(रतलाम)जीवन के अंदर धर्म और आध्यात्मिक की अलख जगाना है : डॉ संयमलता जी म.सा.
- 15-Jul-25 12:00 AM
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रतलाम, आरएनएस, 15 जुलाई। जीवन यापन के लिये धन चाहिए, आध्यात्म की प्रगति के शिखर पर चढऩे के लिए धर्म चाहिए। जीवन के अंदर धर्म और आध्यात्मिक की अलख जगाना है । आप कौन हो, आप श्रावक हो श्रमणोंपासक हो श्रावक तीन अक्षर से मिलकर बना है जहां मतलब श्रद्धावन, व का अर्थ है विवेकवान एवं क का अर्थ है करुणावन । अर्थात जिस व्यक्ति में श्रद्धा, विवेक और करुणा हो वह सच्चा श्रावक होता है, लेकिन आज का श्रावक कैसा है की चार चुकिया, बारह भुलिया, और नौ का ना जाने नाम फिर भी श्रावक रखा है नाम । मतलब आज का श्रावक चार गति के बारे में नही जानता है, श्रावक के बारह व्रत का ज्ञान नहीं है और नौ तत्वों के बारे में भी नही जानता है । उक्त विचार पूज्याश्री दक्षिण चंद्रिका डॉ. संयमलता जी म.सा. ने नीमचौक जैन स्थानक पर आयोजित धर्मसभा मे व्यक्त करे।महासती जी ने फरमाया की जिनवाणी में श्रावक श्राविकाओं को सन्त सतियों के अम्मा पिया कहा गया है। मतलब श्रावक श्राविका सन्त सती के माता पिता के समान होते है, श्रावक का पेट बड़ा होता है उसे बातों को हजम करना आता है । रतलाम नगर के बापूलाल जी बोथरा ऐसे ही श्रावक थे । जरूरी नही की वकील का बेटा वकील बन जाए, डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बन जाए, इंजीनियर का बेटा इंजीनियर बन जाए, लेकिन श्रावक का बेटा श्रावक बन सकता है। जीवन में धर्म कम करो लेकिन जितना भी करो पक्का करो। जीवन में नियम का होना बहुत जरूरी है, प्रत्याख्यान जरुरी है। जैसे लिफ्ट, कार, बस, ट्रेन, प्लेन का दरवाजा लगने के बाद सुरक्षित होती है वैसे ही जीवन में धर्म की सुरक्षा के प्रत्याख्यान रूपी दरवाजा बंद करना जरूरी है।धर्म सभा मे डॉ अमितप्रज्ञा जी म.सा. ने फरमाया की निगोद के जीव एक क्षण में साढे सत्रह बार जन्म लेते हैं, निगोद मतलब जिसको मां की गोद नसीब नहीं हो । सांस लेते हैं और छोडऩे के पहले खत्म हो जाए वह निगोद होता है। एक बार जन्म मरण में अनंत अनंत वेदना होती है तो निगोद के जीव को बार-बार जन्म मरण करने में कितनी वेदना होती होगी । निगोद में जाने से बचना हो तो धर्म करो कर्म की निर्जरा करो । निगोद से उठकर ने निग्र्रन्थ बन जा सकता है । असंभव को संभव करने वाला है धर्म । धर्म में मन नहीं लगेगा तो पश्चात आपके अग्नि में जो जलना पड़ेगा । जैन धर्म जबरदस्त धर्म है जबरदस्ती का धर्म नहीं है, जैन धर्म में बहुत अच्छा बाते है, इसमें अहिंसा है, अपरिग्रह है, अनेकान्तवाद है लेकिन फिर भी उसका विज्ञापन नहीं होने से प्रचार प्रसार नहीं होने से आज जैन धर्म पीछे हो रहा है । जब तक जैन धर्म जनधर्म नहीं बनेगा तब तक यह विश्व का धर्म नहीं बन पाएगा। आंखों में शर्म नहीं तो कुछ नहीं, खून अगर गर्म नहीं तो कुछ नहीं जीवन में अगर धर्म नहीं तो कुछ नहीं।
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