(भोपाल) कमलनाथ यानि चतुर और चपल राजनेता, जिनके जेहन में योजनाओं के ब्लूप्रिंट फडफ़ाड़ते रहते हैं

  • 13-Oct-23 12:00 AM

भोपाल,13 अक्टूबर (आरएनएस)। छिंदवाड़ा मध्यप्रदेश का सीमांत जिला है। उसकी सीमायें महाराष्ट्र से लगी हैं। प्रशासनिक तकजों को छोड़ दें तो इसका वास्ता महाराष्ट्र से ज्यादा है। लोगबाग चिकित्सा, शिक्ष, खरीद-फरोख्त के लिए प्राय: नागपुर का रुख करते हैं। कह सकते हैं कि छिंदवाड़ा की रंगत में मराठी छींट है या कि छिंदवाड़ा की लुक में वैदर्भी टच है। बहरहाल, बीती सदी के आठवें दशक के अंत तक छिंदवाड़ा अधिक ख्यात व ज्ञात नगर न था। उसे ख्याति मिली सन 1979 में जब पहले पहल कमलनाथ के छिंदवाड़ा आने से। कमलनाथ यानि श्रीमती इंदिरा गांधी के तीसरे बेटे रूप में कमलनाथ जाने जाते हैं। आज राजनीति में छिंदवाड़ा की पहचान कमलनाथ से है। कमलनाथ के उपक्रमों से छिंदवाड़ा इस महादेश के राजनीतिक मानचित्र में चटकीले रंगों में उभर आया है। कमलनाथ से उसे प्रतिष्ठा मिली है। कार्पोरेट-संसार के लिए छिंदवाड़ा अब अजनबी नहीं। मेरा सन 1980 से नियमित छिंदवाड़ा आना-जाना है। कस्बाई छिंदवाड़ा आज महानगर प्रतीत होता है। वहां लकदक सड़कें हैं। शोरूम हैं, आलीशान होटल हैं। कमलनाथ ने छिंदवाड़ा को समय की रफ्तार से जोड़ा है। आधुनिकता के इस दौर में वहां आस्था के प्रतीक हनुमान जी की विशाल प्रतिमा है, जिसकी स्थापना का श्रेय कमलनाथ को जाता है। पटवा के हाथों अप्रत्याशित पराजय के इकलौते अपवाद को छोड़ दें तो नाथ-परिवार छिंदवाड़ा की पहली पसंद रहा है। चुनाव सन्निकट हैं तो प्रश्न स्वाभाविक है कि क्या यह क्रम कायम रहेगा? क्या कमलनाथ के अपने छिंदवाड़ा में कमलनाथ के मेरे अपने जीत का परचम लहरायेंगे? या फिर छिंदवाड़ा की सीटों पर कमल खिलेगा, जिसके लिए शिवराज, वीडी शर्मा से लेकर मोशा तक बेताब हैं? नेपथ्य में कवायद अरसे से जारी है। कमल मार्का पार्टी न जाने कब से व्यूह-रचना कर रही है? गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के संस्थापक मनमोहन शाह बट्टी की बिटिया मोनिका शाह बट्टी को पार्टी में लाकर आदिवासी बाहुल अमरवाड़ा से प्रत्याशी बनाना भाजपा की सुविचारित रणनीति का हिस्सा है। यह वही सीट है जहां से कभी प्रमनारायण ठाकुर जीता करते थे और चरणदास महंत और नर्मदा प्रसाद प्रजापति के साथ त्रिफला के तौर पर चर्चित हुए थे। आसन्न चुनाव में भाजपा की कोशिश अमरवाड़ा को नर्व सेंटर बनाने की रहेगी, ताकि इर्द-गिर्द की सीटों पर आदिवासियों का भाजपा के पक्ष में धु्रवीकरण हो सके। दिक्कत यह है कि अमरवाड़ा में स्थनीय भाजपा कार्यकर्ता मोनिका शाह बट्टी का घोर विरोध कर रहे हैं। यही हाल पांढुर्णा और परासिया का है। पांढुर्णा को ताबड़तोड़ जिला बनाने का दांव इस हद तक शायद ही कारगर हो कि पांढुर्णा के मतदाता कमल निशान पर समवेत ठप्पा लगा दें। जामई की बात करें तो वहां भी प्याली में तूफान उठा हुआ है। युवा नेता आशीष ठाकुर रूठे हुए हैं। उनकी मनुहार में नेतृत्व विफल रहा है। रुष्ट भाजपा नेताओं में परासिया के पूर्व विधायक ताराचंद बावरिया हैं। बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी नाराज नेताओं को मनाने छिंदवाड़ा में डेरा डाल चुके हैं, लेकिन उनकी युक्तियां असफल रहीं। फलत: भाजपा के माथे पर सलें बरकरार हैं। पड़ोसी सीट सौंसर में भाजपा ने नाना मोहोड़ को प्रत्याशी घोषित किया है। सौंसर के लोग भाजपा से इस नाते नाराज हैं कि वह सौंसर पर कम, पांढुर्णा पर अधिक मेहरबान हैं। सौंसर को जिला बनाने के लिए सैंकड़ों ज्ञापन दिये जा चुके हैं, मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात। पांढुर्णावासी पसनन हैं, लेकिन बहारी प्रकाश धुर्वे को प्रत्याशी बनाना घाटे का सौदा हो सकता है। भाजपा ने छिंदवाड़ा से विवेक बंटी साहू को टिकट थमायी है। इससे ऊपरी तौर पर तो सन्नाटा है, लेकिन भीतर ही भीतर आग सुलग रही है। पूर्व मंत्री चौधरी चंद्रभान सिंह और उनके समर्थकों की बेटी को उम्मीदवारी रास नहीं आ रही है। चौधरी परिवार का रसूख बंटी की संभावनाओं को सहज ही पलीता लाग सकता है। अमरवाड़ा में नौ सौ से अधिक कार्यकर्ताओं के भाजपा से सामूहिक इस्तीफे ने भी खतरे की घंटी बजा रखी है। अनिल पुरोहित




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