(भोपाल)केरल के आई बैंक से डोनेशन में मिले एक कॉर्निया से लौटी दो लोगों की आंखों की रोशनी

  • 10-Jun-25 12:00 AM

भोपाल 10 जून (आरएनएस)। भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी) में केरल के एक आई बैंक से डोनेशन में मिले कॉर्निया से दो अलग-अलग मरीजों की आंखों की रोशनी लौटाई गई है।प्रबंधन का कहना है कि यह भोपाल में संभवत: पहला मामला है। जिसमें डेसेमेट मेम्ब्रेन एंडोथेलियल केराटोप्लास्टी सर्जरी की गई हैं। इस सर्जरी के जरिए एक ही कॉर्निया के दो अलग-अलग भागों का उपयोग कर दो व्यक्तियों को देखने की शक्ति प्रदान की जाती है।कॉर्निया के एक हिस्से का उपयोग भोपाल के एक निजी अस्पताल में एक मरीज के सफल प्रत्यारोपण के लिए किया गया। वहीं, दूसरे हिस्से से बीएमएचआरसी में भर्ती 66 वर्षीय गैस पीडि़त मरीज को नई रोशनी मिली। यह जटिल ऑपरेशन नेत्र रोग विभाग के विजिटिंग कंसल्टेंट डॉ. प्रतीक गुजर ने नेत्र रोग विभाग की प्रमुख डॉ. हेमलता यादव की उपस्थिति में कॉर्निया प्रत्यारोपण केंद्र में किया।बीएमएचआरसी में इलाज कराने वाले मरीज की एक आंख में पहले ही मोतियाबिंद का ऑपरेशन असफल हो चुका था, जिसके कारण उसकी रोशनी पूरी तरह चली गई थी। वह कॉर्नियल एंडोथेलियल फेल्योर नामक स्थिति से पीडि़त था। इस बीमारी में आंख की सबसे अंदरूनी परत ठीक से काम करना बंद कर देती है और चीजें धुंधली दिखने लगती हैं।इस प्रत्यारोपण में डेसेमेट मेम्ब्रेन एंडोथेलियल केराटोप्लास्टी सर्जरी तकनीक का उपयोग किया गया। यह एक आधुनिक माइक्रोसर्जरी तकनीक है, जिसमें केवल क्षतिग्रस्त एंडोथेलियल परत को हटाकर, स्वस्थ डोनर की परत लगाई जाती है। इस प्रक्रिया की खासियत यह है कि इसमें टांकों की जरूरत नहीं होती है। मरीज की दृष्टि भी तेजी से वापस लौटती है।डॉ. गुजर ने बताया कि कॉर्निया की दो प्रमुख परतें स्ट्रोमा (मध्य परत) और एंडोथेलियल (भीतरी परत) होती हैं। माइक्रोसर्जरी तकनीकों के जरिए इन दोनों परतों को अलग-अलग कर मरीजों के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। हालांकि, इसके लिए डोनर के टिशु की गुणवत्ता बहुत अच्छी होनी चाहिए और दोनों मरीजों की आंखों की समस्याएं अलग-अलग हों।बीएमएचआरसी की निदेशक डॉ. मनीषा श्रीवास्तव ने कहा कि नेत्रदान से जुड़ी जागरूकता और आधुनिक तकनीकों की मदद से अब एक डोनर, दो जीवन बदल सकता है।




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