(रतलाम)जीव में जब पश्चाताप का भाव आता है तब उसका उत्थान प्रारम्भ होता है- प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म. सा.
- 31-Jul-25 12:00 AM
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रतलाम, आरएनएस, 31, जुलाई। आचार्य प्रवर पूज्य श्री उमेशमुनिजी म.सा. के सुशिष्य धर्मदास गणनायक प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म.सा. आदि ठाणा - 9 डीपी परिसर लक्कड़पीठा व पुण्य पुंज साध्वी श्री पुण्यशीलाजी म. सा. आदि ठाणा - 10 गौतम भवन सिलावटों का वास पर वर्षावास हेतु विराजित है। गुरु समर्पण वर्षावास समिति के मुख्य संयोजक शांतिलाल भंडारी, श्री धर्मदास जैन श्री संघ के अध्यक्ष रजनीकांत झामर ने बताया कि प्रवर्तक श्रीजी, संत मंडल और साध्वी मंडल के सानिध्य में यहां प्रतिदिन विभिन्न तप आराधनाएं संपन्न हो रही हैं, जिसमें बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाएं उत्साहपूर्वक आराधना कर रहे हैं। डीपी परिसर पर आयोजित धर्मसभा में प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म.सा. ने फरमाया कि , दैनिक जीवन में कुछ न कुछ भूल हो जाया करती है तो उसे देखकर उसके प्रति आलोचना के भाव होना चाहिए। साधना में जो दोष लगे उनके प्रति तीव्र धिक्कार होना चाहिए। एक बार गलती कर ली, माफी मांग ली और फिर गलती कर ली तो वह ठीक नहीं है। जीव में जब पश्चाताप का भाव आता है तब उसका उत्थान प्रारंभ होता है। हर व्यक्ति चाहता है कि मेरा सम्मान बना रहे। सम्मान, सत्कार की भावना सभी में रहती है लेकिन साधना के मार्ग पर जाने वाला जीव इसे ठीक नहीं मानता है। गुरु के समक्ष जाकर अपने दोषों को प्रकट करो। आत्मनिंदा करना चाहिए आलोचना में सामान्य रूप से गुरु के सामने दोषों को प्रकट किया जाता है। आत्म निंदा में स्वयं पश्चाताप किया जाता है। गुरु के सामने जाकर अपने दोषों को बताना बहुत कठिन है। सम्मान, सत्कार की भावना जब खत्म हो जाती है, तब व्यक्ति अपने दोषों को प्रकट कर सकता है।श्री अतिशयमुनिजी म.सा. ने फरमाया कि बाहर से भले ही सभी जीव अलग-अलग क्रियाएं करते हैं लेकिन अंदर से सभी का लक्ष्य एक समान होता है। जीव ने जीवन की सफलता बाहरी इंद्रियों के सुख को माना है। जिनवाणी के माध्यम से उसे सुनने वालों की सोच एक कदम आगे है। यदि इंद्रियों का सुख भोगने में ही जीवन सफल होता तो जिनके पास यह सभी साधन उपलब्ध थे, उन्होंने इसे क्यों छोड़ा? मैं जो सुन रहा हूं वही सही है या देखा हुआ सही है? जिनवाणी सुनने वाला यह चिंतन करता है। जितनी विकारी अवस्था बढ़ती है, उतना जीव दुख की ओर आगे बढ़ता है। विषयों में रमणता दुख का कारण लगता है या नहीं? जीव भले ही बाहर की क्रिया करने में सुख मानता है लेकिन वास्तविकता में वह दुख है। विपुल सुख प्राप्त करने के लिए क्षणिक सुख छोड़ दे वह अच्छा है या नहीं? मोक्ष का सुख अच्छा है या नहीं? संसार में जीव को थोड़ी भी अनुकूलता मिल जाए तो उसे वह छोडऩे की इच्छा नहीं होती। जीव अपने पुण्य कर्म के उदय को सुख मानता है। जितना विषय का आकर्षण होगा, उतनी संयम में रमणता कम होगी। बाहरी इच्छाओं पर रोक लगाना वैराग्य है। संसार के सभी संबंध इस भव तक सीमित है। जब तक स्वयं के स्वार्थ की पूर्ति होगी, तब तक वह पदार्थ व्यक्ति सब अनुकूल लगेगा । किंतु जिसका का वैराग्य मजबूत है तो वह इन क्षणिक नश्वर सुखों को छोड़कर संयम जीवन में कूद पड़ेगा। धर्मसभा को रत्नपुरी गौरव श्री सुहासमुनिजी म.सा. ने भी संबोधित किया।35 से अधिक आराधक मासक्षमण तप की ओर अग्रसर अणु मित्र मंडल के अध्यक्ष रितेश मांडोत व महामंत्री विकास पितलिया ने बताया कि प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म. सा. आदि ठाणा - 9 एवं पुण्य पुंज साध्वी श्री पुण्यशीलाजी म. सा. आदि ठाणा - 10 के सानिध्य में यहां प्रतिदिन तप, त्याग, धर्म, ध्यान, ज्ञान आदि विभिन्न आराधनाएं हो रही हैं। जिसमें बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाएं उत्साहपूर्वक आराधना का लाभ ले रहे हैं। गुरु समर्पण वर्षावास के दौरान दिन प्रतिदिन तपस्या एक अदभुत रंग ला रही है। यहां लगभग 35 से अधिक तपस्वी अपनी दृढ़ता के साथ मासक्षमण तप की ओर अग्रसर हो रहे हैं। यहां विभिन्न तप आराधनाएं पूर्ण हो चुकी है। वहीं कई आराधकों की तपस्या जारी है। संचालन अणु मित्र मंडल के मार्गदर्शक राजेश कोठारी ने किया।
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