(रतलाम)जहां विनय हो, संस्कार हो वह परिवार सबसे सुखी - प्रवर्तक श्री जिनेंद्रमुनिजी म.सा.
- 06-Aug-25 12:00 AM
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रतलाम, आरएनएस, 06, अगस्त। आचार्य श्री उमेशमुनिजी म.सा. के सुशिष्य धर्मदास गणनायक प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म.सा. आदि ठाणा - 9 वर्षावास हेतु डीपी परिसर लक्कड़पीठा पर विराजित है। वहीं पुण्य पुंज साध्वी श्री पुण्यशीलाजी म. सा. आदि ठाणा - 10 गौतम भवन सिलावटों का वास पर वर्षावास हेतु विराजित है।भोजनशाला समिति के संयोजक हस्तीमल चौपड़ा व समिति के राजेश भंडारी ने बताया कि गुरु समर्पण वर्षावास में श्रावक श्राविकाएं उत्साह पूर्वक आराधनाएं कर रहे हैं। प्रवर्तक श्री जिनेंद्रमुनिजी म.सा. एवं मुनि मंडल के व्याख्यान प्रतिदिन डीपी परिसर पर हो रहे है। जिसमें बड़ी संख्या में आराधक उपस्थित हो रहे है। बुधवार को धर्म सभा में एक साथ चार मासक्षमण तपस्वी व एक सिद्धि तप तपस्वी का बहुमान आयोजित हुआ। पूरी धर्मसभा तपस्वी के जयकारों से गूंज उठी।बुधवार को आयोजित धर्मसभा में प्रवर्तक श्री जिनेंद्रमुनिजी म.सा. ने फरमाया कि एक प्रश्न सभी से, दुनिया में सबसे सुखी परिवार कौन सा है? जहां विनय हो और संस्कार हो वह परिवार। दुनिया में सबसे सम्पन्न परिवार कौन सा? जहां आत्मीय व्यवहार हो वह परिवार। दुनिया का सबसे समृद्ध परिवार कौन सा? जहां बड़ों की आज्ञा स्वीकार हो वह परिवार। दुनिया का सबसे सर्वोत्तम परिवार कौन सा है? जहां धर्म की लहर हो वह परिवार। जिस घर में विनय और संस्कार नहीं होते हैं तो वह दुखी परिवार होता है। बड़ों के प्रति सम्मान नहीं है तो वह सुखी नहीं है। वंदन तीन प्रकार के होते है, अरिहंत, सिद्ध व मुनिराज। अरिहंत, सिद्ध भगवान को हम परोक्ष वंदना करते हैं तथा हमारे समक्ष जो मुनि भगवन हैं उन्हें प्रत्यक्ष वंदना करते हैं। वंदना करने से नीच गोत्र का क्षय तथा उच्च गोत्र का बंध होता है। आदर, सत्कार, संस्कारित कुल का बंध करता है। जीव को हमेशा बड़ों की आज्ञा स्वीकार करना चाहिए। वंदना हमेशा भावपूर्वक करनी चाहिए। हमें धन की ओर नहीं धर्म की ओर आगे बढ़ाना है। ऐसा करने से पूर्व जन्म के बंधे हुए कर्म क्षय हो जाते हैं। जहां श्रद्धा है, वहां आदर भाव की प्राप्ति होती है। कई बार थोड़ा सा ज्ञान आ जाए तो व्यक्ति अभिमानी बन जाता है। हमें विनम्र बने रहना है और धर्म की ओर अग्रसर होना है।श्री अतिशयमुनिजी म.सा. ने फरमाया कि विचारों का प्रभाव आचार पर पड़ता है। भले कोई बाहर से कितना अच्छा व्यवहार कर ले परंतु भीतर के भाव मलिन है तो आचरण मलिन ही होगा। जब तक जीव ममत्व का विसर्जन नहीं करेगा, तब तक आचार शुद्ध होने वाला नहीं है। जहां-जहां स्वार्थ बुद्धि वहां आचार मलिन नहीं होता है। जीव को आगे रहकर दुख लेना मंजूर है लेकिन सुख के मार्ग पर चलना मंजूर नहीं है। भगवान ने फरमाया है कि बाहरी वस्तुओं में आसक्त रहकर सुख प्राप्त नहीं हो सकता है, लेकिन इनका त्याग करके संयम प्राप्त किया जा सकता है। जीव भगवान की बताई क्रिया नहीं करते है लेकिन कोई कुछ और कह दे तो वह तत्काल कर देते हैं। हमें इतना श्रेष्ठ साधन मिलने के बाद भी भटकना नहीं है। जो गुरु धर्म बताएं हमें उसके पास जाना है जो धन बताएं उसके पास नहीं।रत्नपुरी गौरव सुहासमुनिजी म.सा. ने फरमाया कि जागृत श्रावक चिंतन करता है कि अभी मैं संसार में फंसा हुआ हूं, निरंतर धर्म आराधना का चिंतन करते हुए धर्म दृष्टि रहती है। संसार में रहते हुए व्यापार मेरी मजबूरी है किस प्रकार व्यापार करूं कि बच सकूं। व्यापार में झूठ बोलना आवश्यक रहा है क्या? नहीं, फिर भी लोभ कषाय के उदय से जीव बार-बार झूठ बोलता है। झूठ बोलते हुए भी उसे झूठ रूप लगता ही नहीं। आपकी इच्छा व्यापार बढ़ाने की है या घटाने की? चिंतन करना। जितना परिग्रह कम होगा, उतना जीवन धन्य होगा। यहां पर प्रतिदिन विभिन्न श्री संघों के श्रावक, श्राविकाएं दर्शनार्थ पधार रहे हैं। यहां पर तप आराधना का मेला लगा हुआ है। बड़ी संख्या में आराधक तप आराधना कर रहे है। संचालन अणु मित्र मंडल के मार्गदर्शक राजेश कोठारी ने किया।
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