(भोपाल)जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य पर अंतर्विभागीय कार्यशाला सम्पन्न
- 19-Oct-23 12:00 AM
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भोपाल 19 अक्टूबर (आरएनएस)।जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य पर अंतरविभागीय कार्यशाला गुरूवार को पर्यावरण एवं नियोजन संगठन (एपको ) में सम्पन्न हुई। स्वास्थ्य विभाग भोपाल द्वारा आयोजित इस कार्यशाला में यातायात पुलिस, लोक निर्माण विभाग ,उद्योग विभाग ,जल संसाधन विभाग, स्कूल शिक्षा ,पंचायत विभाग, कृषि विभाग विभाग, इंडस्ट्री एसोसिएशन के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। कार्यशाला फेसबुक के माध्यम से लाइव स्ट्रीम भी की गई।कार्यशाला में गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. सलिल भार्गव, एम्स हॉस्पिटल के डॉ अंकुर जोशी एवं इपको संस्था के विशेषज्ञों ने पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य संबंधी जानकारी दी। कार्यशाला के शुभारंभ अवसर पर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी भोपाल डॉ प्रभाकर तिवारी ने कहा कि प्रदूषित पर्यावरण का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष असर प्रत्येक व्यक्ति के स्वास्थ्य पर होता है। किंतु यातायात पुलिस, नगर निगम के कचरा संग्राहकों, उद्योग क्षेत्र से जुड़े हुए लोगों पर इसका असर प्रत्यक्ष रूप से ज्यादा पड़ता है। गर्भवती महिलाएं, बुजुर्ग, गंभीर बीमारियों से पीडि़त लोग पर्यावरण प्रदूषण से अधिक प्रभावित होते हैं।सीएमएचओ डॉ. तिवारी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए छोटे-छोटे उपाय को अपने दैनिक जीवन में अपना सकता है। सार्वजनिक वाहनों अथवा साइकिल का उपयोग, ट्रैफिक सिग्नल पर गाड़ी के इंजन को बंद करना ,पानी का अपव्यय कम करना, पेड़ पौधे लगाना, वर्षा जल का संग्रहण, सूखे एवं गीले कचरे को अलग अलग करना, एलईडी लाइट का इस्तेमाल, बिजली के उपयोग को कम करना, जैसे छोटे-छोटे तरीके आसानी से अपनाए जा सकते हैं।गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. सलिल भार्गव ने कहा कि स्वास्थ्य को अच्छा रखने के लिए पर्यावरण को ठीक रखना जरूरी है। पर्यावरण प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य को रोज खराब कर रहा है। पर्यावरण को प्रदूषित कर हम अगली पीढ़ी के लिए बीमारियां छोड़ रहे हैं। पर्यावरण प्रदूषण का प्रत्यक्ष असर हमारे श्वसन तंत्र, त्वचा, आंखों पर सबसे पहले दिखाई देता है। स्वस्थ पर्यावरण हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है। तंबाखू के धुएं और दूषित पर्यावरण क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पलमोनरी डिजीज (सीओपीडी) का प्रमुख कारण है। जिससे क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस और अस्थमा जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।एम्स चिकित्सालय के कम्युनिटी मेडिसिन डिपार्टमेंट के डॉ अंकुर जोशी ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग का नकारात्मक असर इंसानों, पशु, पक्षियो, नदियों, पेड़ों पर पड़ता है। वैश्विक तापमान के मात्र आधा डिग्री बढ़ जाने से ही बाढ़ आने की संभावनाएं 70त्न तक बढ़ जाती है। आधा डिग्री ग्लोबल टेंपरेचर बढऩे पर हीट स्ट्रोक 28त्न तक बढ़ सकता है।पर्यावरण एवं नियोजन संगठन के पर्यावरण रामरतन सिमैया एवं रवि शाह ने जलवायु परिवर्तन की दिशा में किया जा रहे कार्यों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया। उन्होंने कहा कि सभी शासकीय विभागों एवं गैर सरकारी संगठनों के संयुक्त प्रयासों से जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रण में लाया जा सकता है। कार्यशाला में जिला महामारी नियंत्रण अधिकारी डॉ अर्चना मिश्रा, एपिडिमियोलॉजिस्ट डॉ कामिनी मेहरा, जपाइगो संस्था के प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
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