(भोपाल) एक गौंड राजा जो बनें मप्र के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री
- 01-Oct-23 12:00 AM
- 0
- 0
भोपाल,01 अक्टूबर (आरएनएस)। वे गौंड आदिवासी राजा थे। अविभाजित मप्र की सारंगढ़ रियासत के अंतिम शासक। देश में रियासतों के विलय के बाद उन्होंने 1951 में मध्यभारत की राज्य विधानसभा के पहले चुनाव में जीत हासिल की। 1962 में वे पुसौर (अब छत्तीसगढ़ में) से विधायक बनें। वे प्रदेश के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री बनें मगर महज 13 दिनों के लिए। उनका कार्यकाल 13 से 26 मार्च तक ही रहा। मप्र के अब तक के इतिहास में वे पहले और आखिरी नेता रहे जो आदिवासी मुख्यमंत्री थे। हम बात कर रहे हैं सारंगढ़ रियासत के अंतिम राजा नरेशचंद्र सिंह की। साल 1969 में 13 मार्च को उन्होंने संविद सरकार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और जब सरकार नहीं चल पाई तो उन्होंने 26 मार्च को इस्तीफा दे दिया। उस दौर की राजनीति से वे इतने आहत हुए कि उन्होंने मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद विधानसभा की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया और राजनीति को भी छोड़ दिया। भारतीय राजनीति में ऐसे उदाहरण भी देखने को नहीं मिलते। बाद में इंदिरा गांधी के कहने पर नरेशचंद्र सिंह ने अपनी बेटी पुष्पा को रायगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़वाया था। वे अपने पिता राजा बहादुर जवाहर सिंह की तरह राजकुमार कॉलेज, रायपुर के पूर्व छात्र थे। उन्होंने सारंगढ़ राज्य के प्रशासन में शिक्षा मंत्री के रूप में शामिल होने से पहले रायपुर जिले में मानद मजिस्ट्रेट के रूप में भी काम किया था। कहते हैं 1954 में उनके व्यक्तिगत निमंत्रण पर भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी सारंगढ़ पधारे थे और उनके आग्रह पर राष्ट्रपति ने सारंगढ़ में एक कृषि विद्यालय की नींव रखी। इस विद्यालय में छात्रों को प्रैक्टिकल ट्रेनिंग देने के लिए नरेशचंद्र सिंह ने अपनी 60 एकड़ निजी भूमि दान में दी थी। अनिल पुरोहित
Related Articles
Comments
- No Comments...