(भोपाल) अल्पसंख्यक नेताओं को टिकट देने से बच रही सभी राजनीतिक पार्टियां, क्या है वजह?

  • 19-Oct-23 12:00 AM

भोपाल,19 अक्टूबर (आरएनएस)। तमाम राजनीतिक दल अल्पसंख्यकों के कल्याण को लेकर बड़े-बड़े दावे और वादे करते हैं, लेकिन जब राजनीति में उन्हें हिस्सेदारी देने की बात आती है तो चुप्पी छा जाती है। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में भी उक्त बात चरितार्थ होती दिख रही है। सूबे में अब तक राजीतिक दलों ने अपनी लिस्ट में कुछ नामों को छोड़कर मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को शामिल नहीं किया है। रविवार को घोषित कांग्रेस की 144 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में मुस्लिम समुदाय से केवल एक उम्मीदवार है। वहीं भाजपा की अब तक की चार सूचियों के कुल 136 उम्मीदवारों में कोई भी मुस्लिम केेंडिडेट नहीं है। बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्अी के उम्मीदवारों की अब तक घोषित सूची में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला है। बसपा ने 73 उम्मीदवारों में से एक मुस्लिम कैंडडेट को टिकट दिया है। आम आदमी पार्टी ने अपने 39 उम्मीदवारों में दो मुस्लिम केंडिडेट को टिकट दिया है। वहीं सपा ने अपने नौ उम्मीदवारों में से किसी भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया है। राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों के अनुसार, राज्य में मुस्लिम आबादी लगभग सात से आठ फीसदी है यानी सूबे में उनकी आबादी 50 से 60 लाख है। राज्य में दो दर्जन से अधिक सीटों पर उनकी निर्णायक मौजूदगी है। एक समय मुस्लिमों की राज्य विधानसभा में अच्छी उपस्थिति थी। खसकर कांग्रेस उनको प्रमुखता से जगह देती थी। 1962 में मुस्लिम समुदाय से लगभग सात विधायक चुने गए थे। इनमें से छह कांग्रेस के टिकट पर चुने गए थे। साल 1967 में मुस्लिम विधायकों की संख्या घटकर तीन हो गई, लेकिन 1972 में बढ़कर छह हो गई। अगले तीन चुनावों में मुस्लिम विधाकयों की संख्या तीन, छह और पाँच थी। हालांकि राम जन्मभूमि आंदोलन के बाद 1990 में यह संख्या घटकर दो रह गई। 1993 के चुनावों में मुस्लिम समुदाय से कोई विधायक निर्वाचित नहीं हुआ। अनिल पुरोहित




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