(रतलाम)आंख खुले तो उसे उठना और हदय खुलने का मतलब जागना है- आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा.

  • 09-Nov-23 12:00 AM

रतलाम, आरएनएस, 09 नवंबर। जीवन में जब लाभ होता है,तो लोभ भी बढ़ता है। गंगा जैसी बड़ी नदी का कहीं ना कहीं किनारा होता है, पर्वत का भी कहीं अंत होता है,लेकिन हमारी इच्छाओं का कोई अंत नहीं है। प्राप्ति कभी पूर्ति करती ही नहीं है। मनुष्य जीवन में तीन प्रकार की मूर्खता करता है -एक इच्छा करना, दो इच्छा पूर्ति के लिए प्रयास करना और तीन इच्छा की पूर्ति नहीं हो, तो आक्रोश करना।इनसे सबको बचना चाहिए।यह बात आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. ने सैलाना वालों की हवेली मोहन टॉकीज में कही 7 उन्होंने कहा कि रावण ने भी ऐसे ही मूर्खता की थी। प्रभु कथा के माध्यम से जो उपदेश देते हैं, उसमे वे कहते है कि जब तक मन में संतोष नहीं होगा, तब तक लाभ नहीं होता है, इसलिए इच्छाओं का अंत कर दो। विश्राम के लिए संतोष अत्यंत जरूरी है।आचार्य श्री ने कहा कि आहार, नींद और आवश्यकता इन्हे जितना बढ़ाएंगे, उतना बढ़ेगी और जितना छोड़ेंगे उतना छूटेगी। जहां अनेक है वहां संघर्ष है और जहां एक है वहां पर शांति है। हम स्वजनो के बीच बैठकर पूरे जीवन शांति चाहते है। जहां संसार है, वहां शांति नहीं है और जहां शांति है, वहां संसार नहीं है। जीवन में जब कभी दु:ख आए,तो सोचना की यह समय भी बीत जाएगा और सुख का सूरज उगेगा।आचार्य श्री ने कहा कि मानव भव सिर्फ जागने के लिए मिला है। आंख खुले तो उसे उठना कहते है और हदय खुलने का मतलब जागना होता है। श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी द्वारा आयोजित प्रवचन में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।




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