(भोपाल) आज बगावत, कभी टिकट मिलने पर घर से भाग जाते थे प्रत्याशी
- 04-Nov-23 12:00 AM
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भोपाल,04 नवम्बर (आरएनएस)। भाजपा के स्थापना के बाद कई वर्षों तक ऐसी स्थिति रही कि चुनाव लडऩे के लिए प्रत्याशी ढूंढे नहीं मिलते थे। आज टिकट के लिए बगावत नजर आ रही है। दोवदर दल-बदल रहे हैं। 1980-85 में उम्मीदवार घोषित होने के बाद भी चुनाव से भाग जाते थे। पर्चा भरने के लिए नेता ढूंढने निकलते थे। बात 1985 के विधानसभा चुनाव की है। भाजपा ने जिले में कई बड़ी सभाएं की थीं। अटल बिहारी वाजपेयी, कुशाभाऊ ठाकरे, कैलाश जोशी, सुंदरलाल पटवा सहित कई बड़े नेताओं की सभाएं हुई थीं। उम्मीद थी कि इस बार पार्टी अच्छा प्रदर्शन करेगी। सिरमौर विधानसभा सीट से कांग्रेस के राजमणि पटेल को हराने के लिए पार्टी ने जमीनी स्तर पर मेहनत की। ठाकरे ने चौखंडी में पार्टी नेताओं की बैठक में स्थानीय नेता फूलचंद का नाम तय कर दिया। इसके बाद पार्टी ने उन्हें अपना प्रत्याशी भी अधिकृत तौर पर घोषित कर दिया। अधिसूचना जारी होने के बाद नामांकन फॉर्म जमा करने की प्रक्रिया शुरु हुई। निर्धारित तिथि को भाजपा के घोषित प्रत्याशी जब फार्म जमा करने नहीं पहुंचे तो पार्टी के नेता उनके घर चौखंडी गए। यहांपरिजनों ने बताया कि वह चुनाव नहीं लडऩा चाहते। इसलिए रिश्तेदार के यहां चले गए हैं। पार्टी की छवि पर इसका असर न पड़े, इस वजह से पार्टी के लोग रिश्तेदार के यहां भी पहुंचे। वहां से भी वह गायब हो गए। दो दिन शेष रह गए थे, इस कारण दूसरे प्रत्याशी को सिंबल देने का निर्णय लिया और फार्म भराया। इसी तरह दूसरी सीटों पर भी यही स्थितियां थीं। कोर्ठ ऐसा प्रत्याशी नहीं मिल पा रहा था जो स्वयं चुनाव का खर्च वहन कर सके। इस कारण कई कार्यकर्ताओं को ही मैदान में उतारा गया था। उस बार मऊगंज-मनगवां सीट पर प्रदर्शन ठीक रहा। एक अन्य किस्सा भी बड़ा रोचक है। भाजपा ने 1980 में चुनाव प्रबंधन और संगठन को बढ़ाने के लिए रेवाचंल बस स्टैंड के पास पहली बार पार्टी का कार्यालय खेला था। कार्यालय के ठीक नीचे होटल था, जहां पूरे दिन भट्टी जलती रहती थी। जून के महीने में कुशाभाऊ ठाकरे आए और कार्यालय का उद्घाटन करने पहुंचे। पार्टी की हालत ऐसी थी कि पंखा लगाने का भी बजट नहीं था। काफी देर बाद जब ठाकरे के भाषण का नंबर आया तब तक वे गर्मी से बेहाल हो चुके थे। उन्होंने कुर्ता उतार दिया और बनियान पहने ही भाषण शुरु कर दिया। कुछ देर तक किसी कार्यकर्ता ने हाथ पंखा (बेना) से हवा की। बाद में उन्होंने उसे हाथ में ले लिया और पूरा भाषण समाप्त किया। .
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