(भोपाल)आत्मविश्वास और तेवर में नजर आ रहे हैं वन मैन शोÓ कमलनाथ

  • 01-Dec-23 12:00 AM

-सरकार के पतन से सबक सीखकर इस मर्तबा सतर्क है कांग्रेसभोपाल 1 दिसंबर (आरएनएस)। मप्र विधानसभा चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ वन मैन शो रहे। विधानसभा चुनाव का अंतिम चरण आते- आते पार्टी पूरी तरह से कमलनाथ पर ही निर्भर हो गई। चुनावी संसाधन, खर्चे, रणनीति, टिकट वितरण, चुनावी वचन पत्र और प्रचार अभियान सारा कुछ कमलनाथ के नियंत्रण में रहा। पिछले एक वर्षों से चल रही तैयारियों के बाद सितम्बर तक ऐसा लग रहा था कि कमलनाथ के साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और प्रभारी महासचिव रणदीप सूरजेवाला भी बराबरी से चुनाव अभियान को संचालित करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। टिकट वितरण की अंतिम सूची जारी होने के बाद आठ-दस प्रत्याशियों के चयन को लेकर दिग्विजयसिंह खिन्न रहे । उन्होंने व्यापक प्रचार की बनिस्बद नाराज नेताओं को मनाने और लगातार हारी हुई सीटों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया । रणदीप सूरजेवाला ने भी मैदान में अपनी सक्रियता कम कर ली। वे अधिकांश समय राजधानी में ही डटे रहे। राष्ट्रीय नेताओं में भी सिर्फ अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े,पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी को बड़ी सभाओं के लिए निमंत्रण दिया गया। मध्यप्रदेश के इतिहास में पहली बार हुआ जब कांग्रेस किसी एक नेता पर इतनी अधिक निर्भर हो गई हो। 80 के दशक में अर्जुन सिंह भी सर्वशक्तिमान माने जाते थे, लेकिन उन्हें भी शुक्ल बंधुओं, माधवराव सिंधिया, मोतीलाल वोरा और दिल्ली की कोटरी की ओर से लगातार चुनौती मिलती रहती थी। दिग्विजयसिंह भी ताकतवर मुख्यमंत्री थे, लेकिन उन्हें भी सुभाष यादव, अजीत जोगी, जमुना देवी जैसे नेताओं से चुनौतियां मिलती रही है, लेकिन इस बार जितने चुनौती विहीन कमलनाथ दिखे उतना कभी कोई कांग्रेसी चुनाव के समय नहीं दिखा। कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि यदि सरकार बनती है तो कमलनाथ बेहद शक्तिशाली मुख्यमंत्री होंगे। ना उन पर आलाकमान का दबाव रहेगा और नहीं प्रदेश में कोई कांग्रेसी नेता उन्हें प्रभावित करने की स्थिति में रहेगा। चुनाव के अंतिम चरण में कांग्रेस इलेक्शन मैनेजमेंट और कोर इलेक्शन मैनेजमेंट के मामले में भी भाजपा से अधिक पीछे नहीं रही। पहली बार कांग्रेस का संगठन ग्रास रूट लेवल पर सक्रिय दिखाई दिया। कमलनाथ ने अप्रैल 2018 में कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद संगठन को मजबूत करने के लिए जो प्रयास किए उसका असर इस बार चुनाव में देखने को मिला। पहली बार कांग्रेस में कोर इलेक्शन मैनेजमेंट में भाजपा की बराबरी करने की कोशिश की है। मूलभूत चुनाव प्रबंधन में मतदान केंद्र तक कार्यकर्ताओं की सक्रियता और मैदानी जमावट मुख्य भूमिका निभाते हैं। बूथ मैनेजमेंट भी इसी का हिस्सा होता है। इसके लिए निचले स्तर पर संगठन का गठन और गतिशीलता जरूरी होती है। कमलनाथ पिछले 1 वर्ष से लगातार मंडल स्तर तक संगठन को मजबूत करने में लगे हुए थे। कमलनाथ के अध्यक्ष बनने के पहले तक कांग्रेस जिला और ब्लाक स्तर पर सक्रिय रहती थी, लेकिन कमलनाथ ने एक ब्लॉक को चार या पांच मंडल में विभाजित कर मंडलम को निचली इकाई बनाया। यही नहीं उन्होंने प्रदेश स्तर पर पॉलिटिकल मैनेजमेंट कमेटी बना कर सभी नेताओं को एडजस्ट किया और सामूहिक निर्णय लेने की शुरुआत की। इसके अलावा कमलनाथ ने जिला अध्यक्ष के अलावा जिला प्रभारी पद की रचना की जिससे उन्हें संगठन के मामले में सही-सही फीडबैक मिल सके। उनके इन प्रयासों के कारण पहली बार कांग्रेस का सदस्यता अभियान मैदान में दिखा और नए सदस्य बनाए गए। इसके अलावा उन्होंने खास तौर पर आदिवासी युवाओं से संवाद का कार्यक्रम बनाया। इसका भी लाभ कांग्रेस को मिला। उन्होंने जिस तरह से संगठन को मजबूती दी और रणनीति अपनाई उसी का नतीजा था कि नगर निगम चुनाव में कांग्रेस को पांच नगर निगम में मेयर बनाने में सफलता मिली। कमलनाथ ने मीडिया और आईटी सेल को भी मजबूत किया। एक्जिटपोल और सट्टा बाजार कुछ भी कहे उसके उलट मतगणना की बेला