(भोपाल)बेतरतीब विकास की अंधी दौड़ में प्राकृतिक आपदा को न्योता - इंजी नवीन कुमार अग्रवाल
- 04-Sep-25 12:00 AM
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जम्मू -कश्मीर , उत्तराखंड , हिमाचल प्रदेश की त्रासदी का दोषी कौन ?देश के छह राज्य बाद से ग्रस्त प्रधान चुनावी रैलियों में व्यस्त ?नीमच / भोपाल 4 सितंबर (आरएनएस)। जम्मू कश्मीर के रियासी , वैष्णोदेवी , कठुआ ,डोडा ,किस्तवाड़ , रामबन ,हिमाचल प्रदेश के मंडी ,उत्तराखंड प्रदेश के धराली और थराली में जून माह से अभी तक सरकारी रिकार्ड में सेंकडो आम लोगो की जान प्राकृतिक आपदा से असमय चली गयी जबकि वास्तविक रूप से आँकड़ा हजारो में है , जिसका मुख्य कारन बेतरतीब विकास की अंधी दौड़ में अवैध खनन माफिया ,ठेकेदारों ,बेतरतीब इंफ्रास्ट्रक्टर निर्माण कर्ता के हवाले उक्त प्रदेशो के पहाड़ , नदिया , जंगल सौंप दिए गए जिसके परिणाम स्वरुप नदियों के किनारे बेतरतीब निर्माण , पहाड़ो का मनमाफिक अवैध उत्खनन , विकास के लिए पहाड़ो में पर्यावरण विरुद्ध लम्बी लम्बी सुरंगो का निर्माण , मानव जीवन के लिए कितना खतरनाक है उक्त प्रदेशो में आयी भयानक प्राकृतिक आपदा से स्वयं अंदाजा लगा सकते है। क्या अब यह उचित समय नहीं है की यह त्रासदी क्यो हुई इस पर विचार अब आम जनता के साथ ही सत्ताधारियो को भी करना चाहिए। आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता इंजी नवीन कुमार अग्रवाल ने कहा की एक और हम आधुनिकता की दौड़ में प्रकृति को बांधना चाहते है और उसके प्राकृतिक स्वरुप के साथ मनमाना दोहन कर रहे है जिसका पर्यावरण विद कई सालो से विरोध भी कर रहे है और सत्ताधारियो को चेता रहे है लेकिन तात्कालिक सरकारे उस और ध्यान न देकर विकास के नाम पर पर्यावरण विरुद्ध पहाड़ो नदियों के साथ खिलवाड़ कर अपनी पीठ थपथपा रही है जिसकी त्रासदी आम जनता अपने जान मॉल से चूका रही है। उक्त स्थानों की मौतों का सरकारी आंकड़ा सेंकडो में है जबकि वास्तविक रूप में हजारो लोग उक्त त्रासदियों से असमय मौत के आगोश में समां गए है, गांव के गांव जलमग्न होकर अपना वजूद खो चुके है। कब हम स्वीकार करने का साहस करेंगे की प्रकृति के साथ अत्यधिक खिलवाड़ करना मानव जीवन के लिए खतरनाक है. यह प्रकृति का पलटवार बादल फटने भूस्खलन के रूप में हुई उक्त त्रासदियों से समझा जा सकता है आज देश के जम्मू कश्मीर , हिमाचल प्रदेश , उत्तरखंड , पंजाब , हरियाणा , और आंशिक रूप से दिल्ली में प्राकृतिक आपदा से आयी बाद के कारन जनजीवन अस्त व्यस्त होकर लाखो लोग प्रभावित हुए है और लाखो करोड़ो रूपये की आर्थिक हानि के साथ हजारो मौते हुई है लेकिन दुखद पहलु है की देश की राजनीती कितनी असंवेदनशील हो गई है की देश के प्रधान को इस समय उक्त प्रदेशो में होना चाहिए ,आपदा पर केंद्रीय बैठके लेना चाहिए लेकिन देश का प्रधान और पूरा केंद्रीय प्रशासन आँख मूंदकर सोया हुआ है और चीन के दौरे के साथ ही चुनावी रैलियों में व्यस्त है और उक्त प्रदेशो की आम जनता को भगवन भरोसे छोड़ दिया गया है , क्या वर्तमान में प्राकृतिक आपदा के समय भी मात्र चुनाव जितना ही सत्तापक्ष का मुख्य उदेश्य रह गया है और अगर ऐसा है तो यह देश का दुर्भाग्य है। पहले अगर एक भी राज्य में प्राकृतिक आपदा आती थी तो उस पर बैठके हवाई दौरा कर उसके निराकरण के लिए आवश्यक कदम उठाकर राहत प्रदान की जाती थी लेकिन आज यह सब इतिहास के पन्नो में सिमट कर मात्र चुनाव जितना ही मुख्य उदेश्य रह गया है। अग्रवाल ने कहा की अगर प्राकृतिक आपदाओं को रोकना है तो पर्यटन स्थलों का कृतिम विकास ,नदियों के किनारे ऊँची ऊँची इमारतों का निर्माण कर नदियों को संकरा करने की प्रवति , सड़क निर्माण के विकास में पहाड़ो की प्रकृति विरुद्ध कटाव , सड़को के आधुनिक विकास को दिखाने के लिए पहाड़ो के बिच लम्बी लम्बी सुरंगो का निर्माण, पर्यावरण के प्रतिकूल बांधो का निर्माण , विकास के नाम पर जंगलो की अंधाधुंध कटाई , अवैध उत्खनन की मानवीय प्रवति पर तुरंत रोक लगाकर ही हम वर्ष दर वर्ष होने वाली इस प्रकार की मानव जनित प्राकृतिक आपदाओं को रोक सकते है अन्यथा हमें इसी प्रकार की आपदाओं के लिए तैयार रहना पड़ेगा। । मुझे बड़ा दु:ख है की देश का प्रधान तो उक्त प्रदेशो से गायब है लेकिन छोटी छोटी घटना पर चिल्लाने वाला गोदी मिडिया भी उक्त त्रासदी को छोड़कर अपने आका के महिमामंडन में लगा है , जंहा आपदा पर कोई चर्चा नहीं कोई कवरेज नहीं क्या उनकी नजर में यह राष्ट्रीय मुद्दा नहीं ? क्या यही लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है ?
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