसार बोलते हंै, जिसमें मनुष्य कभी भी पूर्णतया सुखी नहीं हो पाता है। पाश्चात्य दर्शन इस कर्मचक्र को, कहता है जिसमें साधारण मनुष्य पीसता चला जाता है। बुद्धदेव ने इसे, दु:खम् दु:खम् सर्वम् दु:खम्ÓÓ कहा है। भगवत् गीता में इस संसार को दु:खालयम्-अशाश्वतम्ÓÓ ; (भगवत् गीता 8/15) कहा गया है। इस दु:ख से निवृत्ति ही मनुष्य जीवन का एकमात्र ध्येय है। देर-सवेर हर मनुष्य इसी लक्ष्य की ओर बढ़ेगा। प्रश्न है कि, अभी-ही क्यों नहीं?Óआदिगुरु शंकराचार्य ने इस कर्मचक्र को समझाते हुए तीन ग्रंथियों की विशेष रुप से चर्चा की है - अविद्या, काम, तथा कर्म। इसका मतलव है कि हम जो भी कर्म करते हैं वह किसी न किसी कामना (वासना) से प्रेरित होते हैं। मनुष्य तब तक स्वयं बनाई गई कामना और वासना का शिकार होते रहेंगे, जबतक अपने स्वरुप का ज्ञान प्राप्त नहीं कर लेते। अपने स्वरुप की इस अज्ञानता को ही आदिगुरु शंकराचार्य ने अविद्या कहा है। अविद्या से कामना और कामना से कर्म और इस प्रकार सभी कर्म रूपी चक्र को सुख और दु:ख के चक्कर में बांध के रखते हैं।इस तरह की जीवन उपयोगी बाते हम अगले पॉच दिनो तक लगातार सुनकर अपने जिवन को सार्थक , सुंदर और सुनयोजित बना सकंगेंआइए हम सभी सपरिवार, सबांधव इस भव्य ज्ञान-यज्ञ में शामिल होते हैं। (स्थान- गीता भवन, जगन्नाथ मंदिर परिसर, दिनांक - 1-5 नवंबर, 2023 समय - 7:00 - 8:15 सायं) और भगवत् गीता रूपी मोक्ष शास्त्र के परम ज्ञान को चिन्मय मिशन, बोकारो की पूज्य स्वामिनी संयुक्तानंद सरस्वती जी के मधुर वाणी से सुनकर कृत-कृत्य हो जायं।चिन्मय मिशन बोकारो एवं चिन्मय विद्यालय के पदाधिकारियो ने बोकारो और चास के भक्तजनो से आग्रह किया की अधिक से अधिक संख्या में पधार कर भक्ति रस का आंनद उठाए क्योकी भगवत् गीता से बड़ा से बड़ा ज्ञान नही और ना ही भगवत् गीता से बड़ा कोइ गुरू है ।




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