(रतलाम)आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. की साधना निमित्त की गई 1008 समूह सामायिक
- 01-Oct-23 12:00 AM
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- मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा. की ने बताया सामायिक का महत्वरतलाम, आरएनएस, 01 अक्टूबर। आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. की साधना के बल निमित्त रविवार को श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी का चल समारोह निकला। इसमें आचार्य श्री के शिष्य मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा. की निश्रा में सैलाना वालों की हवेली मोहन टाकीज में एक साथ 1008 समूह सामायिक करने वाले समाजजन शामिल हुए। सभी सामायिकवृत्ति एक साथ सेठजी का बाजार स्थित आगमोद्धारक भवन से बैंड-बाजे के साथ निकले और प्रमुख मार्गों से होते हुए सैलाना वालों की हवेली मोहन टॉकीज पहुंचे।यहां मुनिराज ने प्रवचन देते हुए सामायिक धर्म के जीवन में महत्व को परिभाषित किया। सामायिक पर प्रकाश डालते हुए मुनिराज ने कहा कि साधु जीवन यानी एंड ऑफ लाइफ है। आप 24 घंटे नहीं तो कम से कम 12 घंटे और इतने भी नहीं तो मात्र 48 मिनट तो सामायिक करें। इसमें बहुत ताकत होती है और इससे नरक भी तोड़ा जा सकता है। मानव का स्वभाव होता है कि वह थिएटर में ढाई घंटे की फिल्म एकचित होकर देख लेता है लेकिन कुछ मिनटों की प्रभु की आराधना के दौरान हमारा मन विचलित हो जाता है।मुनिराज ने कहा कि प्रभु की भक्ति में कम प्रयास में बेहतर परिणाम मिलता है, इसलिए प्रभु की भक्ति प्रतिदिन नियमित रूप से करना चाहिए। तप करने के लिए देव के पास भाव तो है लेकिन भव नहीं है और मानव के पास भव है लेकिन प्रभु भक्ति के लिए भाव नहीं है। सामायिक के लिए हमे अपने भीतर भाव लाना होगा तब जाकर हमारा जीवन चरितार्थ होगा। सामायिक में महत्वपूर्ण बूरे को छोडऩा है, भले ही अच्छा न कर सके। जीव को प्रवृत्ति धर्म पसंद है, निवृत्ति धर्म नहीं है।
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