(भोपाल) मप्र में मिशन 2023 भाजपा के लिए आसान नहीं

  • 15-Oct-23 12:00 AM

भोपाल,15 अक्टूबर (आरएनएस)। कांग्रेस पार्टी को कड़ी भाजपा के लिये चुनौती मिल रही है। खासकर हिमाचल और कर्नाटक चुनाव परिणामों के बाद से पार्टी प्रदेश की स्थिति को लेकर और अधिक गंभीर हो गई है। पार्टी के रणनीतिकारों ने प्रदेश की विधानसभा सीटों की विभिन्न श्रेणी में बांटा है। सूत्रों के अनुसार भाजपा के रणनीतिकार मानते हैं कि मध्य प्रदेश में 160 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां वह अभी कमजोर दिख रही है। इसीलिए भाजपा ने आकांक्षी सीटों की संख्या 124 से बढ़ाकर 160 कर ली है। इसमेंसिंधिया समर्थकों की 21 सीटें भी शामिल हैं, जिन्हें 2020 के बाद उपचुनावों में पार्टी ने जीता था। भाजपा सिंधिया समर्थकों कीसीटों को इसलिए संघर्षपूर्ण मानती है क्योंकि यहां निष्ठावान भाजपाईयों और सिंधिया समर्थकों में संघर्श दिनों दिन बढ़ रहा है। ऐसे में आपीस घमासान का लाभ कांग्रेस को मिल सकता है। इसी वजह से ग्वालियर चंबल अंचल और अन्य स्थानों की सिंधिया समर्थकों की सीटों को भी कठिन सीटों में माना गया है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 109 और कांग्रेस को 114 सीटें मिली थी। बाद में हुए 31 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 21 सीटें जीतीं। पार्टी ने पहले 124सीटों को आकांक्षी सीटों के रूप में चिन्हित किया था बाद में यह आंकड़ा घटाकर 103 कर दिया गया, लेकिन सूत्रों के अनुसार भाजपा प्रदेश में 160 विधासभा सीटों को कठिन और चुनौतीपूर्ण मान रही है। इसका मतलब यह है कि पार्टी के लिए इस समय केवल 70 विधानसभा सीटें अनुकूल हैं। ये सीटें वे हैं जहां भाजपा पिछले तीन या उससे अधिक बार से चुनावों में हारी नहीं है। जाहिर है कि भाजपा के रणनीतिकार इस बार मुकाबला बेहद कठिन मान रहे हैँ। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 41 फीसदी और कांग्रेस को 40.9 फीसदी मत मिले थे। भाजपा केवल 43.37 वोटों के कारण सात सीटों पर हार गई थी। इस कारण उसे सत्ता गंवानी पड़ी थी। पिछले चुनाव में 18सीटें ऐसी थी जहां भाजपा एक हजार के लगभग अंतर से हारी। 30 सीट ऐसी थी जहां पार्टी को तीन हजार से कम मतों से भाजपा को पराजय का मुंह देखना पड़ा। 45 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीचतीन से पाँच हजार वोटों का अंतर था यह सभी सीटें भाजपा हार गई थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर दक्षिण ऐसी सीट थी जहां कांग्रेस के प्रवीण पाठक ने भाजपा उम्मीदवार को मात्र 121 मतों से हराया था। इसी तरह सुवासरा सीट पर भाजपा 350 मतों से हारी थी। कुल मिलाकर सात सीटें ऐसी थी जहां भाजपा 500 से कम मतों से हारी थी। पार्टी ने क्षेत्र के अनुसार तथा पिछले चुनाव के रिकॉर्ड के आधार पर मध्यप्रदेश की विधानसभा सीटों को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया है। पार्टी उसी हिसाब से अपनी रणनीति बना रही है। भाजपा संगठन के एक पदाधिकारी ने बताया कि 2018 विधानसभा चुनाव के बाद आए परिणामों की समीक्षा में 124 सीटें ऐसी थीं, जिन्हें आकांक्षी की श्रेणी में चिन्हित किया गया था। लेकिन तब से अब तक हुए 31 सीटों के उपचुनाव में बाजी पलट दी। भाजपा की 21 सीटें जीतने में कामयाबी मिली। कुछ सीटें ऐसी थीं, जहां 2018 में भाजपा के प्रत्याशी तीसरे और चौथे पंबर पर पहुंच गए थे। इन सीटों की अलग से रणनीति बन रही है। इसी खास रणनीति के चलते भाजपा ने तीन केंद्रीय मंत्री सहित सात सांसदों को मैदान में उतारा है। इनमें कैलाश विजयवर्गीय जैसे राष्ट्रीय महासचिव शामिल हैं। अनिल पुरोहित




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