(भोपाल) ... और ऐसे राजा से सीएम बन गए नरेशचंद्र
- 31-Oct-23 12:00 AM
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भोपाल,31 अक्टूबर (आरएनएस)। मध्यप्रदेश में कई राजा ऐसे हैं, जो सीएम बने। कुछ वर्ष पूर्व राजा थे, कुछ वर्तमान। तो कुछ राज परिवार से होने के कारण राजा कहलाए। वर्ष 1969 के मार्च महीने की बात है। राज्य की पहली गैर-कांगे्रसी सरकार डगमगाने लगी थी। 12 मार्च को तत्कालीन मुख्मयंत्री गोविन्द नारायण सिंह को इस्तीफा देना पड़ा। 13 मार्च को नरेशचंद्र सिंह ने राज्य की कमान संभाली और सूबे के पहले और इकलौते आदिवासी मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन 13 दिन ही हालात ऐसे बने कि उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ा। नरेशचंद्र सिंह इस्तीफा देने से पहले द्वारिका प्रसाद मिश्रा से मिले थे और सभी की नजर इस मुलाकात पर थी। नरेशचंद्र सिंह का जन्म 21 नम्बर, 1908 को सारंगढ़िि रयासत के रियासतदार जवाहीर सिंह के घर हुआ था। आजादी से डेढ़ साल पहले पिता जयहीर सिंह का निनधन हो गया तो नरेशचंद्र सिंहराजा बन गए। साल 1947 को जब देशवासियों को आजादी मिल गई तोराजा नरेशचंद्र सिंह ने भी अपनी प्रजा को आजाद कर दिया। सारंगढ़ का विलय भारतीय संघ में हो गया और वो खुद कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। साल 1952 में तो उन्होंने किस्मत आजमाई और सारंगढ़ विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे। जनता ने उन्हें जिताया और विधानसभा पहुंचा दिया। हालांकि, उस समय मध्यप्रदेश राज्य नहीं बना था और सूबा था उसे मध्य प्रांत कहा जाता था। रविशंकर शुक्ल सूबे केक पहले मूुख्यमंत्री बने। नरेश को शुक्ल कैबिनेट में जगह मिली और उन्हें बिजली तथा पीडब्ल्यूडी विभाग का मंत्री बनाया गया। साल 1954 में आदिवासियों के उत्थान के लिए अलग से विभाग बनाया शुरु हुआ। प्रदेश को 1955 में आदिवासी कल्याण मंत्री बनाया गया। कुछ ही दिनों में संविद सरकार गिर गई और सीएम बोविंद सिंह ने इस्तीफा दे दिया। राजमाता विजयराजे सिंधिया किसी ऐसे शख्स को मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं, जो सर्वमान्य हो। ऐसे में राजा नरेंशचंद्र सिंह का नाम सामने आया। यह प्रदेश में बतौर मंत्री काम कर चुके थे और प्रशासनिक अनुभव भी था। फिर क्या था राजमाता की तलाश नरेाचंद्र के रूप में पूरी हुई। 13 मार्च, 1969 को नरेंशचंद्र ने सीएम की शपथ ली, लेकिन कुछ दिन बाद ही गोविंद नारायण सिंह अपने समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस मेें लौट गए। इसी के साथ नरेश सरकार अल्पमत में आग ई। इस कारण, 25 मार्च यानी 13वें दिन नरेशंचद्र सिंह को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पउ़ा। इस पूरी घटना से नरेश ने खुद का ठगा सा महसूस किया। सीधे स्वभाव के राजा को अहसास हुआ कि वह राजनीतिक दांव-पेंच नहीं समझ प8ाए औरउनका इस्तेमाल हुआ। इससे नाराज होकर उन्होंने विधानसभा की सदस्यता ेस इस्तीफा दे दिया और सारंगढ़ लौट गए। अनिल पुरोहित
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