(भोपाल) लोकतंत्र के पतन का मुकाम आखिर कहां...

  • 31-Oct-23 12:00 AM

भोपाल,31 अक्टूबर (आरएनएस)। चुनाव मेरे लिए हमेशा से कौतुहल का विषय रहे हैं। मीडिया में आने के बाद तो समझिए किसी जश्न से कम नहीं। बिना मगजमारी के विषयवस्तु मिल जात है। पन्ने पर पन्ने रंगते रहिए, सबकुछ अनुमान के आधार पर। चुनाव हम मीडियावी दुनिया के लोगों को ज्योतिषी बनाने का मौका देता है। किसी टिकट मिलेगा, कौन जीतेगा, किसकी सरकार बनेगी, बनेगी तो प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री कौन होगा। हममें से कई वरिष्ठ साथी ज्योतिषियों से भी सटीक भविष्यवाणी कर लेते हैं। चुनावी रिपोर्टिंग में जड़ति भी सुजान हो जाते हैं। चुनावी रिपोर्टिंग के निष्पक्ष होने की गुंजाइश बहुत कम ही होती है। वजह रिपेार्ट भी एक वोटर होता है, उसकी पसंदगी-नापसंदगी होती है। उसी को वह अपने तर्कों के साथ बुनकर परोसता है और अब तो मीडिया मैनेजमेंट का युग है, सबकुछ स्क्रिप्टेड हाता है। मसलन हवा किसकी बनानी है, पलड़ा किधर झुकाना है। किसके किस्से खन-खोद के उधाडऩे हैं किसके दफन रहने देने हैं। वैसे यह बिलकुल बाजीगरी होती है। आप जो दबाओबे तो दूसरा उसे उधेड़ देगा। अनिल पुरोहित




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