(रतलाम)गुरू को प्रसन्न रखो और गुरू से प्रसन्न रहो में ही श्री उत्तराध्ययन सूत्र का सार- आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा.
- 07-Nov-23 12:00 AM
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नगर में निकली अहोभावयात्रारतलाम, आरएनएस, 07 नवम्बर। आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में श्री उत्तराध्ययन सूत्र की वाचना मंगलवार से आरंभ हुई। इसके पूर्व सुबह आगमोद्धारक भवन से उत्तराध्ययन सूत्र की आगमयात्रा एक अहोभावयात्रा के रूप में निकाली गई। यात्रा शहर के प्रमुख मार्गों से होती हुई सैलाना वालों की हवेली मोहन टॉकीज पहुंची। जहां पूजन-अर्चन के बाद आचार्य श्री ने इसका पाठ प्रारंभ किया।आचार्य श्री की निश्रा में निकली यात्रा में श्री संघ महिला मंडल की 108 श्राविकाएं सिर पर श्री उत्तराध्ययन सूत्र को लेकर यात्रा की शोभा बढ़ाती नजर आई। श्री उत्तराध्ययन सूत्र में भगवान महावीर ने अपने जीवन के अंतिम दो दिनों में 16-16 प्रहर तक लगातार देशना दी थी। उत्तराध्ययन सूत्र की वाचना 6-6 दिन तक अखंड प्रतिदिन 1.30 घंटे तक चलेगी।आचार्य श्री ने उत्तराध्ययन सूत्र के सार गुरू को प्रसन्न रखो और गुरू से प्रसन्न रहो की व्याख्या करते हुए कहा कि गुरू की आज्ञा में शंका नहीं, डिस्कस नहीं और डिस्र्टब नहीं हो, तो गुरू प्रसन्न रहते है। आचार्य श्री ने कहा कि जिसमें सहन करने की शक्ति नहीं है, वह विनय नहीं बन सकता है। सहन करने वाला जिंदा रहता है। प्रभु कहते है कि सहन करना तप नहीं है, प्रसन्न रहकर सहन करना तप कहलाता है।आचार्य श्री ने कहा कि जो पत्थर छैनी की मार सह सकता है, वहीं प्रतिमा बनकर मंदिर में पूजा जाता है। मूर्ति प्रभु का आकार है और पौथी प्रभु के वचन होते है। यदि किसी ने उत्तराध्ययन सूत्र याद कर लिया तो वह भव्य है और उसका मोक्ष निश्चित है। श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी द्वारा आयोजित प्रवचन में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे। प्रवचन के पश्चात प्रभावना के लाभार्थी स्व. प्रकाशदेवी नाथुलालजी संघवी परिवार एवं श्री पाश्र्वनाथ जैन मित्र मंडल टी.आई.टी. रोड रहा।
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