(रतलाम)आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने किया मन को परिपक्व बनाने का आव्हान
- 01-Oct-23 12:00 AM
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-छोटू भाई की बगीची में प्रवचनरतलाम, आरएनएस, 01 अक्टूबर। मन की परिपक्वता हमे गंभीर बनाती है। इससे स्थिरता आती है और शांति मिलती है। मन यदि अपरिपक्व होता है, तो चंचल होता है। उसमें तूफान चलते रहते है। आज हम सबका मन अपरिपक्व है। इसी कारण जगत में शांति नहीं मिलती। सत्संग और स्वाध्याय मन को परिपक्व बनाते है। सभी अपने मन को परिपक्व बनाए।यह आव्हान परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने किया। छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान उन्होंने श्री हुक्म गच्छीय शांत क्रांति जैन श्री संघ के गठन से लेकर अब तक के इतिहास पर विस्तार से प्रकाश डाला। आचार्यश्री ने कहा कि अपरिपक्वता समस्या और परिपक्वता समाधान होती है। उम्र से कई लोग बढे हो जाते है, लेकिन उनके परिपक्वता नहीं आती है। परिपक्वता आती है, तो हमारा मन धीर-गंभीर, शांत-सहिष्णु, शांत और स्थिर बनता है। इसलिए यदि जीवन में मन को परिपक्व नहीं बनाया, तो खाली हाथ आए थे और खाली हाथ ही चले जाएंगे।आचार्यश्री ने कहा कि बच्चों को यदि छोटी उम्र से संस्कार मिलते है, तो वे परिपक्व होते है। करेला कडवा, नींबू खटटा, मिश्री मिठी और मिर्ची चर्खी होती है, ये इनका नियत स्वभाव है, लेकिन मन का स्वभाव नियत नहीं होता है। वह कभी भी कही भी भटक जाता है। सत्संग में सालों तक जाने के बाद भी कई लोगों का मन वैचारिक और मानसिक परिपक्व नहीं होता। इसलिए जैसे फल परिपक्व होने ही रस देता है, वैसे मन को परिपक्व करो, तो सबकों जीवन का रस मिलेगा।आरंभ में उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा ने दान करने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि धन की गति दान, भोग और विनाश है। धन के विनाश से पहले उसका दान करना चाहिए। दान यदि सुपात्र को होगा, तो कई लाभ देने वाला रहेगा। प्रवचन में महासती श्री ख्यातिश्री जी मसा ने भी विचार रखे। इस मौके पर महासती श्री इन्दुप्रभाजी मसा ने 13 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। उपाध्याय प्रवरजी सांसारिक माता कुसुम बाई के देहावसान पर नवकार महामंत्र का जाप कर श्रद्धाजंलि अर्पित की गई। रतलाम श्री संघ की और से विजेन्द्र गादिया ने भाव रखे। उदयपुर के डॉ. मदन मोदी ने चातुर्मास की विनती की। इस मौके पर देश के विभिन्न स्थानों से आए श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।
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