(रतलाम)आत्मनिंदा ही जीव के लिए मोक्ष का एक मात्र सरल सुलभ मार्ग है

  • 29-Jul-25 12:00 AM

- प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म. सा. ने धर्मसभा में कहा30 से अधिक तपस्वी मासक्षमण तप की ओर अग्रसररतलाम, आरएनएस, 29, जुलाई। आत्मनिंदा करने वाला व्यक्ति मन में पश्चाताप करता है और आत्मनिंदा ही जीव के लिए मोक्ष का एकमात्र सरल एवं सुलभ मार्ग है। आत्म निंदा करने वाला व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है। उक्त प्रेरणादायी व्याख्यान आचार्य प्रवर पूज्य श्री उमेशमुनिजी म. सा. के सुशिष्य धर्मदास गणनायक प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म. सा. ने डीपी परिसर में मंगलवार को आयोजित धर्मसभा में फरमाए।रसनेंद्रियों पर नियंत्रण कठिन हैप्रवर्तक श्रीजी ने आगे फरमाया कि अनादिकाल से जीव का रसनेंद्रिय से संबंध रहा है। इस पर नियंत्रण करना कठिन है लेकिन जो प्रयास करता है, उनके लिए आसान है। जो कंट्रोल कर लेता है, वह सभी इंद्रियों को जीत लेता है। ऐसा कौन सा पाप है, जो पाप रूप में समझ नहीं आता है कि मैं पाप कर रहा हूं। परनिंदा करने वाले व्यक्ति को लगता है कि मैं तो सच बोल रहा हूं। भगवान ने कहा है कि निंदा (पर परिवाद) पाप है, यह समझना बहुत कठिन है। आत्मनिंदा से पश्चाताप होता है। अपने आप को दोषी ठहराना, स्वयं की गलती को स्वीकार करना, अपने आप को बुरा देखना कठिन है। क्योंकि व्यक्ति को स्वयं की बुराई समझ नहीं आती है, अंतर्मन से व्यक्ति मानता नहीं है। इसलिए भगवान ने कहा है कि अपने दोषों को, बुराई को स्वयं देखो, कोई दूसरा देखेगा तो कैसा लगेगा ?संयम स्वयं की आत्म आराधना के लिए हैश्री अतिशयमुनिजी म. सा. ने फरमाया कि मनुष्य भव दुर्लभ है या देव भव ? भौतिक साधन दुर्लभ है या धर्म दुर्लभ है ? दुर्लभ वस्तु की प्राप्ति करना अच्छा या उपलब्ध वस्तु की ? जीव हमेशा सुलभ वस्तु प्राप्त करने का प्रयास करता है और उसमें मस्त हो जाता है। दुर्लभ वस्तु कितनी दुर्लभता से प्राप्त होती है, वह उसे नहीं पता। अधिकांश लोग दुर्लभ वस्तु मिलने के बाद भी उसका सही उपयोग नहीं करते है। जो जीव इस दिशा में पुरुषार्थ करता है और उसमें रम जाता है, वह साधु बन जाता है। श्रावक बनने का भाव तब साकार होगा, जब साधु बनने की इच्छा हो। मात्र प्रतिज्ञा करने से कोई कुछ हासिल नहीं कर लेता, प्रयत्न पुरुषार्थ करना पड़ता है। हमें अपनी प्रवृत्ति पर नियंत्रण करना है, जो इंद्रियों के माध्यम से संभव है। इंद्रियों पर जितना नियंत्रण होगा, उतना मन स्थिर होगा। मन, वचन, काया में मन को पहले समझना पड़ेगा। मन पर नियंत्रण के लिए सबसे पहले काया को स्थिर रखना होगा। मनुष्य ने यदि इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं किया तो यह भव किसी काम का नहीं है। संयम, स्वयं की आत्म आराधना के लिए है। अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखने वाला जीव, मोक्ष मार्ग का अधिकारी होता है।वर्तमान की पाप क्रियाओं पर नियंत्रण करनारत्नपुरी गौरव श्री सुहासमुनिजी म. सा. ने फरमाया कि भगवान फरमाते हैं कि आलोचना के माध्यम से स्वयं की निंदा कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़े। वर्तमान में इतनी तप क्रियाएँ करते हुए भी जीव मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाता है। इसलिए स्वयं की वर्तमान की पाप क्रियाओं पर नियंत्रण करना है। जो आराधक मोक्ष के लक्ष्य को लेकर सम्यक प्रयत्न कर रहे हैं, वे आगे बढ़ रहे हैं। जिनवाणी के माध्यम से सभी निरंतर आगे बढ़ते रहें।30 से अधिक आराधक मासक्षमण तप की ओर अग्रसरगुरु समर्पण वर्षावास समिति के मुख्य संयोजक शांतिलाल भंडारी, श्री धर्मदास जैन श्री संघ के अध्यक्ष रजनीकांत झामर व चातुर्मास समिति के अजीत मेहता ने बताया कि प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म. सा. आदि ठाणा - 9 एवं पुण्य पुंज साध्वी श्री पुण्यशीलाजी म. सा. आदि ठाणा - 10 के सानिध्य में यहां प्रतिदिन तप, त्याग, धर्म, ध्यान, ज्ञान आदि विभिन्न आराधनाएं हो रही हैं। जिसमें बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाएं उत्साहपूर्वक आराधना का लाभ ले रहे हैं। गुरु समर्पण वर्षावास के दौरान दिन प्रतिदिन तपस्या एक अदभुत रंग ला रही है। यहां लगभग 30 से अधिक तपस्वी अपनी दृढ़ता के साथ मासक्षमण तप की ओर अग्रसर हो रहे हैं। यहां विभिन्न तप आराधनाएं पूर्ण हो चुकी है। वहीं कई आराधकों की तपस्या जारी है। संचालन अणु मित्र मंडल के मार्गदर्शक राजेश कोठारी ने किया।




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