(भोपाल)सोशल मीडिया की मदद से मिले 40 साल पहले बिछड़े पिता
- 01-Aug-25 12:00 AM
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भोपाल 1 अगस्त (आरएनएस)। डीएसपी संतोष पटेल की सोशल मीडिया पोस्ट से बैतूल में एक बेटे को उसके लापता पिता 42 साल बाद मिल गए। बेटा चार दशक से यह मानकर चला कि उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे।15 जुलाई को डीएसपी पटेल अपनी पत्नी का जन्मदिन मनाने भोपाल के आसरा वृद्धाश्रम पहुंचे थे। यहां उनके ध्यान एक बुजुर्ग की ओर गया। बातचीत में उन्होंने अपना नाम पूरन सिंह बताया और दावा किया कि वे कभी पुलिस विभाग में सब-इंस्पेक्टर थे। उन्होंने अपनी उम्र करीब 85 साल बताई।उन्होंने इस मुलाकात का एक वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर किया। वीडियो ने बैतूल के कुछ जागरूक नागरिकों का ध्यान खींचा। कोठी बाजार में रहने वाले रवि त्रिपाठी ने पूरन सिंह के परिवार का पता लगाने का बीड़ा उठाया। इसके बाद कडियां जुड़ते गई और बुजुर्ग के परिवार का पता चल गया।आश्रम के संचालक मोहन सोनी और व्यवस्थापक समीना मसीह ने बताया कि पूरन सिंह मानसिक रूप से अस्थिर हालत में करीब आठ महीने पहले आश्रम आए थे। धीरे-धीरे पता चला कि उनका असली नाम पूरन सिंह ठाकुर है। वो कभी ग्वालियर, सागर और भिंड जैसे शहरों में पुलिस अधिकारी रह चुके हैं।रवि त्रिपाठी ने सबसे पहले अपने मित्र गजानन सूर्यवंशी से बात की। गजानन ने उन्हें रात 10 बजे वीडियो भेजा और एक संदिग्ध पहचान की बात बताई। रवि ने तत्परता दिखाते हुए इलाके के बुजुर्गों से संपर्क किया। कोठी बाजार के पास रहने वाले सुरेंद्र सिंह ठाकुर से पूछताछ की, जिन्होंने बताया कि एक पूरन नामक फुटबॉल खिलाड़ी उस क्षेत्र में रहता था और उसके पिता पुलिस विभाग में थे। इसके बाद रवि त्रिपाठी ने बैतूल के जाने-माने फुटबॉलर इकबाल भाई से संपर्क किया।इकबाल भाई ने पहचान की और बताया कि यह व्यक्ति दरअसल, पूरन सिंह धुर्वे उर्फ पूरन गोंड हैं, जो टेमनी गांव के रहने वाले थे। इसके बाद रवि त्रिपाठी टेमनी गांव गए। वहां प्रेम वर्मा व जॉनसन हेराल्ड (सेवानिवृत्त एसआई) से संपर्क किया। जब उन्होंने पूरन सिंह की तस्वीर देखी तो तुरंत पहचान लिया और कहा "हां, ये पूरन हैं साहब। हम इनके साथ 18-20 साल की उम्र में फुटबॉल खेला करते थे।जॉनसन हेराल्ड ने रवि त्रिपाठी को बताया कि पूरन सिंह का चयन सब इंस्पेक्टर के तौर पर हुआ था। उनकी ट्रेनिंग सागर में हुई और बाद में पोस्टिंग ग्वालियर में। वहां से उनका ट्रांसफर भिंड हुआ। उस समय वे सरकारी डाक लेकर भोपाल आए थे, जहां पर मोटरसाइकिल लोन की किसी योजना के लिए उन्होंने आवेदन किया।इसी दौरान उनकी पुश्तैनी ज़मीन बैतूल में एक डैम परियोजना की डूब क्षेत्र में आ गई। मुआवजा लेने वे बैतूल वापस गए। बैतूल में रहते हुए वे शराब की लत में फंस गए। उनकी पत्नी का एक सड़क हादसे में देहांत हो गया, जिससे उन्हें गहरा मानसिक आघात पहुंचा। फिर वे पूरी तरह से मानसिक संतुलन खो बैठे और कहीं चले गए। इसके बाद उनका कोई पता नहीं चल सका।दोस्त और बैतूल के रहने वाले लोग व आश्रम के रहने वाले लोगों के अनुसार पता चला कि भोपाल के आसपास एक मुस्लिम परिवार के खेत में वे करीब 30–35 साल तक रहे। उस परिवार के मुखिया के निधन के बाद, उनका बेटा उन्हें आसरा आश्रम छोड़ गया। हालांकि इसको लेकर बहुत सारी बातें अभी भी साफ नहीं हैं। पूरन सिंह खुद कुछ इस बारे में सही से नहीं बता पा रहे हैं कि वह तीस से पैंतीस साल तक कहां रहे।पूरन सिंह जब गुम हुए थे, तब उनके बेटे राज सिंह की उम्र महज डेढ़ साल थी। उन्हें उनके चाचा ने पाला। परिवार ने पूरन सिंह को मृत मान लिया और खोजबीन की कोई खास कोशिश नहीं की गई। राज सिंह की परवरिश भोपाल और फिर महाराष्ट्र के मुलताई के पास हुई। अब वे एक मेडिकल स्टोर में काम करते हैं। जब राज सिंह को पता चला कि उनके पिता जीवित हैं और भोपाल में हैं तो कहा- कभी सोचा भी नहीं था कि पिताजी मिलेंगे। नानी का देहांत हो चुका है, और बाकी रिश्तेदारों से भी कभी पूरी जानकारी नहीं मिली। मुझे बस इतना पता था कि वो कहीं खो गए थे।आसरा वृद्धाश्रम की व्यवस्थापक समीना मसीह ने बताया कि पूरन सिंह को जब लाया गया था, तो वे लावारिस हालत में थे। कहीं बेसुध पड़े हुए मिले थे। वो बार-बार यही बताते थे कि वे पुलिस में थे और ग्वालियर के किसी गांव से हैं, लेकिन बाकी कुछ याद नहीं था। न बेटे का नाम, न पत्नी का। उन्होंने कहा कि आठ महीनों से आश्रम में उनकी पूरी सेवा की गई। डॉक्टरों की मदद से उनकी हालत कुछ सुधरी और तभी धीरे-धीरे बातें सामने आने लगीं।
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