में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ पूरे आत्मविश्वास और तेवर में नजर आ रहे हैं। उनकी निजी सर्वे कंपनी और कांग्रेस से जो फीडबैक मिल रहा है उसके अनुसार पार्टी 120 से अधिक सीटें लाकर कंफर्टेबल मेजोरिटी के साथ सरकार बना रही है। भावी मंत्रिमंडल में पद पाने के इच्छुक नेताओं की आवाजाही कमलनाथ के बंगले पर बढ़ गई है। कांग्रेस ने नौकरशाहों को चुनाव अभियान के दौरान बार-बार चेतावनी दी थी कि वो कांग्रेस के साथ पक्षपात बंद करें अन्यथा सरकार बनने की स्थिति में खामियाजा भुगतना पड़ेगा। इस चेतावनी का असर अब देखने को मिल रहा है। नौकरशाही के एक वर्ग के रवैए में बदलाव स्पष्ट देखने को मिल रहा है। ऐसे भी कई अधिकारी है, जो कमलनाथ के नजदीकी लोगों को भी साधने में लग गए हैं। कमलनाथ सरकार की संभावना के मद्देनजर नौकरशाही का वह वर्ग सबसे अधिक प्रसन्न है जो भाजपा सरकार के समय अपेक्षित रहा। यही वर्ग बढ़-चढकऱ कमलनाथ से अपनी नजदीकी बताने में लगा हुआ है। कमलनाथ के कतिपय समर्थकों उपमुख्यमंत्री बनने की जुगाड़ में लग गए हैं। कुल मिलाकर कांग्रेसी 3 दिसम्बर का इंतजार कर रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि दोपहर 02 बजे बाद प्रदेश के राजनीतिक पटल पर मंजर बदल जाएगा। -शाह का खौफ है कांग्रेस पर!वर्ष 2020 में सरकार हथिया लेने से आहत कांग्रेस इस बार भी केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के खौफ से ग्रस्त है। अमित शाह राजनीति के वह जादूगर है जिन्होंने गोवा में कांग्रेस के मुकाबले भाजपा के बेहद कम विधायक होने के बावजूद सरकार बनवा दी थी। अमित शाह एक प्रतिशत संभावना को 100 में बदलने के जादूगर माने जाते हैं। उनकी पॉलिटिकल किलिंग इस्टिक्ट को सभी जानते हैं। इस वजह से कमलनाथ अतिरिक्त सावधानी बरत रहे हैं। राहुल गांधी का सचिवालय भी इस मामले में सतर्क है। राहुल गांधी भी कांग्रेस के ऐसे नेताओं को भोपाल भेजने वाले हैं जो प्रबंधन में माहिर हैं। कमलनाथ ने बकायदा सभी प्रत्याशियों और जिला प्रभारी से मतदान केंद्र के हिसाब से फीडबैक लिया है। उनके द्वारा हायर की गई पॉलिटिकल रिसर्च कंपनी भी लगातार मतदान की ट्रेड का विश्लेषण कर रही है। कांग्रेस को पूरा विश्वास है कि प्रदेश में पर्याप्त बहुमत के साथ सरकार बन रही है। मतगणना के समय सरकारी तंत्र कोई गड़बड़ी न करें इसके लिए कमलनाथ ने बकायदा प्रशिक्षण दिया है। इसके अलावा 3 दिसंबर के बाद की स्थिति से निपटने के लिए कांग्रेस ने प्लान भी तैयार किया है। इसके अनुसार यदि कांग्रेस बहुमत से थोड़ा-सा दूर रहती है तो पार्टी के ही बागी ऐसे प्रत्याशियों को साथ में लेने की कोशिश की जाएगी जो जीत हासिल करेंगे। इसके अलावा कांग्रेस बसपा, सपा और आम आदमी पार्टी से संपर्क करने के लिए भी अलग से व्यवस्था करने वाली है। केंद्रीय स्तर पर केसी वेणुगोपाल और जयराम रमेश अन्य दलों के विधायकों का समर्थन लेने के लिए तुरन्त कोशिश करेंगे। कमलनाथ कैम्प से सुरेश पचौरी, विवेक तन्खा, नकुलनाथ, सज्जनसिंह वर्मा, तरुण भानोट, बाला बच्चन, प्रवीण पाठक, सुधीर पाटनी जैसे नेता चुनाव के बाद मैनेजमेंट को संभालेंगे। कमलनाथ ने इस संबंध में विभिन्न नेताओं को संभाग के हिसाब से जिम्मेदारी दी है। उनके पास इस बात का भी फीडबैक है कि कहां कौन-सा प्रत्याशी निर्दलीय या अन्य दल के किट पर जीतने की स्थिति में है। कुल मिलाकर 2020 को हुए दल बदल और अपनी सरकार के पतन से कमलनाथ ने काफी सबक लिया है। इस वजह से उन्होंने पहले से ही सावधानी और सतर्कता बरतनी प्रारंभ की है। सूत्रों के अनुसार कमलनाथ ने सभी प्रत्याशियों को निर्देश दिए हैं कि जीतने के बाद 3 दिसम्बर को शाम को विजय जुलूस निकाले जाए और रात को ही भोपाल आया जाए। भोपाल में सभी विधायकों को एक साथ रखने की व्यवस्था की जा रही है। इस बार कमलनाथ किसी भी प्रकार का रिस्क नहीं लेना चाहते। एक्जिटपोल को लेकर भी कमलनाथ, पूर्व मंत्री सज्जनसिंह वर्मा और कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा कि एक्जिटपोल से घबराने की जरूरत नहीं है। यह कांग्रेस कार्यकर्ताओं और कतिपय अधिकारियों को जीत भ्रमित करने की चाल है।




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